सारी लड़ाई के पीछे के वजहों पर एक नज़र डाले तो मामला शून्य से शुरू होता है और शिफर पे समाप्त हो जाता है, क्योंकि चार कदम आगे चलने की कोशिश करते ही कोई चार कदम पीछे की और धकेल देता है! इसीलिए इंसान के तीर से ही इंसानियत घायल है?
मामला राजनैतिक है आस्था से जुडी है या दुश्मन कोई और है जो हमारे बीच में है और आँखों के सामने होते हुए भी नज़र नहीं आ रहा है अगर आँखों के सामने भी है और ओझल भी, तो मामला गंभीर है अगर नहीं तो वजह क्या है की हम इंसान होते हुए भी इंसानियत भूल गए? प्रकृति की संरचना में इंसान को ही सबसे बुद्धिमान प्राणी के रूप अब तक मान्यता प्रदान की गई है तो क्या यह मान लिया जाये की सबसे बुद्धिमान ही इस संसार का सबसे बड़ा वेवकूफ है?
बहुत हद तक मामला राजनैतिक और अहंकार का महसूस होता है जो इंसानियत से तो शायद नहीं जुड़ा हुआ है हम बड़े है तो हम बड़े है, बड़े बनने के चक्कर में दूसरे छोटा दिखाने की कोशिश की नाकाम कोशिश इंसान ज़िंदगी भर करता रहता है और अंत में इस अफ़सोस के साथ दुनिया से विदा हो जाता है की अगर कुछ अच्छा काम किया होता तो कोई नाम लेने वाला भी पीछे छूट जाता?
विस्व समुदाय, देश. राज्य, लोग, रंग, जात, धर्म और विभिन्न वर्गों और समुदायों में बंटा यह संसार ख़ूबसूरत तो है मगर बंटवारा का बोझ भी ढो रहा है मगर क्यों का जवाब देने की तोहमत क्यों नहीं उठता, अगर उठता भी है तड़ीपार कर दिया जाता?
कुछ लोग इससे खफा भी है और बदलाव की दिशा में प्रत्यनशील भी, मामला अगर राजनैतिक है तो इलाज भी राजनैतिक है जो वोट बैंक और मुफतखोरी से जुड़ा हुआ लगता है जिसमे दोनों पक्षों की सहमती भी नज़र आती है? अगर धार्मिक है तो लोग इससे भी खफा है और अपने आप को धर्म के लगाव से मुक्त/त्याग करके उस धर्म की तरफ बढ़ रहें जो इंसानियत की तरफ कदम बढ़ा कर एक सभ्य समाज की आधारशिला रखने में सहायक हो सके? यह कोशिश कहाँ तक सम्भव हो पायेगी इस पर संदेह है क्योंकि यह अभी शुरुआती दौर में है?
इस कदम को साकार करने के लिए एक मुहीम शुरू होने वाली है हिंदुस्तान में, इस कदम का पहला मुकाबला विभिन्न सरकारी आवेदन पत्रों में जहाँ धर्म का स्थान होता है वहां तो सभी अपने अपने हिसाब से उपरोक्त स्थान का चयन करते है! मुहीम वही एक और रिक्त स्थान के लिए होगा जो किसी भी धर्म को नहीं मैंने वालों के लिए होगा, यानि नास्तिक क्या आप भी इस पहल का स्वागत करेंगे सवालिया निशान के साथ यह एक सवाल आपसे भी है?
आगे आगे देखिए या कहाँ तक सम्भव हो पाता है क्योंकि विस्व समुदाय भी अब इस तरह की रोज रोज हिंसक घटना कर्म से सिर्फ चिंतित ही नहीं वल्कि इसके निवारण की दिशा में भी अग्रसर क्या होना चाहता है?
सांप की एक प्रजाति है एनाकोंडा जो अपने अस्तित्व को पिछले दो करोड़ सालों से बचाये हुए है क्या इंसानो के लिए भी सम्भव हो पायेगा आने वाले दो करोड़ सालों तक अपना अस्तित्व को संभल का रख पाने में यह भी आज एक सवाल है?