आम लोगों से युद्ध की विभीषिका और सैन्य जीवन पर बात करते हुए फौजी मुस्कुरा कर जवाब देते हैं। जहाँ कई 'सिविलियन' खुद के साथ हुई किसी छोटी घटना पर घंटों बखान कर सकते हैं, वहीं सैन्यकर्मी बड़ी मुठभेड़ का संश्लेषण किसी सामान्य बात की तरह कर देते हैं। चाहे शान्तिकाल हो या युद्ध का समय एक सैन्यकर्मी जीवन और मौत के अनेकों दांव देख व सुन चुका होता है। शायद इसलिए सैनिक आम नागरिकों के सामने उसी चश्मे से अपनी बात रखते हैं। छोटे से लेकर सर्वोच्च बलिदान की भावना सेना की तीनों शाखाओं के जांबाज़ों में इस तरह बस जाती है जिसकी आम जन कल्पना भी नहीं कर सकते। बलिदान के भावना के साथ आती है दुख सहने की असीम क्षमता।
15 फरवरी 2018 को असम के मजोली में वायुसेना के हेलीकॉप्टर क्रैश में विंग कमांडर दुष्यंत वत्स का निधन हो गया। विंग कमांडर वत्स 2004 से भारतीय वायुसेना के सबसे हल्के हेलीकॉप्टर को उड़ा रहे थे। उन्होंने सियाचिन, उत्तरपूर्वी राज्यों जैसी दुर्गम जगहों में अनेकों बार मदद पहुंचायी और महत्वपूर्ण ऑपरेशंस को अंजाम दिया। उनका यूँ हमेशा के लिए अलविदा कहना ही सबपर भारी पड़ रहा था। उसपर दिल भेदता दृश्य यह कि अंत्येष्टि के समय उनकी पत्नी मेजर कुमुद डोगरा गोद में अपनी पाँच दिन की बच्ची को पिता के शव तक ले जा रही हैं। माँ तो पहले ही लोहे सी सख्त होकर, इतना दर्द सहकर नये जीवन को संसार में लाती है। उसपर अगर माँ सैनिक भी हो तो लोहा क्या टाइटेनियम की संज्ञा भी छोटी पड़ेगी। ये ऐसा दुख जिसे कभी भी लिखकर, कहकर या जताकर नहीं बताया जा सकता। उस बच्ची ने पिता की गोद का अहसास भी पाया नहीं। हम और आप सुरक्षित रहें इसके लिए कितने ही परिवार उजड़ते हैं, कितनी ही औरतें बेवा होती हैं और कितने ही बच्चे अनाथ रहते हैं। ऐसे क्षणों में लोग सुध बुध खोकर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते। दुख सहने की यह असीम क्षमता ही है जो ऐसी घडी में मेजर डोगरा स्वयं के साथ-साथ अपने परिजनों के लिए भी एक स्तम्भ की तरह मज़बूत बनी रहीं। वर्तमान स्थिति के अनुसार बिना समय गंवाए खुद को ढालने के सैन्य नियम का पालन करते हुए मेजर डोगरा ने अपने फौजी पति की विदाई साथी फौजी की तरह निभाई।
हालाँकि, निजी जीवन में जब फौजी अपना 'गार्ड डाउन' करते हैं यानी कुछ आराम की स्थिति में होते हैं तो उनमें कुछ आम मानवीय गुण दिख जाते हैं। अबसे अपनी बच्ची के साथ निजी जीवन में मेजर डोगरा उसे उसके पिता की कहानियाँ सुनाया करेंगी। अपनी माँ की हिम्मत तो वह बच्ची अपनी आँखों से देखेगी। नौकरी के साथ-साथ दुष्यंत वत्स जी की कमी से बढ़ी ज़िम्मेदारी को दृढ़ जज़्बे के साथ निभायेंगी और इसलिए पिता का साया हटने के बाद भी बच्ची की परवरिश में किसी तरह की कमी नहीं होगी। हमें आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि भविष्य में यह बच्ची अपने माता-पिता की तरह अपने स्तर पर देशसेवा करेगी।
जय हिन्द!
#ज़हन