पश्चिमी यूपी के कई जिलों के लोगों को न्याय पाने के लिए 800 किमी की दूरी तय करके इलाहाबाद जाना जाना पड़ता है। 22 जिलों में बेंच के लिए आंदोलन चल रहा है। वकील सप्ताह में एक दिन हड़ताल पर रहते हैं। संसदीय कार्यमंत्री आजम खां ने कहते हैं बुनियादी तौर पर यह मांग केंद्र सरकार से जुड़ी है। सदन से पहले प्रस्ताव पारित करके भेजा जा चुका है। •वेस्ट में बेंच के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर करें ः आजम सूबे को 4 हिस्सों में बांटों तो हाईकोर्ट मिल जाएंगे : बसपा [अमर उजाला से साभार ] ये हाल बनाया है आज के सत्ताधारियों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच का कि लगता है कोई हंसी मजाक की बात हो रही है जबकि - पश्चिमी यू.पी.उत्तर प्रदेश का सबसे समृद्ध क्षेत्र है .चीनी उद्योग ,सूती वस्त्र उद्योग ,वनस्पति घी उद्योग ,चमड़ा उद्योगआदि आदि में अपनी पूरी धाक रखते हुए कृषि क्षेत्र में यह उत्तर प्रदेश सरकार को सर्वाधिक राजस्व प्रदान करता है .इसके साथही अपराध के क्षेत्र में भी यह विश्व में अपना दबदबा रखता है .यहाँ का जिला मुजफ्फरनगर तो बीबीसी पर भी अपराध के क्षेत्रमें ऊँचा नाम किये है और जिला गाजियाबाद के नाम से एक फिल्म का भी निर्माण किया गया है .यही नहीं अपराधों कीराजधानी होते हुए भी यह क्षेत्र धन सम्पदा ,भूमि सम्पदा से इतना भरपूर है कि बड़े बड़े औद्योगिक घराने यहाँ अपने उद्योगस्थापित करने को उत्सुक रहते हैं और इसी क्रम में बरेली मंडल के शान्ह्जहापुर में अनिल अम्बानी ग्रुप के रिलायंस पावर ग्रुपकी रोज़ा विद्युत परियोजना में २८ दिसंबर २००९ से उत्पादन शुरू हो गया है .सरकारी नौकरी में लगे अधिकारी भले ही न्यायविभाग से हों या शिक्षा विभाग से या प्रशासनिक विभाग से ''ऊपर की कमाई'' के लिए इसी क्षेत्र में आने को लालायित रहते हैं.इतना सब होने के बावजूद यह क्षेत्र पिछड़े हुए क्षेत्रों में आता है क्योंकि जो स्थिति भारतवर्ष की अंग्रेजों ने की थी वही स्थितिपश्चिमी उत्तर प्रदेश की बाकी उत्तर प्रदेश ने व् हमारे भारतवर्ष ने की है . आज पश्चिमी यूपी में मुकदमों की स्थिति ये है कि अगर मुकदमा लड़ना बहुत ही ज़रूरी है तो चलो इलाहाबाद समझौते की गुंजाईश न हो ,मरने मिटने को ,भूखे मरने कोतैयार हैं तो चलिए इलाहाबाद ,जहाँ पहले तो बागपत से ६४० किलोमीटर ,मेरठ से ६०७ किलोमीटर ,बिजनोर से ६९२किलोमीटर ,मुजफ्फरनगर से ६६० किलोमीटर ,सहारनपुर से ७५० किलोमीटर ,गाजियाबाद से ६३० किलोमीटर ,गौतमबुद्धनगर से ६५० किलोमीटर ,बुलंदशहर से ५६० किलोमीटर की यात्रा कर के धक्के खाकर ,पैसे लुटाकर ,समय बर्बाद कर पहुँचोफिर वहां होटलों में ठहरों ,अपने स्वास्थ्य से लापरवाही बरत नापसंदगी का खाना खाओ ,गंदगी में समय बिताओ और फिरन्याय मिले न मिले उल्टे पाँव उसी तरह घर लौट आओ .ऐसे में १९७९ से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट खंडपीठ केआन्दोलन कारियों में से आगरा के एक अधिवक्ता अनिल प्रकाश रावत जी द्वारा विधि मंत्रालय से यह जानकारी मांगी जानेपर -''कि क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खंडपीठ स्थापना के लिए कोई प्रस्ताव विचाराधीन है ?''पर केन्द्रीय विधि मंत्रालय केअनुसचिव के.सी.थांग कहते हैं -''जसवंत सिंह आयोग ने १९८५ में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठस्थापित करने की सिफारिश की थी .इसी दौरान उत्तराखंड बनने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिले उत्तराखंड केअधिकार क्षेत्र में चले गए वहीँ नैनीताल में एक हाईकोर्ट की स्थापना हो गयी है .इस मामले में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कीराय मागी गयी थी .इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की किसी शाखा कीस्थापना का कोई औचित्य नहीं पाया है .'' सवाल ये है कि क्या उत्तराखंड बनने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्टसे दूरी घट गयी है ?क्या नैनीताल हाईकोर्ट इधर के मामलों में दखल दे उनमे न्याय प्रदान कर रही है ?और अगर हाईकोर्ट केमाननीय मुख्य न्यायाधीश को इधर खंडपीठ की स्थापना का कोई औचित्य नज़र नहीं आता है तो क्यों?क्या घर से जाने परयदि किसी को घर बंद करना पड़ता है तो क्या उसके लिए कोई सुरक्षा की व्यवस्था की गयी है ?जबकि यहाँ यू.पी.में तो ये हालहै कि जब भी किसी का घर बंद हो चाहे एक दिन को ही हो चोरी हो जाती है .और क्या अपने क्षेत्र से इलाहाबाद तक के सफ़र केलिए किसी विशेष सुविधा की व्यवस्था की गयी है ?.क्या इलाहाबाद में वादकारियों के ठहराने व् खाने के लिए कोई व्यवस्था कीगयी है ?जबकि वहां तो रिक्शा वाले ही होटल वालों से कमीशन खाते हैं और यात्रियों को स्वयं वहीँ ले जाते हैं .और क्या मुक़दमेलड़ने के लिए वादकारियों को वाद व्यय दिया जाता है या उनके लिए सुरक्षा का कोई इंतजाम किया जाता है ?जबकि हाल तो येहै कि दीवानी के मुक़दमे आदमी को दिवालिया कर देते हैं और फौजदारी में आदमी कभी कभी अपने परिजनों व् अपनी जान सेभी हाथ धो डालता है .पश्चिमी यू.पी .की जनता को इतनी दूरी के न्याय के मामले में या तो अन्याय के आगे सिर झुकानापड़ता है या फिर घर बार लुटाकर न्याय की राह पर आगे बढ़ना होता है . न्याय का क्षेत्र यदि हाईकोर्ट व् सरकार अपनी सहीभूमिका निभाएं तो बहुत हद तक जन कल्याण भी कर सकती है और न्याय भी .आम आदमी जो कि कानून की प्रक्रिया केकारण ही बहुत सी बार अन्याय सहकर घर बैठ जाता है .यदि सरकार सही ढंग से कार्य करे तो लोग आगे बढ़ेंगे .यदि हाईकोर्टसरकार सही ढंग से कार्य करें .यह हमारा देश है हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था है फिर हमें ही क्यों परेशानी उठानी पड़ती है ?अधिवक्ताओं के इस आंदोलन को लेकर प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी पक्ष में थे और प्रधानमंत्री प्रसिद्द किसान नेता चौधरी चरण सिंह भी किन्तु किसी ने भी इस सम्बन्ध में अधिवक्ताओं का साथ नहीं दिया और यही कार्यप्रणाली आज की भाजपा सरकार अपना रही है इस पार्टी के गृह मंत्री राजनाथ सिंह पहले अधिवक्ताओं को आश्वासन देते हैं कि यह मुद्दा सरकार के एजेंडे में है और सत्र के बाद इस पर सकारात्मक फैसला होगा और बाद में ये कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि मैंने हाईकोर्ट विभाजन समबन्धी कोई बयान नहीं दिया और यही काम हाईकोर्ट कर रही है इस मुद्दे का सही व् सकारात्मक हल करने की बजाय वह अधिवक्ताओं को भड़का रही है किन्तु सरकार और हाईकोर्ट का अभी तक भी इस संबंध में इधर के प्रति कोई सकारात्मक रुख दिखाई नहीं दिया है ऐसे में यह लगता ही नहीं है कि यहाँ प्रजातंत्र है हमारी सरकार है .जब अपने देश में अपनी सरकार से एक सही मांग मनवाने के लिए ३०-४० वर्षों तक संघर्ष करना पड़ेगा तब यह लगना तो मुश्किल ही है . और उपरोक्त तथ्यों के आधार पर हम न्याय के मंदिर की भूमिका भी इस समस्या के समाधान में सकारात्मक नहीं कह सकते क्योंकि दोनों ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता के न्याय के हक़ को मार रहे हैं जबकि अगर ये दोनों अपनी सही जिम्मेदारी को निभाएं तो संविधान की मर्यादा को ,जनता को दिए न्याय के अधिकार को पूरा कर पाएंगे . शालिनी कौशिक (