सबक दहेज़ के दानवों को
सबक दहेज़ के दानवों को
मंडप भी सजा ,शहनाई बजी ,
आई वहां बारात भी ,
मेहँदी भी रची ,ढोलक भी बजी ,
फिर भी लुट गए अरमान सभी .
समधी बात मेरी सुन लो ,अपने कानों को खोल के ,
होगी जयमाल ,होंगे फेरे ,जब दोगे तिजोरी खोल के .
आंसू भी बहे ,पैर भी पकड़े ,
पर दिल पत्थर था समधी का ,
पगड़ी भी रख द