लोकतंत्र ने हमें बोलने का अधिकार तो दिया है मगर क्या बोले और क्या नहीं इसका अधिकार भी तो बोलने वाले का ही बनता है?
सजाये मौत पे बहस कहाँ तक, किस हद तक किसके लिए और क्यों, फांसी की सजा का प्रावधान अगर है तो क्यों और किसलिए है सभ्य समाज में, और अगर है तो कोई वाजिब वजह भी होगी बिना वजह यूं ही कोई किसीके लिए सजाये मौत की सिफारिश नहीं करता!
मरने और मारने की वजह की तलाश कोई क्यों नहीं करता, विस्व की राजनीती को इसकी वजह को भी तलाशनी चाहिए, क्या यह सम्भव है अगर हा तो कैसे? अगर तलाशी की गई तो उसकी जो वजह सामने आएगी उससे क्या विस्व की राजनीती घबरा जाएगी या जो सच सामने आएगा उसको किस रूप में उसको प्रस्तुत करेगी या फिर जो वजह सामने आएगी उसका समाधान क्या राजनीती के पास है इस पर ज़रूर एक सवालिया निशान खड़ा होता है?
जब समस्या को जड़ से ख़त्म करने की चाह किसीमे नहीं है तो पत्ते तोड़ कर क्या हासिल कर लेंगे, हकीकत से टकराना कोई नहीं चाहता मगर क्यों? मरने और मारने का शिलशिला तो दुनिया भर के देशों में है, आप फांसी के पक्ष या विपक्ष में चाहे जितनी भी बहस से कर ले समस्या का निवारण तो कहीं और है जहाँ कोई मुश्किल से ही पहुँचेंगे?
फांसी पर राय बंटी हुई है या बांटी गई है अगर बंटी हुई है तो क्यों और अगर बांटी गई है तो क्यों पीछे की कारणों को जानने का हक़ क्या देश और दुनिया के आबादी को है या नहीं?