श्रीदेवी एक ऐसी अदाकारा ,जो सभी की चहेती थी ,सभी के दिलों में निवास करती थी ,अचानक इस दुनिया से सब कुछ छोड़ सभी की तरह हमें अकेले छोड़ गयी ,नहीं बर्दाश्त हुआ सभी को उनका जाना ,आज भले ही वे फ़िल्मी दुनिया से दूर थी किन्तु इस दुनिया में हैं ,ये सभी के लिए तसल्ली की बात थी कोई नहीं चाहता था कि वे इस दुनिया से जाएँ किन्तु जो सृष्टि का नियम है सभी पर लागू होता है श्रीदेवी पर भी हुआ और वे चली गयी नहीं बर्दाश्त हुआ उनका जाना और वह भी तिरंगे में ,वह भी एक महिला ,वह भी एक अदाकारा तरह तरह की बातें बनायीं गयी व्हाट्सप्प पर मेसेज साझा किये गए फेसबुक पर आपत्तियां दर्ज की गयी कि
तुषार ने लिखा, ''श्रीदेवी के शव को तिरंगे में क्यों लपेटा गया है? क्या उन्होंने देश के लिए बलिदान दिया है?'' ''क्या किसी फ़िल्मी सितारे के निधन की तुलना सरहद पर मारे जाने वाले सैनिक से की जा सकती है? क्या बॉलीवुड में काम करना देश की सेवा करने के बराबर है?''
तहसीन पूनावाला ने लिखा, ''श्रीदेवी का पूरा सम्मान है लेकिन क्या उनके शव को तिरंगे में लपेटा गया है? अगर हां, तो क्या उन्हें राजकीय सम्मान दिया गया है? सिर्फ़ पूछ रहा हूं...मेरा मतलब है कि मैं किसी का अपमान नहीं कर रहा और न ही मुझे किसी बात पर आपत्ति है.''
इंडिया फ़र्स्ट हैंडल से लिखा गया है, ''मुझे लगता है कि आत्महत्या करने वाले हर किसान को इसी तरह का सम्मान दिया जाना चाहिए जैसा कि श्रीदेवी को दिया गया है.''
और व्हाट्सप्प पर
' ' पता नही पर क्यूं , *तिरंगेमे* श्रीदेवी को देखकर .. अच्छा नही लगा..। तिरंगेमे लिपटकर जहां से विदा होना एक *फख्र की बात* लगती थी..। लेकिन अब तो ऐसा लगता है कोई value ही नही बची... फौजी देश के लिये लडते हुए अपनी जान देते है... उनकेलिये *तिरंगेमे* लिपटना *गर्व की बात* है... आज श्रीदेवी तिरंगेमे गयी कल ओर कोई जायेगा... फिर कोई और... अब *तिरंगेकी* औकात बस एक कफन कर दी गयी है... मुझे बिलकुल अच्छा नही लगा... अगर पद्मश्री होने से ये सम्मान है तो, कल अगर पद्मश्री गुलशन ग्रोवर, सैफअली खान... OMG मै सोच भी नही सकता... बोलीवुड में हर तीसरे व्यक्ति को पद्मश्री प्राप्त है ,''
आश्चर्य है कि जिस बात पर गर्व होना चाहिए वही बात यहाँ के लोगों के लिए दुःख का विषय बन जाती है ,आज श्रीदेवी तिरंगे में गयी कल कोई और जायेगा ----क्या नहीं जानते कि तिरंगे में जाने का गौरव मिलना इस देश में आसान नहीं है ,श्रीदेवी के अंतिम दर्शन करने को बहुत भीड़ इकठ्ठा थी और सभी को आश्चर्य था कि तिरंगे में क्यों लपेटा है श्रीदेवी का शव ? वो इसलिए क्योंकि उन्हें राजकीय सम्मान दिया गया था.राजकीय सम्मान का मतलब है कि इसका सारा इंतज़ाम राज्य सरकार की तरफ़ से किया गया था, जिसमें पुलिस बंदोबस्त पूरा था. शव को तिरंगे में लपेटने के अलावा उन्हें बंदूकों से सलामी भी दी गई.आम तौर पर राजकीय सम्मान बड़े नेताओं को दिया जाता है, जिनमें प्रधानमंत्री, मंत्री और दूसरे संवैधानिक पदों पर बैठे लोग शामिल होते हैं.जिस व्यक्ति को राजकीय सम्मान देने का फ़ैसला किया जाता है उनके अंतिम सफ़र का इंतज़ाम राज्य या केंद्र सरकार की तरफ़ से किया जाता है. शव को तिरंगे में लपेटा जाता है और गन सैल्यूट भी दिया जाता है.पहले ये सम्मान चुनिंदा लोगों को ही दिया जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया है. अब स्टेट फ़्यूनरल या राजकीय सम्मान इस बात पर निर्भर करता है कि जाने वाला व्यक्ति क्या ओहदा या क़द रखता है.पूर्व कानून और संसदीय मामलों के मंत्री एम सी ननाइयाह ने रेडिफ़ से कहा था, ''अब ये राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर करता है. वो इस बात का फ़ैसला करती है कि व्यक्ति विशेष का क़द क्या है और इसी हिसाब से तय किया जाता है कि राजकीय सम्मान दिया जाना है या नहीं. अब ऐसे कोई तय दिशा-निर्देश नहीं हैं.''सरकार राजनीति , साहित्य, कानून, वि ज्ञान और सिनेमा जैसे क्षेत्रों में अहम किरदार अदा करने वाले लोगों के जाने पर उन्हें राजकीय सम्मान देती है.
इस बात का फ़ैसला आम तौर पर राज्य का मुख्यमंत्री अपनी कैबिनेट के वरिष्ठ साथियों से चर्चा करने के बाद करता है.एक बार फ़ैसला हो जाने पर राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को जानकारी दी जाती है जिनमें डिप्टी कमिश्नर, पुलिस कमिश्नर, पुलिस निरीक्षक शामिल हैं. इन सभी पर राजकीय सम्मान की तैयारियों का ज़िम्मा होता है.ऐसा बताया जाता है कि स्वतंत्र भारत में पहला राजकीय सम्मान वाला अंतिम संस्कार महात्मा गांधी का था.इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी को भी राजकीय सम्मान के साथ विदाई दी गई थी.इसके अलावा मदर टेरेसा को भी राजकीय सम्मान दिया गया था. वो राजनीति से ताल्लुक़ नहीं रखती थीं लेकिन समाज सेवा में अहम योगदान देने के लिए उन्हें ये सम्मान दिया गया.इसके अलावा लाखों अनुयायियों वाले सत्य साईं बाबा अप्रैल, 2011 में जब दुनिया छोड़ गए थे तो राज्य सरकार ने उन्हें भी राजकीय सम्मान दिया था.गृह मंत्रालय के आला अफ़सर रहे एस सी श्रीवास्तव ने बीबीसी को बताया कि राज्य सरकार अपने स्तर पर फ़ैसला करती है कि किसे राजकीय सम्मान दिया जाना है और उसे इस बात का पूरा अधिकार है.लेकिन क्या श्रीदेवी ये सम्मान हासिल करने वाली फ़िल्मी दुनिया की पहली शख्सियत हैं, उन्होंने जवाब दिया, ''मुझे लगता है ऐसा नहीं है. उनसे पहले शशि कपूर को भी राजकीय सम्मान दिया गया था.''पिछले साल दिसंबर में शशि कपूर का निधन हुआ था और उन्हें भी राजकीय सम्मान के साथ विदाई दी गई थी.हालांकि, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना और शम्मी कपूर जैसे दिग्गज कलाकारों को राजकीय सम्मान नहीं दिया गया था.ख़ास बात है कि अगर राज्य सरकार राजकीय सम्मान देने का फ़ैसला करती है, तो इसका असर प्रदेश भर में दिखता है.
श्रीदेवी को राजकीय सम्मान दिए जाने का फैसला राज्य सरकार का था और नया भी था किन्तु इसे गलत कहना या तिरंगे की वैल्यू पर ही सवाल उठाना बिलकुल गलत है क्योंकि तिरंगा आज तक केवल शहीदों का कफ़न बनता रहा किन्तु देश जितना फौजियों का है उतना ही यहाँ के सच्चे भारतीयों का भी है ,हाँ इतना अवश्य है कि देश सेवा का सभी का अंदाज़ अलग है ,क्या अपने बेटे-भाई-पति को फ़ौज में देशसेवा के लिए भेजने वाले माँ-बाप-भाई-बहन-पत्नी तिरंगे की छत्रछाया के तिरंगे के सम्मान के हक़दार नहीं ? क्या देश का अन्नदाता किसान फौजियों से कम देश सेवा कर रहा है वह भी तो जन-जन का पेट भरने को अपना दिन रात एक किये है ?तो फिर अपना सर्वस्व समर्पित कर देश के लोगों को उनके दुखों में परेशानियों में एक सच्चे साथी का साथ दे कुछ करने को प्रेरित करने वाले हमारे फ़िल्मी कलाकार सच्चे देशभक्त की श्रेणी से वंचित क्यों रहे ?
इतिहास साक्षी है स्वतंत्रता आंदोलन में और उसके बाद भी देशवासियों को अपने स्वाधीनता सेनानियों से ,उनके त्याग बलिदान से परिचित कराने में हमारी फिल्मो का अतुलनीय योगदान रहा ,
आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है
कवि प्रदीप के ''किस्मत '' फिल्म के इस गाने ने स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश सरकार को इस कदर विचलित कर दिया कि उसने इस गाने का बजना बंद कर दिया , कवि प्रदीप के गाने
''ए मेरे वतन के लोगों ,जरा आँख में भर लो पानी ,
जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो क़ुरबानी ,''
को सुनकर न केवल नेहरू जी के बल्कि आज भी हमारी आँखों में पानी भर जाता है ,ऐसे में देश विदेश में भारत की पताका फहराने वाले हमारे फ़िल्मी कलाकार इस सम्मान से वंचित क्यों रहे ? भारत में तो श्रीदेवी ने दिलों पर राज किया है, भारत से बाहर पाकिस्तान और दूसरे देशों में भी उनका जलवा कम नहीं था.पाकिस्तान में भी ट्विटर पर श्रीदेवी को लेकर चर्चा जारी है.पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर ने ट्वीट करके बताया कि रविवार को वहाँ के टीवी चैनल जिओ न्यूज़ ने हेडलाइन्स में पहले पाँच मिनट तक श्रीदेवी को याद किया.सिंगापुर में तो एक रेस्तरां सिर्फ़ इसलिए मशहूर है क्योंकि वहाँ श्रीदेवी जैसी और उनके नाम पर एक गुड़िया है.जापान जैसे देशों में भी श्रीदेवी का ख़ूब नाम था और वहाँ की मीडिया में भी श्रीदेवी के निधन से जुड़ी ख़बरें लगातार आ रही हैं.
आज श्रीदेवी के शव तिरंगे में लपेटे जाने को लेकर बहस की जा रही है जो शशि कपूर जी के लिए एक बार भी नहीं की गयी इससे साफ ज़ाहिर है कि महिला पुरुष का भेदभाव इन बहस करने वालों के दिमागों में एक महिला को यह सम्मान मिलने पर तिलमिला उठा है, ऐसे में श्रीदेवी के शव का तिरंगे में लपेटे जाने को लेकर जो भी बहस है वह निश्चित रूप में उन लोगों की है जो तिरंगे की महिमा को जानते ही नहीं ,जबकि तिरंगा हर सच्चे भारतीय का है और मैं तो कहूँगी कि जो भी कोई देश का किसी भी तरह से नाम रोशन करता है ,देश की अपनी तरफ से जरा सी भी सेवा करता है ,उसे यह सम्मान मिलना चाहिए ,हमें चाहिए कि हम दुनिया को दिखा दें कि हमारे भारत वर्ष में कितने देशभक्त है न कि इन कोरी बयानबाजियों से यह दिखाएँ कि हम देशभक्ति के कद्रदान नहीं है या हमारे यहाँ देशभक्त हैं ही नहीं ,मैं महाराष्ट्र सरकार के इस निर्णय की सराहना करती हूँ और अन्य सभी राज्य सरकारों से निवेदन करती हूँ कि वे भी अपने राज्य की प्रतिभाओं को यह सम्मान देने से कभी न चूकें और तिरंगे को जन-जन से जोड़ें न कि दूर करें ,
जय हिन्द
शालिनी कौशिक
[कौशल ]