थी कातिल में कहाँ हिम्मत ,मुझे वो क़त्ल कर देता ,
अगर मैं अपने हाथों से ,न खंजर उसको दे देता .
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वो बढ़ जाए भले आगे ,लिए तलवार हाथों में ,
मिले न जिस्म मेरा ये ,क़त्ल वो किसको कर लेता .
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बढ़ाते हैं हमीं साहस ,जुर्म करने का मुजरिम में ,
क्या नटवर लाल सबके घर ,तिजोरी साफ़ कर लेता .
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जला देते हैं बहुओं को ,तभी कम्बख्त ससुराली ,
बेचारी बेटियों का जब ,मायका साथ न देता .
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कहीं गुंडे नहीं पलते ,न गुंडागर्दी चलती है ,
समझकर '' शालिनी '' को जब ,ज़माना साथ है देता .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]