भारत में महिलाओं की मदद हेतु केंद्र और राज्य दोनों में महिला आयोग का गठन किया गया है जिनसे संपर्क करने के लिए 1091 व 181 हेल्पलाइन की व्यवस्था भी की गयी है. साथ ही, उत्तर प्रदेश में इस आयोग से संपर्क के नंबर 1800-180-5220 है. दोनों ही आयोगों के बारे में मुख्य जानकारी निम्नलिखित है -
राष्ट्रीय महिला आयोग -
राष्ट्रीय महिला आयोग (अँग्रेजी: National Commission for Women, NCW) भारतीय संसद द्वारा 1990 में पारित अधिनियम के तहत जनवरी 1992 में गठित एक सांविधिक निकाय है।यह एक ऐसी इकाई है जो शिकायत या स्वतः संज्ञान के आधार पर महिलाओं के संवैधानिक हितों और उनके लिए कानूनी सुरक्षा उपायों को लागू कराती है। आयोग की पहली प्रमुख सुश्री जयंती पटनायक थीं। 17 सितंबर, 2014 को ममता शर्मा का कार्यकाल पूरा होने के पश्चात ललिता कुमारमंगलम को आयोग का प्रमुख बनाया गया था,मगर पिछले साल सितंबर में पद छोड़ने के बाद रेखा शर्मा को कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर यह संभाल रही थी,और अब रेखा शर्मा को राष्ट्रीय महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है।
राष्ट्रीय महिला आयोग का उद्देश्य -
भारत में महिलाओं के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करने के लिए और उनके मुद्दों और चिंताओं के लिए एक आवाज प्रदान करना है। आयोग ने अपने अभियान में प्रमुखता के साथ दहेज, राजनीति, धर्म और नौकरियों में महिलाओं के लिए प्रतिनिधित्व तथा श्रम के लिए महिलाओं के शोषण को शामिल किया है, साथ ही महिलाओं के खिलाफ पुलिस दमन और गाली-गलौज को भी गंभीरता से लिया है।
बलात्कार पीड़ित महिलाओं के राहत और पुनर्वास के लिए बनने वाले कानून में राष्ट्रीय महिला आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अप्रवासी भारतीय पतियों के जुल्मों और धोखे की शिकार या परित्यक्त महिलाओं को कानूनी सहारा देने के लिए आयोग की भूमिका भी अत्यंत सराहनीय रही है।
आयोग के कार्य -
1.आयोग के कार्यों में संविधान तथा अन्य कानूनों के अंतर्गत महिलाओं के लिए उपबंधित सुरक्षापायों की जांच और परीक्षा करना है। साथ ही उनके प्रभावकारी कार्यांवयन के उपायों पर सरकार को सिफारिश करना और संविधान तथा महिलाओं के प्रभावित करने वाले अन्य कानूनों के विद्यमान प्रावधानों की समीक्षा करना है।
2.इसके अलावा संशोधनों की सिफारिश करना तथा ऐसे कानूनों में किसी प्रकार की कमी, अपर्याप्तता, अथवा कमी को दूर करने के लिए उपचारात्मक उपाय करना है।
3.शिकायतों पर विचार करने के साथ-साथ महिलाओं के अधिकारों के वंचन से संबंधित मामलों में अपनी ओर से ध्यान देना तथा उचित प्राधिकारियों के साथ मुद्दे उठाना शामिल है।
4.भेदभाव और महिलाओं के प्रति अत्याचार के कारण उठने वाली विशिष्ट समस्याओं अथवा परिस्थितियों की सिफारिश करने के लिए अवरोधों की पहचान करना, महिलाओं के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए योजना बनाने की प्रक्रिया में भागीदारी और सलाह देना तथा उसमें की गई प्रगति का मूल्यांकन करना इनके प्रमुख कार्य हैं।
5.साथ ही कारागार, रिमांड गृहों जहां महिलाओं को अभिरक्षा में रखा जाता है, आदि का निरीक्षण करना और जहां कहीं आवश्यक हो उपचारात्मक कार्रवाई किए जाने की मांग करना इनके अधिकारों में शामिल है। आयोग को संविधान तथा अन्य कानूनों के तहत महिलाओं के रक्षोपायों से संबंधित मामलों की जांच करने के लिए सिविल न्यायालय की शक्तियां प्रदान की गई हैं।
और उत्तर प्रदेश महिला आयोग -
प्रदेश में महिलाओं के उत्पीड़न सम्बन्धी शिकायतों के निस्तारण , विकास की प्रकिया में सरकार को सलाह देने तथा उनके सशक्तिकरण हेतु आवश्यक कदम उठाने के उद्देश्य को लेकर 2002 में महिला आयोग का गठन किया गया था। वर्ष 2004 में आयोग के कियाकलापों को कानूनी आधार प्रदान करने के लिए उ.प्र. राज्य महिला आयोग अधिनियम 2004 अस्तित्व में आया। तत्पश्चात पुन: जून 2007 में अधिनियम में कतिपय संशोधन कर आयोग का पुनर्गठन किया गया। पुन: दिनांक 26 अप्रैल 2013 को अधिनियम में आवश्यक संशोधन कर आयोग का पुनर्गठन किया गया।
आयोग का उद्देश्य-
महिलाओं के कल्याण, सुरक्षा, संरक्षण के अधिकारों की रक्षा करना ।
महिलाओं के शैक्षिक, आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए निरंतर प्रयासरत रहना ।
महिलाओं को दिये गये संवैधानिक एवं विधिक अधिकारों से सम्बद्ध उपचारी उपायों के लिए अनुश्रवण के उपरान्त राज्य सरकार को सुझाव एवं संस्तुतियां प्रेषित करना ।
आयोग की शक्तियाँ-
आयोग को किसी वाद का विचारण करने के लिए सिविल न्यायालय को प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार जैसे :-
सम्मन करना ।
दस्तावेज मंगाना ।
लोक अभिलेख प्राप्त करना ।
साक्ष्यों और अभिलेखों के परीक्षण के लिए कमीशन जारी करना आदि ।
कार्यक्षेत्र-
आयोग को किसी वाद का विचारण करने के लिए सिविल न्यायालय को प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार जैसे :-
महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा ।
महिलाओं का सशक्तिकरण ।
महिला उत्पीडन सम्बंधी शिकायतों पर प्रभावी कार्यवाही करना ।
बाल विवाह, दहेज एवं भ्रूण हत्या रोकना ।
कार्य स्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीडन पर रोक ।
महिलाओं से सम्बंधित कानून में आवश्यकतानुसार संशोधन हेतु शासन को संस्तुतियां करना ।
महिलाओं से सम्बंधित योजनाओं का प्रभावी रूप से क्रियान्वयन करना ।
महिला कारागारों, चिकित्सालयों, छात्रावासों, संरक्षण गृहों तथा अन्य सदृश्य गृहों का निरीक्षण ।
दोनों ही आयोगों के उद्देश्यों में महिलाओं की मदद करना शामिल किया गया है किन्तु अगर वास्तविक स्थिति का अवलोकन किया जाए तो परिणाम शून्य है क्योंकि महिलाओं की स्थिति आज क्या है वह केंद्र हो या यू पी, सभी जानते हैं और महिलाओं के द्वारा इन सेवाओं का उपयोग भी करने की कोशिश की जाती है किन्तु स्थानीय स्तर पर जितना मैं जानती हूं महिलाओं को अब तक एक बार भी इन आयोगों से कोई लाभ नहीं मिला है. ऐसे में यही कहा जा सकता है कि महिलाओं की गंभीर स्थिति को ध्यान में रखते हुए केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों की सरकारों को इस ओर ध्यान देना चाहिए.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कानूनी ज्ञान)