2 पुराने दोस्त राजीव मेहरा और मयंक शर्मा 18-20 सालों बाद मिले थे। भाग्य के फेर से अपनी ज़िंदगियों में काफी व्यस्त और एक-दूसरे से हज़ारों किलोमीटर दूर की शुरू के कुछ सालों बाद दोनों जैसे भूल ही गए अपने जिगरी यार के हाल-चाल लेना। इतने समय में कई चीज़ें बदल गयीं थी। अब प्रौढ़ अवस्था में वो किशोरों वाली फुर्ती नहीं थी और न ही हर बात पर ठहाके-ठिठोली। हाँ, पर दोनों की आँखों में वही पहले वाली चमक थी। बातें करते-करते दोनों छत पर आ गए, किनारे चेस बोर्ड और प्यादे पड़े थे।
मयंक - "यार पहले की तरह उछला-कूदा नहीं जा सकता पर चेस तो खेल ही सकते हैं। आ बैठ चारपाई पे!"
दोनों चेस की बाज़ी के साथ जीवन की बातें करने लगे।
राजीव - "भाई बड़ा मलाल हो रहा है। एक प्रॉपर्टी मुझे 4 साल पहले 37 लाख की मिल रही थी, मैंने तब ली नहीं किसी और चक्कर मे पड़ा था। उसके आस-पास कुछ सोसाइटी अप्रूव हो गईं, हाई-वे बन गया अब कीमत 8 करोड़ है उसकी। उस समय इधर ध्यान दिया होता, नादानी न की होती तो तो आज तेरा भाई आराम से रिटायर होता।"
मयंक - "बुरा हुआ!...तेरी बात से याद आया मैंने भी करोड़ो-अरबों की संपत्ति गंवा दी अपने हट और नादानी की वजह से।"
राजीव - "मज़ाक मत कर यार! मैं तुझे जानता हूँ... तू ठहरा एक साधु आदमी, ये प्रॉपर्टी वगैहरह में तू कभी नहीं पड़ने वाला।"
मयंक - "सोनिया देशपाल का नाम सुना है?"
राजीव - "हाँ, वो बैडमिंटन मे वर्ल्ड नंबर वन ना? अभी ओलिम्पिक मे कोई मेडल भी जीता है बच्ची ने..."
मयंक - "हाँ, वही! अंदर 14 नेशनल मीट में मेरी 12 साल की बच्ची रूपल ने अपनी सीनियर सोनिया को फाइनल मे हराया था। पढ़ाई मे औसत थी वो और क्लास 7 बड़ी मुश्किल से पास करवाई थी हमने उसे। टूर्नामेंट के बाद उसके क्लास 8 के पेपर थे, उसका ध्यान न डिगे इसलिए नेशनल मीट के बाद मैंने और तेरी भाभी ने इसे इतना मारा और सुनाया की उसने बैडमिंटन छोड़ दिया और यही हम चाहते थे।"
राजीव - "ओह! भाई ये तो बड़ी गलती हो गई! आज शायद रूपल भी सोनिया जैसे मेडल ला रही होती, बाहर के टूर्नामेंट जीत रही होती...पर तूने तो सिर्फ छोटी निवेदिता से मिलवाया। रूपल कहाँ है?"
मयंक - "उसके कुछ दिन बाद तनाव में रूपल ने आत्महत्या कर ली...अरबों-खरबों की संपत्ति, अपनी परी को मैंने अपने पागलपन में गंवा दिया।"
समाप्त!
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