वेस्ट यू पी हाई कोर्ट बेंच एक ऐसा मुद्दा है जिसे लेकर अब वेस्ट यू पी के वकील भी यह विश्वास करने से बच रहे हैं कि यह कभी भी सफल होगा क्योंकि अगर देखा जाए तो इस आंदोलन को लेकर सरकार का रवैय्या तो भेदभावपूर्ण रहा ही है साथ ही, अधिवक्ता भी इसे लेकर बंटे हुए ही नजर आए हैं क्योंकि अधिवक्ताओं का एक वर्ग इसे अपने लिए और अपने क्षेत्र के निवासियों के लिए हितकारी मानता है मगर एक वर्ग ऐसा भी है जो देखता है कि अगर वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच स्थापित हो गयी तो इससे उनके काम पर फर्क़ पड़ेगा और मुवक्किल हाई कोर्ट में कार्यरत वकीलों को उनसे ऊपर तरजीह देगा और अपनी इसी सोच को लेकर वह आंदोलन के लिए उपेक्षित रवैय्या रख असहयोगी मुद्रा को अपनाए हुए है किन्तु यह असहयोगी अधिवक्ता वर्ग आन्दोलन की अब तक की असफलता के लिए उतना जिम्मेदार नहीं है जितना जिम्मेदार आंदोलन में लगा हुआ अधिवक्ता वर्ग है क्योंकि उसके द्वारा आंदोलन के लिए बहुत से जरूरी कदम आज तक उठाए ही नहीं गए हैं जिनका उठाया जाना आंदोलन के लिए न केवल जरूरी बल्कि परमावश्यक भी है.
वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच के लिए आंदोलन करने वाले वकील अपनी तरफ से यह सोचकर कि हम जब हड़ताल करेंगे, जगह जगह नेताओं का घेराव करेंगे, समय समय पर सत्ता पक्ष को ज्ञापन देंगे तो धीरे धीरे अपनी हाई कोर्ट बेंच स्थापना की मांग को मानने को सरकार को विवश कर देंगे और यह सोचकर वेस्ट यू पी के अधिवक्ताओं ने 1979 में यह आंदोलन आरंभ किया, बीच बीच में कई कई दिनों की हड़ताल वकीलों द्वारा की गई, शनिवार की हड़ताल इसी मांग को लेकर लगातार चली आ रही है यही नहीं बीच में एक बार तो डेढ़ दो महीने करीब भी हड़ताल चली है और नतीजा क्या रहा "ढाक के तीन पात" फिर अभी कुछ समय पहले ही अधिवक्ताओं को लगा कि हमें इस आंदोलन से न्याय की जरूरत रखने वाले पीड़ित पक्ष को भी जोड़ना चाहिए और इसे लेकर थोड़ा बहुत काम किया भी गया और कुछ जगह पर एक दो नेताओं को, विधायक या सांसद को इससे जोड़ने का प्रयत्न किया गया किन्तु जो मुख्य तौर पर इस क्षेत्र की जनता है, प्रयाग राज जैसी दूरी पर स्थित हाई कोर्ट के कारण पीड़ित आबादी है उसे अभी तक भी यह नहीं बताया गया कि वकीलों की इस हड़ताल का मुख्य उद्देश्य उनका ही हित देखना है.
देखा जाए तो किसी भी आंदोलन की सफलता उसके लिए प्रयासरत जनता के उन प्रयासों पर ही निर्भर है जो वे एड़ी से लेकर चोटी तक का जोर लगाकर करते हैं और यह आंदोलन तो आज तक केवल चोटी के जोर पर ही चल रहा है एड़ी तो इसमें आज तक जुड़ी ही नहीं है इसलिये आंदोलन को अगर सफल बनाना है तो वकीलों को इसमें एड़ी को अर्थात आम जनता को जागरूक बना अपने साथ जोड़ना ही होगा और जिसके लिए कुछ उपाय वे अपना सकते हैं -
1- सबसे पहले कोर्ट कचहरी में आने वाली जनता को संबंधित बार एसोसिएशन आंदोलन के बारे में विस्तार से समझाये और उन्हें अपने साथ जोड़ने की कोशिश करे.
2- शनिवार को वेस्ट यू पी के अधिवक्ता हड़ताल पर रहते हैं ऐसे में संबंधित बार एसोसिएशन अपनी बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं की कुछ समिति गठित करे जो उस दिन जगह जगह जाकर आम जनता को वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच के फायदे बताएं और समझाएं कि अगर जनता वकीलों से जुड़े तो न्याय को लेकर उनकी दूरियां घटेंगी और न्याय उनके द्वार तक ही पहुंच सकेगा.
3- संघर्ष समिति के अधिवक्ता सोशल नेटवर्किंग साइट से संबंधित बार एसोसिएशन के वकीलों से व जनता से जुड़ें और उनके साथ मजबूती से आगे बढ़ें.
4- समय समय पर जगह जगह बार भवन में सभाएँ आयोजित करने की जगह विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के सभा आयोजन स्थलों पर संघर्ष समिति की बैठक की जाए और उन संस्थाओं के माध्यम से लोगों में घुसपैठ बनाई जाए.
इसी तरह जब संघर्ष समिति ऐसे उपायों पर विचार करेगी तो और रास्ते भी निकलेंगे और मंजिल पाने के लिए रास्ते के कांटे दूर होंगे लेकिन उसके लिए अधिवक्ताओं को अपने को विशेष दर्जे से बाहर निकाल कर आम दर्जे से जोड़ना होगा और "वकील एकता जिंदाबाद" की जगह "जनता अधिवक्ता जिंदाबाद" का नारा बुलंद करना होगा.
क्योंकि
"पूरी धरा भी साथ दे तो और बात है
पर तू जरा भी साथ दे तो और बात है.
चलने को तो एक पांव से भी चल रहे हैं लोग,
ये दूसरा भी साथ दे तो और बात है."
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)