कल मेरा चेहरा और मेरी लिखी एक बात इंटरनेट पर वायरल हो गई। इतने सालों में ऐसा पहली बार हुआ है कि मुझे भी इतने लोगों ने जाना है। वायरल हुई बात बताने से पहले अपने बारे में थोड़ा बताता चलूं।
समाज के कायदे-कानून को बकवास बताने वालों को भी उन कायदों में रहकर अपने फायदे देखने पड़ते हैं। जो इन नियमों को नहीं मानते या मजबूरी में मान नहीं पाते उनकी किसी न किसी तरह से शामत पक्की है। 10-12 घंटे की नौकरी, 3-4 घंटे का आना-जाना बाकी नींद, खाने के अलावा क्या किया याद ही नहीं रहा। घर से दूर अजनबी शहर में पुराने यार भी छूट गए। ऐसी जीवनशैली के कद्दूकस में घिसकर जैसे सेहत, जवानी और दिमाग हर बीतते पल के साथ ख़त्म हो रहे थे। बचे समय में दिमागी संतुलन बचाने में सिर्फ़ इंटरनेट, सोशल मीडिया की आभासी दुनिया का सहारा था। यहाँ मैं भी कई लोगों की तरह अपने नीरस जीवन को चमकीली पन्नी में लपेट कर दिखाने में माहिर हो गया था। इस बीच बहुत से आभासी दोस्त भी बन गए। उन्ही में जीतता, उन्ही को जताता इस लत के सहारे जीता रहा।
उस मनहूस दिन मेरी माँ चल बसीं। कितना कुछ सोच रखा था उनके लिए! क्या-क्या करके उनका कर्ज़ उतारूंगा। अपनी औसत ज़िन्दगी में बेचारी का ज़्यादा कर्ज़ चुका नहीं पाया। मुझे घुटन हो रही थी कि अभी तो समय था, अभी मेरी सोची हुई बातें परवान चढ़नी थी…मेरे साथ ऐसा नहीं हो सकता! जब घुटन का कहीं कोई इलाज नहीं मिला तो माँ की तस्वीरों के साथ कुछ बातें लिख दीं। कलेजा से कुछ बोझ कम हुआ। अपने दर्द में मैं यह देख न पाया कि उन तस्वीरों में एक तस्वीर माँ के पार्थिव शरीर की भी अपलोड हो गई। जब तक वह तस्वीर हटाई तब तक वह कई जगह साझा हो चुकी थी। बस फिर क्या था सोशल मीडिया से वीडियो वेबसाइटों तक सब मेरा मज़ाक उड़ाने लगे, मुझ पर थूकने लगे कि कुछ लाइक्स, टिप्पणियों और लोगों का ध्यान खींचने के लिए मैं अपनी मरी माँ का सहारा ले रहा था। किसी ने ये तक कहा कि लड़कियों की सहानुभूति और उनसे दोस्ती बढ़ाने के लिए मैंने ऐसी गिरी हुई हरकत की। उन्हें क्या बताता…मेरी यह आदत अब मेरी बीमारी बन चुकी थी। न मेरे पास किसी करीबी दोस्त का कंधा था और न गला पकड़ती इस घुटन का कोई और त्वरित इलाज। मुझे माफ़ कर दो माँ!
मेरा नाम…कई नाम हैं मेरे! नहीं-नहीं भगवान नहीं हूँ। बस अपनी फ्रेंडलिस्ट में तो देखो एक बार, मैंने कहा ना…कई नाम हैं मेरे!
समाप्त!
#ज़हन