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कविता,कहानी और लेख लिखते -लिखते समझ विकसित हुई तो पाया 'जीवनचर्या के लिए केवल लेखन कार्य पर निर्भर रहना नादानी है '. वर्तमान में मेडिकल लैब टेक्नोलॉजिस्ट के तौर पर नई दिल्ली में निजी संस्थान में कार्यरत . इटावा उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचल (महाराजपुरा , तहसील चकरनगर ) में जन्म , म. प्र. के कई ज़िलों में रहकर शिक्षा प्राप्ति.आकाशवाणी ग्वालियर म. प्र. से 1992 - 2003 के बीच कविता, कहानी, विशेष कार्यक्रम आदि का नियमित प्रसारण. ग्वालियर से प्रकाशित विभिन्न दैनिक समाचार-पत्रों में लेख व कविताओं का प्रकाशन .ब्लॉग- हिन्दी-आभा*भारत (https://hindilekhanmeridrishti.blogspot.com), हमारा आकाश(https://hamaraakash.blogspot.com)पर सक्रिय.

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हमारे आसपास जो कुछ घटित हो रहा है वह हमें प्रभावित किये बिना नहीं रहता .हम चाहें तो वस्तुस्थिति से आँखें चुरा सकते हैं. शब्द जब विस्फोट की तरह हमारे भीतर से बाहर आता है तो गूढ़ अर्थों से लबरेज़ होता है.

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35 common.articles

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हमारे आसपास जो कुछ घटित हो रहा है वह हमें प्रभावित किये बिना नहीं रहता .हम चाहें तो वस्तुस्थिति से आँखें चुरा सकते हैं. शब्द जब विस्फोट की तरह हमारे भीतर से बाहर आता है तो गूढ़ अर्थों से लबरेज़ होता है.

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नशेमन

19 अगस्त 2019
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निर्माण नशेमन का नित करती, वह नन्हीं चिड़िया ज़िद करती। तिनके अब बहुत दूर-दूर मिलते, मोहब्बत के नक़्श-ए-क़दम नहीं मिलते।ख़ामोशियों में डूबी चिड़िया उदास नहीं, दरिया-ए-ग़म का किनारा भी पास नहीं। दिल में ख़लिश ता-उम्र सब्र का साथ लिये, गुज़रना है ख़ामोशी से हाथ में हाथ लिये। शजर

सुनो मेघदूत!

9 अगस्त 2019
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सुनो मेघदूत!सुनो मेघदूत!अब तुम्हें संदेश कैसे सौंप दूँ, अल्ट्रा मॉडर्न तकनीकी से, गूँथा गया गगन, ग़ैरत का गुनाहगार है अब, राज़-ए-मोहब्बत हैक हो रहे हैं!हिज्र की दिलदारियाँ, ख़ामोशी के शोख़ नग़्मे, अश्क में भीगा गुल-ए-तमन्ना, फ़स्ल-ए-बहार में, धड़कते दिल की आरज़ू, नभ की नीरस निर्मम नीरवता-से अरमान, मुरादों

क्या-क्या नहीं करता है पेड़ दिनभर...

30 जुलाई 2019
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दिनकर की धूप पाकर भोजन बनाता है पेड़ दिनभर,लक्ष्यहीन अतरंगित असम्पृक्त को भटकन से उबारता है पेड़ दिनभर। चतुर्दिक फैली ज़हरीली हवा निगलता है पेड़ दिनभर, मुफ़्त मयस्सर प्राणवायु उगलता है पेड़ दिनभर। नीले शून्य में बादलों को दिलभर रिझाता है पेड़ दिनभर, आते-जाते थके-हारे परि

पर्यावरण अधिकारी

24 जून 2019
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प्रकृति की, स्तब्धकारी ख़ामोशी की, गहन व्याख्या करते-करते, पुरखा-पुरखिन भी निढाल हो गये, सागर, नदियाँ, झरने, पर्वत-पहाड़, पोखर-ताल, जीवधारी, हरियाली, झाड़-झँखाड़,क्या मानव के मातहत निहाल हो गये?नहीं!... कदापि नहीं!!औद्योगिक क्राँति, पूँजी का ध्रुवीकरण, बेचारा सहमा सकुचाया मा

अभिनंदन

1 मार्च 2019
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ओ अभिनंदन है अभिनंदनआज महके हैं माटी और चंदन पराक्रम की लिख इबारत लौट आये अपने भारत राजा पौरुष की तरह याद किये जाओगे भावी पीढ़ियों को सैनिक पर गर्व कराओगेमिले कामयाबी की मंज़िल-दर-मंज़िल सजती रहेगी अब आपकी शौर्य-गाथा से महफ़िल भारत की मा

कन्धों पर सरहद के जाँबाज़ प्रहरी आ गये

16 फरवरी 2019
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मातम का माहौल है कन्धों पर सरहद केजाँबाज़ प्रहरी आ गये देश में शब्दाडम्बर के उन्मादी बादल छा गये रणबाँकुरों का रक्त सड़कों पर बहा भारत ने आतंक का ख़ूनी ज़ख़्म सहा बदला! बदला!!आज पुकारे देश हमारागूँज रहा है गली-चौराहे पर बस यही नारा बदला हम लेंगे फिर वे लेंगे.... बदला हम लेंगे फिर वे लेंगे....हम.... फिर

स्टोन क्रशर

4 फरवरी 2019
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पथरीले हठीले हरियाली से सजे पहाड़ ग़ाएब हो रहे हैं बसुंधरा के शृंगार खंडित हो रहे हैं एक अवसरवादी सर्वे के परिणाम पढ़कर जानकारों से मशवरा ले स्टोन क्रशर ख़रीदकर एक दल में शामिल हो गया चँदा भरपूर दिया संयोगवश / धाँधली करके हवा का रुख़ सुविधानुसार हुआ पत्थर खदान का ठेका मिला कारोबार में बरकत हुई कुछ और स्ट

सड़क पर प्रसव

16 जनवरी 2019
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वक़्त का विप्लव सड़क पर प्रसव राजधानी में पथरीला ज़मीर कराहती बेघर नारी झेलती जनवरी की ठण्ड और प्रसव-पीर प्रसवोपराँत जच्चा-बच्चा 18 घँटे तड़पे सड़क पर ज़माने से लड़ने पहुँचाये गये अस्पताल के बिस्तर परहालात प्रतिकूल फिर भी नहीं टूटी साँसेंकरतीं वक़्त से दो-दो हाथ जिजीविषा की फाँसें जब एनजीओ उठाते हैं दीन

नदी तुम माँ क्यों हो...?

22 नवम्बर 2018
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नदी तुम माँ क्यों हो...?सभ्यता की वाहक क्यों हो...?आज ज़ार-ज़ार रोती क्यों हो...? बात पुराने ज़माने की है जब गूगल जीपीएसस्मार्ट फोन कृत्रिम उपग्रह पृथ्वी के नक़्शे दिशासूचक यंत्र आदि नहीं थे एक आदमीअपने झुण्ड से जंगल की भूलभुलैया-सी पगडं

#MeeToo मी टू सैलाब ( वर्ण पिरामिड )

29 अक्टूबर 2018
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येमी टू ले आया रज़ामंदी दोगलापन बीमार ज़ेहन मंज़र-ए-आम पे !वो मर्द मासूम कैसे होगा छीनता हक़ कुचलता रूह दफ़्नकर ज़मीर !क्यों इश्क़ रोमांस बदनाम मी टू सैलाब लाया है लगाम ज़बरदस्ती को "न"न मानो सामान औरत को रूह से रूह करो महसूस है ज़ाती दिलचस्पी। है चढ़ी सभ्यता दो सीढ़ियाँ दिल ह

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