दुनिया ऐसे लोगो से (साइकोलॉजी के मम्मी-पापाओं) भरी पड़ी है जो अपने छींट भर अनुभव के आधार पर स्वयं को मनोविज्ञान के और दूसरो का मन पढ़ने वाले महाज्ञाता समझने का भ्रम रखते है। इसका कारण है कि जिन कुछ लोगो से उनका नियमित मिलना-रहना होता है उनकी आदतों, उनके इतिहास अनुसार ये जो सोचते है वो अक्सर सही निकलता है। पर जब कोई अनजान व्यक्ति इनके सामने आता है तो उसकी कुछ बातों को जानकर ही ये छद्म मनोविज्ञानी अपने निष्कर्ष का पर्चा काट देते है। कई बेचारे इन जजमेंट्स की भेंट रोज़ाना चढ़ते होंगे। अपनी सुविधानुसार, जटिल बात को सरल मान लेते है और आसान बात को कठिन।
अब एक कलाकार ने अपनी चुनिंदा कलाकृतियों के साथ बिल्डिंग से कूदकर जान दे दी। स्थानीय, देसी-विदेशी मीडिया इस कहानी से आकर्षित होकर उसकी उन कलाकृतियों, घर एवम अन्य रचनाओ में कोड ढूंढने लगी उसकी आत्महत्या का, एक्सपर्ट्स व्यूज़, कांस्पीरेसी थ्योरीज़ और ना जाने कितने विश्लेषण। मरने से पहले उसके मन में कोड तो बस यही था बरसो से एक "स्थानीय" कलाकार को दुनियाभर में अपनी कला पहुंचानी थी।
वहीँ शहर के हिंसक माहौल का हवाला देकर पुलिस, मीडिया और जनता कभी एक सीरियल किलर को पहचान ही नहीं पाये। गधे! वो किलर भी फ्रस्टेट हो गया होगा कि क्या मनहूस जगह चुनी!
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