राज्यसभा अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित, तीन तलाक बिल लटका राज्यसभा शुक्रवार को अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित हो गई है. इसके चलते तीन तलाक बिल लटक गया है .सभापति ने गतिरोध खत्म करने के लिए सरकार और विपक्ष की बैठक बुलाई थी जो बेनतीजा रही.लोकसभा में 28 दिसंबर 2017 को एक साथ तीन तलाक पर रोक लगाने वाला ऐतिहासिक मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2017 बिना किसी संशोधन के पास हो गया। सदन में विधेयक के खिलाफ सभी संशोधन खारिज हो गए थे .सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिए जाने पर यह तो साफ हो गया था कि सरकार को इसे लेकर अब कोई कानून जल्द ही बनाना होगा किन्तु सरकार ने जो इस सम्बद्ध में कानून बनाया उसे लेकर विपक्ष और मुस्लिम संगठनों में रोष है .
सरकार द्वारा लाये गए इस बिल की दस विशेष बातें निम्नलिखित हैं -
1-यह एक महत्वपूर्ण बिल है जिससे एक साथ तीन तलाक देने के खिलाफ सज़ा का प्रावधान होगा जो मुस्लिम पुरुषों को एक साथ तीन तलाक कहने से रोकता है। ऐसे बहुत से मामले हैं जिनमें मुस्लिम महिलाओं को फोन या सिर्फ एसएमएस के जरिए तीन तलाक दे दिया गया है।
2-इस बिल में तीन तलाक को दंडनीय अपराध का प्रस्ताव है। ये बिल तीन तलाक को संवैधानिक नैतिकता और लैंगिक समानता के खिलाफ मानता है। इस बिल के प्रावधान के मुताबिक, अगर कोई इस्लाम धर्म मानने वाला फौरन तीन तलाक देता है यह दंडनीय होगा और उसके लिए उसे तीन साल तक की जेल हो सकती है।
3- इस बिल को गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में अंतर-मंत्रिस्तरीय समूह ने तैयार किया है। जिसमें तीन तलाक यानि तलाक-ए-बिद्दत वो चाहे किसी भी रूप में हो जैसे- बोलकर, लिखित या फिर इलैक्टोनिक (एमएसएस या व्हाट्स एप), वह अवैध होगा। उसके लिए पति को तीन साल की कैद का प्रावधान है। इसे केन्द्रीय मंत्रीपरिषद की ओर से पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है।
4-बिल के प्रावधान के मुताबिक, पति के ऊपर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। लेकिन, कितना जुर्माना हो यह फैसला केस की सुनवाई के दौरान मजिस्ट्रेट की ओर से सुनाया जाएगा।
6- प्रस्तावित कानून सिर्फ एक साथ तीन तलाक पर ही लागू होगा और इसमें पीड़ित को यह अधिकार होगा कि वह मजिस्ट्रेट से गुजारिश कर अपने लिए और अपने नाबालिग बच्चे के लिए गुजारा भत्ते की मांग करे। इसके अलावा महिला मजिस्ट्रेट से अपना नाबालिग बच्चे को अपने पास रखने के लिए भी दरख्वास्त कर सकती है। अंतिम फैसला मजिस्ट्रेट का ही होगा।
7- इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर सुनवाई के दौरान इसे असंवैधानिक करार दिया था। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जे.एस. खेहर ने केन्द्र सरकार को यह निर्देश दिया था कि वह इस बारे में एक कानून लेकर आए।
8- तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के आए आदेश का देशभर में स्वागत किया गया था। खासकर, मुस्लिम महिलाओं ने इस जबरदस्त तरीके से समर्थन किया।
9- हालांकि, एक साथ तीन तलाक को आपराधिक बनाने से सभी खुश नहीं है। कुछ मुस्लिम विद्वानों और संगठनों ने इसका विरोध किया है। इसके साथ ही, वे इसे मुस्लिम पर्सनल शरिया कानून में दखल मान रहे हैं।
10- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने इस बिल का विरोध किया है। बोर्ड का कहना है कि यह बिल शरिया कानून के खिलाफ है और अगर यह कानून बनता है तो कई परिवार तबाही के कगार पर आ जाएंगे।
तीन तलाक विधेयक को लेकर सरकार को सभी का समर्थन है किन्तु इसमें फौजदारी लगाने के कारण इसका मुस्लिम संगठनों द्वारा व् असदुद्दीन ओवेसी द्वारा विरोध किया जा रहा है .इस बीच, तीन तलाक को अपराध करार देने वाले विधेयक का विरोध करते हुए हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि घरेलू हिंसा के लिए बने कानून से ही ऐसे मामलों को रोका जा सकता था. उन्होंने तीन तलाक के लिए नया कानून बनाने की जरूरत पर सवाल उठाया.उधर, विपक्षी कांग्रेस ने कहा कि वह तीन तलाक विधेयक का समर्थन करती है, लेकिन सलाह देते हुए कहा कि विधेयक मुस्लिम महिलाओं के पक्ष को मजबूत करने वाला होना चाहिए. पार्टी ने साथ ही कहा कि कानून द्वारा यह सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है कि तलाकशुदा महिलाओं और उनके बच्चों को निर्वहन और भरण-पोषण भत्ता मिलता रहे. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, "कांग्रेस त्वरित (इंस्टैंट) तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करने वाली पहली पार्टी थी और यह महिलाओं के हितों की रक्षा करने की दिशा में एक मजबूत कदम है."
अगर वास्तव में देखा जाये तो इस विधेयक में तलाक तलाक तलाक बोलने पर जो तीन साल की सजा का प्रावधान रखा गया है वह इसके विरोध के बीज बोता है क्योंकि यह इस मुस्लिम महिलाओं को मजबूती नहीं देता बल्कि उनकी स्थिति और भी ख़राब करता है क्योंकि तीन तलाक के खिलाफ होने का उनका मकसद केवल अपना घर बचाना है न कि पति को जेल कराकर अपने जीवन की नैय्या को भंवर में डुबो देना और ऐसा नहीं है कि केवल भारत में ही तीन तलाक का विरोध हो रहा है और वह इसके खिलाफ कड़ा कानून बनाकर मुस्लिम महिलाओं को अन्य देशो के मुकाबले ज्यादा सुरक्षा दे रहा है बल्कि यह इस तरह का कानून बनाकर स्वयं महिलाओं को प्रेरित कर रहा है कि वे पति के द्वारा कहे गए इस शब्द को छिपाकर मुस्लिम कानून को ही स्वीकार कर अपनी ज़िंदगी को अँधेरे के हवाले कर दें .
तीन तलाक को लेकर और देश हमसे आगे हैं और सही पहल के द्वारा उन्होंने इस पर काफी हद तक रोक भी लगा ली है .हम अन्य देशो के द्वारा इसके सम्बन्ध में किये गए प्रयास को ऐसे देश सकते हैं -
1 -मिस्र - तीन बार तलाक कहना, तलाक की शुरुआती प्रक्रिया है. इसे सिर्फ एक गिना जाएगा. इसके बाद 90 दिन का इंतजार करना होगा.
2 -ट्यूनीशिया- जज से मशविरा किये बिना पति पत्नी को तलाक नहीं दे सकता. जज को तलाक का कारण समझाना होगा. तलाक की पूरी प्रक्रिया अदालत के सामने होगी. कोर्ट अगर तालमेल बैठाने का निर्देश दे तो वह अनिवार्य होगा.
3 -पाकिस्तान - पति को सरकारी संस्था को तलाक की इच्छा के बारे में जानकारी देनी होगी. नोटिस के बाद काउंसिल तालमेल बैठाने के लिए 30 दिन का समय देगी. तालमेल फेल होने और नोटिस के 90 दिन बाद तलाक वैध होगा.
4 -इराक - तीन तलाक कहने को एक ही चरण गिना जाएगा. पत्नी भी तलाक की मांग कर सकती है. आगे की कार्रवाई कोर्ट करेगा. कोर्ट के फैसले के बाद ही तलाक होगा.
5 -ईरान - तलाक आपसी सहमति से होना चाहिए. तलाक लेने वालों को काउसंलर के पास जाना ही होगा. तलाक से पहले मेल मिलाप की कोशिश जरूर की जानी चाहिए.
6 -बाकी कौन - तुर्की, साइप्रस, बांग्लादेश, अल्जीरिया और मलेशिया ने ट्यूनीशिया और मिस्र के नियमों को आधार बनाया है. वहां भी सिर्फ तीन तलाक कहकर शादी खत्म नहीं की जा सकती.
[आभार -रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी]
और फिर ऐसा तो नहीं है कि सरकार द्वारा इस तरह से तलाक पर पूरी तरह से रोक लगायी जा रही है बल्कि यह तो केवल इस्लाम में तलाक का एक तरीका है जिसके द्वारा इस्लाम के मर्द अपनी औरतों से एकदम छुटकारा पा लेते हैं इसके अलावा भी इस्लाम में तलाक के और तरीके हैं और उन सबपर रोक लगाने के लिए सरकार शरिया कानून में दखल नहीं दे सकती और इस तरह मुसलमानों को तलाक़ देने से भी नहीं रोक सकती जब उन्होंने तलाक देने की सोच ली है तब वे इसके जरिये नहीं तो किसी और तरीके से तलाक देंगे और फिर मुसलमाओं में चार शादियां की जा सकती है भले ही तीन एक तरफ पड़ी रहें उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता तो इस सबके लिए कानून बनाते वक्त सरकार को इसपर तो ध्यान देना ही होगा कि कानून ऐसा बनायें जो मुस्लिम आदमी औरतों दोनों को मंजूर ही और ऐसे में तीन तलाक की जो प्रक्रिया है इसे अस्तित्वहीन करना ही पर्याप्त है अर्थात भले ही पति बार बार भी तीन तलाक बोलता रहे इसे बक-बक से ज्यादा महत्व न दिया जाये और उससे यही कहा जाये कि वह शरीयत के नियमों का पालन करे और अगर देना ही है तो सही तरीके से तलाक दे ऐसे में अगर उसकी अक्ल ठिकाने आ जाती है तो ठीक और अगर वह किसी गैरकानूनी हरकत पर उतरता है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 498 -क व् घरेलू हिंसा कानून तो हैं ही .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]