9 वर्ष की बच्ची के साथ कुकर्म करने और उसे कोमा में पहुंचाने के बाद स्कूल सर्टिफिकेट के दम पर 15 वर्ष का पवन राज जुवेनाइल कोर्ट के कटघरे में मासूम बना खड़ा था। पुलिस, लड़की के परिजन, पत्रकार और स्वयं न्यायाधीश जानते थे कि लड़का 19-20 साल से कम नहीं है। पुलिस ने सही आयु जानने के लिए बोन डेंसिटी टेस्ट करने की मांग रखी तो लड़के के बाप ने मानवाधिकार आयोग से बाधा लगवा दी। लड़के को बाल सुधार गृह में सिर्फ 3 साल की कैद हुई। कई दुकानों वाले सुनार बाप मुकेश राज की पहुँच कम नहीं थी।
पवन को चिंता थी - "पापा जी, सुना है मेरे जैसे केस वालो को देखकर जुवेनाइल सेंटर के वार्डन पर पागलपन सवार हो जाता है। दो लड़को को पीट-पीट कर मार ही डाला, फिर कोई एक्सीडेंट दिखा दिया।" बाप जी ने दिलासा दिया - "घबरा मत! उस पगलऊ का मैं ट्रांसफर करवाता हूँ।"
वार्डन का ट्रांसफर हुआ और क्यों हुआ यह उसे पता था। जाते-जाते वार्डन ने कुछ कागज़ अपने विभाग में आगे किये और स्टाफ मीटिंग की। पवन अपने सेल में आया और उस रात समलैंगिक अफ़्रीकी किशोरों ने उसका सामूहिक दुष्कर्म किया। उसने मदद की गुहार लगायी पर स्टाफ या अन्य किशोर ने उसकी मदद नहीं की। पवन को लगा शायद एक बार की बात होगी पर अब यह उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया। एक दिन पवन ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया। पगलऊ वार्डन ने जाते-जाते रेव पार्टी में पकडे गए समलैंगिक अफ़्रीकी किशोरों का ट्रांसफर इस बाल सुधार गृह में पवन के सेल में करवाया था।
समाप्त!
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