वसुंधरा के हर कोने को जगमग आज बनायेंगे ,
जाति-धर्म का भेद-भूलकर मिलकर दीप जलाएंगे .
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पूजन मात्र आराधन से मात विराजें कभी नहीं ,
होत कृपा जब गृहलक्ष्मी को हम सम्मान दिलायेंगें .
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आतिशबाजी छोड़-छोड़कर बुरी शक्तियां नहीं मरें ,
करें प्रण अब बुरे भाव को दिल से दूर भगायेंगे .
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चौदह बरस के बिछड़े भाई आज के दिन ही गले मिले ,
गले लगाकर आज अयोध्या भारत देश बनायेंगे .
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सफल दीवाली तभी हमारी शिक्षित हो हर एक बच्चा ,
छाप अंगूठे का दिलद्दर घर घर से दूर हटायेंगे .
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भ्रष्टाचार ने मारा धक्का मुहं खोले महंगाई खड़ी ,
स्वार्थ को तजकर मितव्ययिता से इसको धूल चटाएंगे .
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उल्लू पर बैठी लक्ष्मी से अंधी दौलत हमें मिले ,
अंधी भक्ति मिटाके अपनी गरुड़ पे माँ को लायेंगे .
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बेरोजगारी निर्धनता ने युवा पीढ़ी भटकाई है ,
स्वदेशी को सही भाव दे इन्हें इधर ले आयेंगे .
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मंगलमय है तभी दीवाली खुशियाँ बिखरें चारों ओर ,
''शालिनी''के दीप हजारों काम यही कर जायेंगे .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]