दूसरे हृदयघात के बाद आराम से उठने के बाद उद्योगपति तुषार नाथ का व्यक्तित्व बदल गया था। पहले व्यापार पर केंद्रित उनका नजरिया अब किसी छोटे बच्चे जैसा हो गया था। छोटी-छोटी बातों पर चिढ जाना, उम्र के हिसाब से गलत खान-पान और व्यापार में हो रहे घाटे पर ध्यान ना देना अब उनके लिए आम हो गया था। परिवार और परिचितों को साफ़ लग रहा था कि उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ती जा रही है।
एक दिन उन्होंने अपनी दुकानों के सभी कर्मचारियों और अपने परिचित जनो को एक मंदिर के पास बुलाया। सभी चकित और कारण जानने के लिए आतुर थे कि ऐसी क्या आपात स्थिति आन पड़ी जो तुषार नाथ जी ने दो-ढाई सौ लोगो को अपने घर से अलग एक जगह बुलाया। तुषार जी की हरकतें और चेहरे के हाव-भाव देख कर लग रहा था कि कुछ गड़बड़ है। वो एक मंच पर चढ़े और माइक्रोफोन से सभी एकत्रित लोगो को संबोधित करने लगे।
"हेल्लो फ्रेंड्स! आज मैं आप सबको भोला भिखारी से मिलवाना चाहता हूँ।" इतना कहकर उन्होंने मंदिर की सीढ़ियों पर अंगड़ाई ले रहे एक भिखारी की तरफ इशारा किया।
एक कर्मचारी अपने मित्र से बोला - "मैं पहले ही कहता था कि हार्ट अटैक के बाद से बुडढा सटक गया है! लगता है अपनी संपत्ति इस भिखारी को देने वाला है।"
कुछ ऑफ टॉपिक बातें करने के बाद तुषार नाथ को अपना असल मुद्दा याद आया - "....हाँ, तो मैं कह रहा था कि आप सभी लोग भोला को हाय दो। मतलब हॉय-हेल्लो वाला नहीं जो दिल से किसी के लिए हाय निकलती है वो वाली हाय!"
ये क्या था? मतलब ये हुआ क्या? कुछ अचंभित, कुछ अपनी हँसी छुपाते पर सबके मन में यही बात थी।
तुषार नाथ - "मंदिर से लौटते हुए गलती से मेरा पैर इसके पैसे वाले कटोरे पर लग गया और इसके सिक्के सीढ़ियों पर नीचे बिखर गए। जब गुस्से में यह मेरी ओर मुझे मारने को बढ़ा तो मेरे गार्ड ने इसे 1 थप्पड़ लगा दिया। फिर इसने बोला कि एक गरीब की बड़ी हाय लगेगी मुझे....पर इस नादान को पता नहीं कि मैं कौन हूँ! इसलिए आप सब अमीरो, मिडिल क्लास लोगो को यहाँ भोला को लगभग 200 सामूहिक हाय लगाने के लिए बुलाया है।"
किसी त्यौहार पर मंदिर के पास से जयकारों की तेज़ ध्वनि आती थी। आज एक सामान्य दिन ऐसी ही एक आवाज़ गूँजी....
"....हाय!"
समाप्त!
- मोहित शर्मा ज़हन
Artwork: Katan Walker