दिनेश ऑफिस से थका हारा घर पहुंचा। उसकी पत्नी रूपाली जो 1 महीने बाद अपने मायके से लौटी थी, उसके पास आकर बैठी। दोनों बीते महीने की बातें करने लगे। फिर दिनेश ने महीने की बातों के अंत के लिए एक किस्सा बचा कर रखा था। “परसो एक आदमी फ़ोन पर बात कर रहा था। जल्दबाज़ी में ऑफिस के बाहर बैग छोड़ गया, मैंने फिर वापस किया…नहीं तो काफी नुक्सान हो जाता बेचारे का।”
रूपाली - “अरे वाह…प्राउड ऑफ़ यू! आखिर पति किसके हो! पर इसमें क्या ख़ास बात है जो बताने से पहले इतना हाइप बना रहे थे?”
दिनेश - “पहले मैंने बैग चेक किया। उसमे वीडियो कैमरा, डाक्यूमेंट्स, 75 हज़ार रुपये, घडी-कपडे टाइप सामान था। तो 17 हज़ार रुपये निकाले बाकी सामान एक बंदे से उसके पते पर छुड़वा दिया।”
रुपाली - “हौ! चोर! ऐसा क्यों किया? गलत बात!”
दिनेश - “देखो जैसा लोग काम करते हैं, वैसा उन्हें फल मिलता है, लापरवाही करोगे तो कुछ सज़ा मिलनी चाहिए ना? मुझे तो भगवान ने बस साधन बनाया। अब उस आदमी आदमी को सबक मिलेगा।”
रुपाली - “ये देखो गीता पढ़ कर भगवान कृष्ण के दूत बनेंगे सर। अरे लौटा दो बेचारे के पैसे।”
दिनेश - “नहीं हो सकता, ये देखो।”
रुपाली - “यह क्या है?”
दिनेश - “जो फ़ोन तुम्हे गिफ्ट किया उसकी रसीद। 16990 रुपये का है, अब 10 रुपये लौटाने क्या जाऊं। इसकी एक-एक ऑरेंज चुस्की खा लेते हैं।”
रुपाली - “यू आर सच ए…”
दिनेश - “आखिर पति किसका हूँ?”
समाप्त!
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- मोहित शर्मा ज़हन