''जो भरा नहीं है भावों से ,
बहती जिसमे रसधार नहीं .
वह ह्रदय नहीं है पत्थर है ,
जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं .''
बचपन से राष्ट्रप्रेम की ये पंक्तियाँ पढ़ते हुए ह्रदय में राष्ट्र भावना सर्वोपरि रही किन्तु आज के दो समाचार इस भावना में थोड़ा सा हेर-फेर कर गए और वह हेर-फेर स्वदेश के स्थान पर इन पंक्तियों को कुछ यूँ ह्रदय में टंकित कर गया -
'' वह ह्रदय नहीं है पत्थर है ,
जिसमे बच्चे का प्यार नहीं .''
और किसी अन्य हेर-फेर के स्थान पर सभी ये समझ सकते हैं कि ये किसी गैर के बच्चे के लिए नहीं बल्कि अपने खुद के बच्चों के लिए प्यार की बात हो रही है . आज के दो समाचार एक तो सीधी तरह से माँ का बेटे के प्रति अनुराग दर्शित कर रहा है तो दूसरा समाचार घुमा-फिराकर बाप का बेटे के हिट को सर्वोपरि महत्व देता हुआ दिखा रहा है .
अध्यक्ष बनाये बगैर सोनिया ने खुद ही पार्टी से दूरी बना कर राहुल के हाथों में पार्टी की कमान सौंप दी और यह तब जबकि राहुल अब तक के राजनीति क कैरियर में पार्टी के लिए अपनी कोई उपयोगिता साबित नहीं कर पाए हैं और काफी हद तक पार्टी की राह में बाधा ही दिखाई दिए हैं लेकिन पुत्र मोह इस देश में इस कदर माँ-बाप के दिलो-दिमाग पर हावी होता है कि वे हज़ार दुःख देने पर भी बेटे से कहते हैं -
'' खुश रहो हर ख़ुशी है तुम्हारे लिए ,
छोड़ दो आंसुओं को हमारे लिए .''
और इसी का असर है कि सोनिया इटली निवासी होते हुए भी भारतीयता के रंग में रंग बेटे की ताजपोशी की राह आसान कर गयी .चलिए ये तो हुई माँ की बात जो भले ही कुछ भारत वासियों की नज़रों में विदेशी हों किन्तु माँ इस धरती पर कहीं की भी हो होती अपनी संतान की ही है पर राजनीति का आकाश तो कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है यहाँ तो बाप माँ से बढ़कर ही कदम उठा रहा है .
हमारे माननीय नेता मुलायम सिंह जी जिनके सुपुत्र अखिलेश यादव ने वर्तमान चुनाव नेताजी के नाम से लड़ स्वयं गद्दी संभाल मुगलों में अपना नाम लिखा दिया जिसमे बेटा बाप को दरकिनार कर खुद आगे बढ़ जाता है और उनके नाम का पूरा फायदा उठा अखिलेश ने मुलायम की अब तक मुसलमानों के ह्रदय में बनायीं सारी जगह २०१३ के दंगों में उनके साथ घटी नाइंसाफी में गँवा दी और स्थिति ये बन गयी कि अबकी बार चुनावों में मुसलमान भी सपा से किनारा करते नज़र आने लगे ,ऐसे में मुलायम अपना पुत्र प्रेम दिखाने को प्रख्यात शायर वसीम बरेलवी की इन पंक्तियों के अंदाज में सामने आये हैं -
'' दिल में मंदिर सा माहौल बना देता है ,
कोई एक शमा सी हर शाम जला देता है .
जिंदगी दी है तो ये शर्त इबादत न लगा ,
पेड़ का साया भला पेड़ को क्या देता है .''
सपा से आज भी जो अधिकांश जो जुड़े हुए हैं वे दागी हैं . अखिलेश की स्वच्छ छवि बनी रहे और वे जनता को बाप -चाचा के सामने मजबूर दिखाई दें और सपा दबंगई से ये चुनाव भी जीत जाये इसलिए मुलायम ने ये जोरदार दांव चला है ''सारा इलज़ाम शिवपाल के माथे और अखिलेश की बल्ले-बल्ले .इनके पास जो उम्मीदवार बचे-खुचे हैं ,दागी हैं ,हार की शत-प्रतिशत सम्भावना में उन्हें ही वे टिकट देंगे और बाप बेटे की इस पार्टी में चाचा की भूमिका केवल बदनामी के लिए ही तय की गयी है वैसे भी शिवपाल का नाम राजनीति के मैदान में कोई महत्व तो रखता नहीं है इसलिए इन बातों को मद्देनज़र रखते हुए खुद ही विचारिये कि ''पेड़ का साया भला पेड़ को क्या देता है .''
माँ-बाप का ये संतान मोह राजनीति के लिए आदर्श है क्योंकि कलियुग में केवल अहं ही रह गया है और राजनीति तो वह जगह है जिसके लिए 'सिकंदर 'हयात 'कह गए हैं -
''मुझे इज़्ज़त की परवाह है , न मैं जिल्लत से डरता हूँ ,
अगर हो बात दौलत की तो हर हद से गुजरता हूँ .
मैं नेता हूँ मुझे इस बात की है तरबियत हासिल
मैं जिस थाली में खाता हूँ उसी में छेद करता हूँ .''
ऐसे में संतान मोह के कारण राजनीति में उच्च आदर्श की स्थापना करने वाले सोनिया गाँधी व् मुलायम सिंह नमन के पात्र हैं जो कम से कम राजनीति में अपने से इतर किसी का ध्यान तो रख रहे हैं वर्ना वहां तो सभी जहर का कारोबार कर दूसरों के लिए मौत के द्वार खोलने का ही काम करते हैं .इसलिए अंत में एक बार इन शब्दों में पुनः इन दोनों महान आत्माओं को नमन -
''जहर सारे जहाँ का पी रहे हैं ,
जनम से आजतक पापी रहे हैं .
महापुरुषों नमन तुमको ह्रदय से
तुम्हारा नाम लेकर जी रहे हैं .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]