देश की राजनीती में जनता से जुड़े तमाम मुद्दों में बेहतरी के नतीजे ढाक के तीन पात के आगे राख के ढेर से ज्यादा कुछ नज़र नहीं आता, ये मेरा राजनैतिक दल, ये तेरा, ये उसका, ये इनका और वो उनका?
अब इसके आगे का विभाजन को देखिये ये मेरे क्षेत्र के नेताजी, वो उसके क्षेत्र का नेताजी, वे उनके क्षेत्र के और वो उनके उनके क्षेत्र के? अभी ख़त्म नहीं हुआ है आगे और भी है धर्म, जाती, प्रजाति देश की समस्या, राज्य की समस्या, स्थानीय समस्या के बाद घरों की समस्या की परंपरा देश में सदियों से कायम है और क्या आगे भी रहेगी ?
क्यों ये सारी समस्यायें सिर्फ चुनाव तक ही कायम रहते है, और चुनाव के बाद क्या ख़त्म हो जाता है, अगर ऐसा हुआ होता तो देश में समस्या नाम की कोई चीज़ बची ही नहीं रहती? राजनीती कार्यकर्ता को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल सालों से करती आई है और आगे भी करती रहेगी मगर कब तक इस सवाल का जबाव क्या किसीके पास है?
जब तक "देश एक राह और मकसद अनेक" की राहों पर चल कर राजनीती होती रहेगी देश का कल्याण कितना होगा और जनता का कितना आने वाला वक्त बताएगा, मगर अभी भी देश को इस बात का आभाष नहीं हुआ है की राजनीती को जनता का अँधा समर्थन ही कहीं देश की सबसे बड़ी समस्या तो कहीं नहीं है?
वोट बैंक बन गया काम बन गया जब तक जनता बिखरेगी सात पुश्तों का इंतजाम हो ही जायेगा, क्या चुनाव के बाद सरकारों का देश हित और जनता के हित में किये गए अच्छे कामों का समर्थन देश के सभी नागरिकों के द्वारा और विरोध भी सभी नागरिकों द्वारा किये जाने का वक़्त आ गया है या अभी भी इसमें देरी है?
एक नागरिक के तौर आप भी सोचिये क्या सही है और क्या गलत और फैसला लेने में अब और देर मत लगाइये क्योंकि अब काफी वक़्त निकल गया है क्योंकि देश में अब पराकृतिक संसाधन के तौर पर मौजूद मुफ्त हवा, पानी भी जीने के लायक नसीब नहीं हो रही है तो बाकी को छोड़ ही दीजिये, चाहे पकडे रहिये स्थापित राजनीती के डोर को?