प्रकाश अपनी सोशल मीडिया इमेज को लेकर बड़ा सजग रहता था। उसका मानना था कि जीवन में कोई भूल-चूक हो जाए तो चलता है पर इंटरनेट की आभासी दुनिया के प्रवासियों के सामने ज़रा सी भी कोताही नहीं। उसे कौनसे महान लोग या घटनाएं प्रेरणा देते हैं, कौनसी बातों और रुचियों को वह फॉलो करता है…सोशल मीडिया साइट्स पर सब नपा तुला दर्शाना। आभासी दुनिया के किसी मुद्दे पर अगर किसी दूसरे इंसान का मत उससे अलग हुआ प्रकाश झल्ला जाता था लेकिन अब सोशल मीडिया पर ‘बड़प्पन’ का नाटक भी करना है। इस कारण वह ऐसे दिखाता जैसे उसे फर्क नहीं पड़ा और वह इन बातों से ऊपर है। सामान्य बहस होने पर पहले वह कुछ ख़बरों, लेख वगैरह के लीक से हटकर और ढाई किलोमीटर लंबे लिंक लेकर आता। उसका मकसद सामने वाले इंसान को समझाने के बजाय तुरंत उसके हथियार डलवाना होता था ताकि उसका फैनबेस उसपर शंका न करे।
इस बीच प्रकाश के खास गुर्गे उसका गुणगान कर देते, टिप्पणियों पर पसंद और दिल चिपका देते, वहीं प्रकाश से अलग विचार वाले इंसान की टिप्पणियों पर मज़ाक उड़ाती बातें और इमोजी डाल देते। ऐसे में वह मुद्दा पढ़ने वाले लगभग सभी अपने-आप प्रकाश को सही और दूसरे व्यक्ति को बचकाना मान लेते। ऐसी सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लेकर वह न जाने कितने लोगों को ब्रेनवाश करता।
फिर भी बात न बनती तो अंत में वह बह्रमास्त्र छोड़ता - “तुम इस फील्ड की बात कर रहे हो…क्या इस क्षेत्र से जुड़ी तुमने फलाना-फलाना कुछ किताबें पढ़ी भी हैं जो तुम 'मुझसे’ (जिसको इतना ज्ञान है) से बहस करने की हिम्मत कर रहे हो?”
मुख्य विषयों और बातों की सबसे चर्चित कुछ दर्जन किताबें वह वाकई घोट कर पी चुका था। इनके अलावा दूसरी कई किताबों का सार पढ़ने में प्रकाश की गहरी रुचि थी। ज़ाहिर है सीखने के लिए कम और धौंस जमाने या आगे किसी बहस-'शो ऑफ’ में स्टाइल झाड़ने के लिए ज़्यादा। सतही मेहनत के महल को पक्का बनाए रखने के लिए वह एक काम और करता। प्रकाश किसी से बहस या उसका मज़ाक उड़ाने से पहले जांच लेता था कि कहीं सामने वाला इस क्षेत्र का बड़ा ज्ञानी तो नहीं। अगर हाँ तो घुमा-फिरा कर और ध्यान बंटाकर विषय बदल देता या उस व्यक्ति को दूसरे क्षेत्र की बहस में लाने की कोशिश करता।
एक दिन प्रकाश की बहस इंजीनियरिंग कर रहे लड़के प्रवीण से हुई। बहस एक राज्य की राजनीती पर थी। प्रकाश को अपने जीतों की सूची में एक आसान जीत और दिख रही थी। लड़के ने प्रकाश की बात से अलग पक्ष रख उसकी शान में गुस्ताख़ी कर दी थी…सज़ा तो बनती थी। बात बढ़ती गई और प्रकाश ने अपने सारे पैंतरे आज़माए। कई लोग प्रकाश की तरफदारी करने आए और प्रवीण के कुछ साथी छात्रों ने उसका समर्थन किया। अंत में प्रकाश ने उस राज्य की राजनीती पर 5-7 मशहूर किताबों और कुछ शोध कार्यों का ज़िक्र किया। जवाब में प्रवीण ने अपनी पढ़ी, सुनी-देखी हुई सामग्री की बात कही….लेकिन असंगठित लेख आदि चाहे जितनी संख्या में हों…कहाँ मशहूर पुस्तकों के आगे टिक पाते। (ऐसा प्रकाश और आभासी दुनिया के कई लोगों का मानना था) अति आत्मविश्वास में प्रकाश ने यह भी स्वीकार लिया कि उस राज्य पर उसने इतना ही पढ़ा है और यह उन 'बच्चों’ के सामने आई सामग्री से कहीं ज़्यादा महत्व रखता है।
“अच्छी बात है, सर। हाल ही में मद्रास यूनिवर्सिटी और कोंकण यूनिवर्सिटी के साझा प्रयास से सबके इस्तेमाल के लिए मुफ़्त 'बहसनेटर’ नामक सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है। इसमें दो या ज़्यादा पक्षों के तर्क के पीछे जानकारी के सभी स्रोतों की निष्पक्षता और जानकारी के स्तर की तुलना की जाती है।”
प्रकाश ने ऐसी उम्मीद नहीं की थी। उसने जवाब दिया - “ऐसा नहीं हो सकता…किसी भी क्षेत्र में ज्ञान और जानकारी की कोई सीमा नहीं होती। तो फिर कौन ज़्यादा और कौन कम?”
प्रवीण को ऐसे सवाल की ही उम्मीद थी - “सहमत हूँ, वैसे तो किसी भी क्षेत्र में जानकारी की कोई सीमा नहीं पर किसी विषय पर दो पक्षों को तुलनात्मक रूप से कितनी जानकारी पता है और उसमें से कितनी सही, गलत या विवाद करने लायक है का एक अंदाज़ा लगता है, नतीजे में 5-10 प्रतिशत का अंतर हो सकता है पर ज़्यादा नहीं।”
प्रकाश का धैर्य टूट रहा था - “हाँ, तो यह सब मुझे क्यों बता रहे हो?”
प्रवीण - “आपकी बताई किताबों, शोध आदि को एक पक्ष में रखा और हमारे बताए गए लेख, वीडियो आदि सामग्री दूसरे पक्ष में…सॉफ्टवेयर से मिला रिजल्ट यह है कि इस विषय पर आपके पक्ष की तुलना में हमारे पक्ष के पास 79.2% ज़्यादा जानकारी है। हाँ, संभव है कि इस सॉफ्टवेयर में कमियां हों पर यहाँ 20-30 नहीं बल्कि लगभग 80% का अंतर दिख रहा है। आपको बाकी विषयों की जानकारी होगी पर यहाँ तो कम से कम चुप ही रहें।
एक आखिरी बात और क्योंकि मैंने आपका ऑनलाइन ढोंग काफी समय से देखा है। मुझे पता है इसके बाद आप मेरा और मेरे दोस्तों का मज़ाक उड़ाएंगे, इस सॉफ्टवेयर को हवाई बताएंगे और अपने खलिहर फॉलोअर्स से हमें बुली करवाएंगे। आप यहाँ ही नहीं रुकेंगे कुछ दिन बाद आप इस विषय पर अपनी बात को सही साबित करते हुए लंबी पोस्ट लिखेंगे और उसके फॉलो-अप में बातें लिखते रहेंगे क्योंकि आप तो कभी गलत नहीं हो सकते। आप तो फ़रिश्ते पैदा हुए हो जो आज तक किसी भी विषय में कमतर या गलत साबित नहीं हुआ। किताबें पढ़ना अच्छी बात है पर उसके बाद आप जो ओछी हरकतें करते हैं वह सब गुड़ गोबर कर देती हैं। मेरी बस एक सलाह है, खुद को सही मानें पर फालतू की आत्ममुग्धता से बचें। सामने वाला इंसान कुछ कह रहा है तो पहले उसकी बात को समझें। कोई विपरीत पक्ष आने पर आप उस इंसान की बात को ऐसे नकारते हैं जैसे वह परसों पैदा हुआ हो। जिन वेबसाइट जैसे रेडिट, क्वोरा आदि का हमनें हवाला दिया है वहां अनगिनत मुद्दों पर तो करोड़ो शब्दों की सामग्री पड़ी है जिसमें से सब नहीं तो लाखों शब्द काम के हैं और दर्जनों किताबों के बराबर हैं। किसी ने अगर असंगठित जगहों से थोड़ी-थोड़ी जानकारी ली है तो इसका यह मतलब नहीं कि उसे 'कुछ’ पता ही नहीं। हो सकता है उसके थोड़े-थोड़े दशमलव जुड़कर आपके एक जगह के चौके-छक्के से कहीं ज़्यादा हो जाएं। मैं देखना चाहूंगा कि बहसनेटर पर आप और सोशल मीडिया पर ज्ञान की दुकान खोले बैठे कई लोग बाकी विषयों में कितने पानी में हैं। आपकी प्रोफाइल मैंने हैक कर ली है…घबराएं नहीं कोई गलत इस्तेमाल नहीं करूंगा पर पिछले कुछ महीनों के आपके स्टंट बहसनेटर पर तोलकर आपकी सभी सोशल मीडिया प्रोफाइलों पर आपके नाम से ही डाल रहा हूँ। आगे दोबारा नौटंकी की कोशिश की तो फिर से प्रोफाइल हैक करके ऐसा करूंगा। पुलिस को ज़रूर बताएं…मुझे आपके इनबॉक्स में मिली सामग्री की कसम आपसे कम ही सज़ा होगी। इस बहस से जुड़े और बाकी 'काम के’ सारे स्क्रीनशॉट ले लिए हैं। धन्यवाद!”
प्रकाश का उसी के खेल में शिकार हो चुका था। उसका आभासी स्टारडम और दिमाग अपनी जगह पर आ गए।
समाप्त!
#ज़हन