महात्मा गांधी एक वह नाम जो एक पार्टी के लिए तारणहार तो एक पार्टी के लिए मारणहार की भूमिका में रहा है और यही कारण रहा कि एक पार्टी उन्हें बचाने में लगी रही तो एक पार्टी ने उन्हें निबटाने में अपनी अहम भूमिका निभाई किन्तु समय बीतते बीतते ऐसा समय आ गया कि मारणहार की लोकप्रियता और जन समुदाय का उनके प्रति प्यार दूसरी पार्टी की समझ में आ गया और यह भी समझ में आ गया कि वह भले ही इस धरती पर करोडों बार जन्म ले ले पर उनके प्रति जन भावना को पलट नहीं पाएगी. इसलिये दूसरी पार्टी ने उनके प्रति नरम रुख अख्तियार किया और इसके लिए दूसरी पार्टी को महात्मा गांधी के खिलाफ अंदरुनी हालत के मामले में भी काफी विरोध का सामना करना पड़ा, पार्टी की ही एक नेत्री मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ने एक बयान में कहा था कि नाथूराम गोडसे देशभक्त थे, हैं और रहेंगे. जिसपर भारतीय जनता पार्टी की किरकिरी हुई थी और पूरे विपक्ष ने भाजपा को आड़े हाथों ले लिया था. किरकिरी के बाद साध्वी प्रज्ञा ने माफी मांग ली थी, लेकिन तबतक विवाद गहरा चुका था. पहले अमित शाह का बयान आया और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बयान दिया .इतना ही नहीं मोदी कैबिनेट के मंत्री अनंत हेगड़े ने भी ट्वीट कर साध्वी प्रज्ञा का बचाव किया था और कहा था कि इस समय चल रही सार्थक बहस से नाथूराम गोडसे को खुशी होगी. लेकिन बाद में वह भी अपने बयान से पलटे और कहा कि उनका ट्विटर किसी ने हैक कर लिया था.भाजपा की लगातार हो रही किरकिरी के बीच राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने ट्वीट कर इन बयानों से किनारा किया और कहा कि ये उनके निजी बयान थे, पार्टी का उनसे कोई लेना-देना नहीं है. शाह ने लिखा कि बीजेपी की अनुशासन समिति उनके खिलाफ एक्शन लेगी.
सिर्फ साध्वी प्रज्ञा और अनंत हेगड़े ही नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के नेता अनिल सौमित्र ने भी ऐसा ही बयान दिया था. उन्होंने महात्मा गांधी को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता बता दिया था, जिसपर एक्शन लेते हुए बीजेपी ने उन्हें पार्टी से ही सस्पेंड कर दिया.
लोकसभा चुनाव 2019 के अंतिम चरण के मतदान से पहले भोपाल लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताया, जिसपर बवाल हो गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर अपनी पहली प्रक्रिया दी . पीएम मोदी ने कहा कि भले ही उन्होंने इस मुद्दे पर माफी मांग ली हो, लेकिन वह उन्हें अपने मन से कभी माफ नहीं कर पाएंगे.
भारतीय जनता पार्टी के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान जारी किया गया. प्रधानमंत्री ने कहा कि महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे को लेकर जो भी बातें की गईं हैं, वो भयंकर खराब हैं.
PM मोदी ने दो टूक कहा कि ये बातें पूरी तरह से घृणा के लायक हैं, सभ्य समाज के अंदर इस प्रकार की बातें नहीं चलती हैं. पीएम मोदी ने कहा कि भले ही इस मामले में उन्होंने (साध्वी प्रज्ञा, अनंत हेगड़े) माफी मांग ली हो, लेकिन मैं अपने मन से उन्हें कभी भी माफ नहीं कर पाऊंगा.
मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हें हम महात्मा गांधी के नाम से जानते हैं देश इस वर्ष उनकी 150 वीं जयंती मना रहा है और वह भी एक ऐसी सरकार के कार्यकाल में जो उनके नियमों सिद्धांतों की हमेशा आलोचक रही है और सरकार की दुविधा ये है कि जनता के उनसे लगाव के कारण उसे ये कार्य करना पड़ रहा है.
मोहनदास करमचन्द गांधी (२ अक्टूबर १८६९ - ३० जनवरी १९४८) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले १९१५ में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था।[1]। उन्हें बापू (गुजराती भाषा में બાપુ बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने ६ जुलाई १९४४ को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं।[2] प्रति वर्ष २ अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है।
सबसे पहले गान्धी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना शुरू किया। १९१५ में उनकी भारत वापसी हुई।[3] उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में १९३० में नमक सत्याग्रह और इसके बाद १९४२ में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा।
गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन गुजारा और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रखे।
और गांधी जी का हत्यारा नाथूराम गोडसे जिसके बारे में सभी जानते हैं कि वह हिन्दू राष्ट्रवादी था वही हिन्दू राष्ट्रवाद जिसका दम ये पार्टी भरकर सत्ता में वापसी करने में सफल रही है. नाथुराम विनायक गोडसे, या नाथुराम गोडसे(19 मई 1910 - 15 नवम्बर 1949) एक कट्टर हिन्दू थे, जिन्होंने 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में गोली मारकर महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी। गोडसे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुणे से पूर्व शायद सदस्य थे । गोडसे का मानना था कि भारत विभाजन के समय गाँधी ने भारत और पाकिस्तान के मुसलमानों के पक्ष का समर्थन किया था। जबकि हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर अपनी आंखें मूंद ली थी। गोडसे ने नारायण आप्टे और 6 लोगों के साथ मिल कर इस हत्याकाण्ड की योजना बनाई थी। एक वर्ष से अधिक चले मुकद्दमे के बाद 8 नवम्बर 1949 को उन्हें मृत्युदण्ड दिया गया।हालाँकि महात्मा गाँधी के पुत्र, मणिलाल गाँधी और रामदास गाँधी द्वारा विनिमय की दलीलें पेश की गई थीं, परन्तु उन दलीलों को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, महाराज्यपाल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी एवं उपप्रधानमंत्री वल्लभभाई पटेल, तीनों द्वारा ठुकरा दिया गया था। 15 नवम्बर 1949 को गोडसे को अम्बाला जेल में फाँसी दे दी गई।
यही गोडसे गांधी जी के हत्यारे थे ३० जनवरी १९४८ को नाथूराम गोडसे दिल्ली के बिड़ला भवन में प्रार्थना-सभा के समय से ४० मिनट पहले पहुँच गये। जैसे ही गान्धी जी प्रार्थना-सभा के लिये परिसर में दाखिल हुए, नाथूराम ने पहले उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया उसके बाद बिना कोई बिलम्ब किये अपनी पिस्तौल से तीन गोलियाँ मार कर गान्धी का अन्त कर दिया और इन्हीं हत्यारे गोडसे के प्रति पार्टी की श्रद्धा को देखते हुए भाजपा को अपनी ही पार्टी में अंतर्कलह का सामना करना पड़ा. जिनके लिए गांधी जी को लगभग नकारते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने छत्तीसगढ़ के रायपुर में 10 जून 2017 को पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने राज्य विधानसभा चुनाव में 65 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कांग्रेस का जिक्र किया जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी को एक 'चतुर' बनिया बताया.
और भाजपा की ही विचारधारा की पार्टी हिन्दू महासभा ने २०१७ में नाथूराम विनायक गोडसे की स्मृति में अपने ग्वालियर कार्यलय में एक मन्दिर की आधार शीला रखी।
किन्तु आज स्थितियां पलट चुकी हैं, गांधी जी भाजपा के लिए नेहरू जी से भी बड़े सिरदर्द बन चुके हैं और फिर अभी नेहरू जी की तो पीढिय़ां राजनीति में उपस्थित हैं ऐसे में उनके वारिस भाजपा वाले नहीं बन सकते इसलिये जनता में उनके लिए भ्रम फैलाना ही हमारे लिए फायदेमंद है ये सोचकर और ये भी सोचकर कि नेहरू जी से संबंधित किसी समारोह का अभी समय नहीं है इसलिये गांधी जी के प्रति जनता के प्यार का फायदा उठाया जाए तो पिछले साल ही खादी का चरखा गांधी जी से छीनने वाले मोदी जी और एक राष्ट्रपिता से गांधी जी की पदवी चतुर बनिए की करने वाले अमित शाह गांधी जी के सबसे बड़े वारिस के रूप में उभरकर सामने आए हैं.
पीएम मोदी शनिवार को महात्मा गांधी के 150वें जन्मदिन पर हुए इवेंट में शामिल हुए। इस इवेंट में बॉलीवुड इंडस्ट्री के शाहरुख खान, आमिर खान सहित कई लोग शामिल हुए। यह इवेंट दिल्ली के लोक कल्याण मार्ग पर शाम 7 बजे हुआ। जहां सेलिब्रिटीज ने महात्मा गांधी के योगदान के बारे में बात की है।
मोदी ने कहा, ‘‘ आप कल्पना कर सकते हैं कि जिनसे गांधी जी कभी मिले नहीं, वे भी उनके जीवन से कितना प्रभावित रहे. मार्टिन लूथर किंग जूनियर (Martin Luther King Jr) हों या नेल्सन मंडेला (Nelson Mandela), उनके विचारों का आधार महात्मा गांधी थे, गांधी जी की सोच थी.''
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘आज लोकतंत्र की परिभाषा का एक सीमित अर्थ रह गया है कि जनता अपनी पसंद की सरकार चुने और सरकार जनता की अपेक्षा के अनुसार काम करे, लेकिन महात्मा गांधी ने लोकतंत्र की असली शक्ति पर बल दिया। उन्होंने वह दिशा दिखाई जिसमें लोग शासन पर निर्भर न हों और स्वावलंबी बनें.''
इस कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू व लाल कृष्ण आडवाणी भी सम्मिलित हुए, इससे पहले गांधी जी की जयंती पर अमित शाह ने कहा, 'आज गांधी जयंती के दिन पूरा देश कृतज्ञ भाव के साथ उस महामानव को श्रद्धांजलि दे रहा है, जिसने न केवल देश के आगे जाने का रास्ता प्रशस्त किया, जिसने सत्य और अहिंसा के रास्ते को फिर एक बार दुनिया के सामने रखा, इसके साथ ही भारतीय संस्कृति को पूरी दुनिया में पहचान दिलाई.
ये होता है समय जो सब कुछ पलटकर रख देता है, कल तक गांधी जी के सिद्धांतों को रोने वाले आज भी रो रहे हैं पर मुहँ पलट पलटकर, कल तक जो उनमें देश की क्षति देखते थे आज देश की उन्नति देख रहे थे, कल तक जो उन सिद्धांतों की हत्या करवाते थे आज उनके खिलाफ बोलने वाले के खिलाफ खड़े हो रहे हैं और ये सत्ता है जो इन्हें ऐसा करने को मजबूर कर रही है इसीलिये आज जो सत्ता में हैं या सत्ता से बाहर हैं जो भी बोलें, किसी के पक्ष में या विपक्ष में, यही सोचकर बोलें - "आज माना कि इक्तदार में हो, हुक्म रानी के तुम खुमार में हो,
ये भी मुमकिन है वक़्त ले करवट, पांव ऊपर हों सर तगार में हो ।"
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)