बहुत पुरानी बात है...ऐसा लेख क को लगता है पर आप अपने हिसाब से टाइमलाइन सेट कर लो, कोई फॉर्मेलिटी वाली बात नहीं है। मैटरनल काका नाम का एक राजा था, जिसके द्वारा स्थापित पीपणीगढ़ नामक एक विशाल राज्य था, मतलब भोम्पूगढ़ जितना विशाल नहीं पर फिर भी विशाल मेगा मार्ट से बड़ा तो कहूंगा मैं! तो राजा मैटरनल काका को अपनी सेना और आम जनता को परेशान कर के बड़ा सुख मिलता था। आखिर अपने से कमज़ोर को सताने में किसे मज़ा नहीं आता? पता नहीं किसी वैद्य ने उन्हें मानसिक थेरेपी बताई थी या यह चीज़ मैटरनल ने स्वयं सोची थी।
एक दिन मैटरनल काका रोज़ की खुराफात करने निकले थे और उन्हें टीले के पीछे एक सिर पर बड़े सलीके से काढ़े गए बाल दिखे। अचानक उनके मन में मिसमिसी छूटने लगी और उनकी उँगलियों में थिरकन मचने लगी। वो तेज़ी से उन बालो के स्वामी के पास पीछे से आये और ऐसे कोण से लात जमाई की वह व्यक्ति कलामंडी खाता हुआ नीचे जाकर गिरा। उसका शरीर मिट्टी में लोटमपोट हो गया पर उसके बाल अभी तक व्यवस्थित थे। यह बात पूर्णतावादी मैटरनल को कहाँ रास आने वाली थी? राजा ने उस भ्रमित व्यक्ति का खोपड़ा पकड़ के मिट्टी में लोटा दिया। कुछ इस तरह कि बेचारे व्यक्ति का एक-एक बाल भूरा हो जाए।
अपनी विजय का आनंद उठाते मैटरनल काका को तब झटका लगा जब वह व्यक्ति एक सिद्ध मुनि निकला। धूलधुसरित मुनि पहले थोड़ी देर बच्चो की तरह रोये, फिर शांत होने के बाद जब वो राजा को श्राप देने को हुए तो मैटरनल अपने सैनिको के साथ वहाँ से भाग गया। उसे लगता था कि श्राप सिर्फ आमने-सामने दिया जा सकता है, ऐसा ही उसने कथाओं में सुना था। मुनि के नाक, कान, मुँह में मिट्टी भर गयी थी इसलिए वो आराम से श्राप सोच नहीं पाए और गुस्से में उन्होंने राजा के राज्य के कई गाँवो को अजीब सा श्राप दे डाला। उस दिन के बाद से किसी गाँव में सिर्फ लड़के जन्म लेने लगे और किसी गाँव में सिर्फ लड़कियां। शुरुआत के कुछ महीने तो सब सामान्य रहा पर धीरे-धीरे लोगो को आभास हुआ कि किसी अपशगुन या श्राप के कारण राज्य के गाँवों में यह अजीब असंतुलन बढ़ रहा है। राजा के साथ रहने वाले मंत्री ने सभी घटनाओ का अवलोकन किया और पाया की मैटरनल द्वारा किसी सिद्ध व्यक्ति को परेशान करने के कारण ऐसा हो रहा है। राजा को सलाह दी गयी कि अबतक जिन सिद्ध लोगो, मुनियों को उसने परेशान किया है सबसे क्षमा मांग ले। वहीं मैटरनल काका अपनी गलती मानने को तैयार नहीं था, उसने सभी गर्भवती महिलाओं, जवान युवक-युवतियों को उनके गाँव के अनुसार इस तरह चिन्हित कर बसाया कि आगे पैदा होने वाले शिशुओं में गाँव के हिसाब से निर्धारित हो रहे लिंग की बाधा ना रहे। राजा ने ऐसी अकलमंदी जीवन में पहली बार दिखाई थी और परिणाम जानने के लिए वह उत्सुक था...कुछ महीनो बाद हद हो गयी! अब राज्य में पैदा होने वाले सभी बच्चे अलैंगिक या किन्नर के रूप में पैदा होने लगे, इसलिए कहते हैं ज़्यादा ओवरस्मार्टनेस कई बार गोबरस्मार्टनेस में बदल जाती है।
राजा हार कर सभी मुनियों के पास गया और अपनी भूली-बिसरी भूलों की क्षमा-याचना की, तब एक गंजे ऋषि ने उसे बताया कि किस तरह मैटरनल काका ने उसे पूजा करते हुए टीले से गिराया और उसे धूल-मिट्टी में लोटा दिया। राजा के मौका-ए-वारदात से भागने के बाद उसने झुंझलाहट में मैटरनल के राज्य को ऐसा श्राप दिया। उस दिन के बाद से मुनि प्रतिशोध में जलता रहा और उसने अपने सुन्दर, घने बाल राजा के पश्चयताप करने तक के लिए कटवा लिए (या शायद कुछ इतिहासकारो की माने तो उस घटना के बाद उन्हें काफी डेंड्रफ हो गई थी इसलिए बाल कटवा लिए)। अपनी बात वापस लेने और बाल दोबारा उगाने की उसकी एक ही शर्त थी...
...मुनि ने मैटरनल को पूरी शिद्दत से कीचड़, मिट्टी लोटा-लोटा के परमसुख की प्राप्ति की और अपना श्राप वापस लिया। राज्य के सभी नवजात सामान्य हुए और राजा को अपनी गलती का सबक मिला... मतलब अब वो किसी अनजान व्यक्ति का पूरा बैकग्राउंड देखकर उसे छेड़ता है।
समाप्त!
- मोहित शर्मा ज़हन