25 नवम्बर 2015
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अलोक kumarD
बिलकुल सही कहा हैं मोदी जी अपना काम कर रहे हैं जब परिणाम सामने आयंगे सब चौकने रह जायेगे ;; आज तो आलोचक बहुत हो रहे हैं बहुत अच्छा कर रहे मोदी जी आलोचकों को जवाब नहीं दे रहे हैं समय हकीकत बतएगा
इंडिया संवाद ब्यूरोन्यूयाॅर्कः धार्मिक भेदभाव खत्म करने की राष्ट्रपति बराक ओबामा की अपील के अगले ही दिन रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के प्रमुख उम्मीदवार माने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में मुसलमानों के प्रवेश पर ही बैन लगाने की पैरवी कर नए विवाद को हवा दे दी है।ट्रंप की ओर से जारी बयान में
अब लगता है देश में जनता के भी दिन बदलने वाले है, ख़बरों की माने तो चुनाव कैसे लड़े और जीते पर एक किताब आने वाली है, और उसके लेखक कोई और नहीं देश के जाने माने चुनाव रणनीतिकार श्री प्रशांत किशोर जी होंगे!जिन्होंने २०१४ और २०१५ में एक कई राजनैतिक दलों के गठबंधन को चुनाव जितवा कर अपना लोहा मनवा लिया है!अग
सरकार की एक योजना है "Give UP" जिसमे सरकार लोगो से आग्रह करती है की देश और देश की जनता के हित में LPG पर दी जाने वाली इमदाद (सब्सिडी) को त्याग दे!इसके साथ साथ क्यों न यह मांग की जाये की सरकार में जो मंत्री है वे अपना, अपने लिए और अपनों के लिए जो की काबिल है आरक्षण को और आरक्षण की मांग को छोड़ दे? (य
इस्लामाबाद : विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की पाकिस्तान यात्रा पर दुनियाभर की नजर टिकी है। अटकलों और संभावनाओं का बाजार गर्म है। आतंकवाद के खात्मे को लेकर पाकिस्तान के कदम और प्रयास पर सब सशंकित हैं। आतंकवाद के मुद्दे पर उनके ताजा बयान को दुनियाभर में हो रहे आतंकी हमलों से जोड़कर देखा जा रहा है। दो दिनो
क्या देश सिर्फ लाल बत्ती वालों के लिए ही आज़ाद हुआ है और बाकी सब क्या गुलाम है?
वैसे तो अंकिये युग की शुरुआत को हम Charles Babbage के मसहूर नाम के साथ ही जानते जिन्होंने १८२० के आस पास इसकी शुरुआत की थी, मगर उससे पहले, १८०१ के इर्द गिर्द Jacquard's Loom ने इसकी आधार रखी थी!अंकिये युग का दौर हमारी ज़िन्दगी को काफी पहले से ही प्रभावित करना शुरू कर दिया था और हम इसके आदि होते चले ग
लोकतंत्र ने हमें बोलने का अधिकार तो दिया है मगर क्या बोले और क्या नहीं इसका अधिकार भी तो बोलने वाले का ही बनता है? सजाये मौत पे बहस कहाँ तक, किस हद तक किसके लिए और क्यों, फांसी की सजा का प्रावधान अगर है तो क्यों और किसलिए है सभ्य समाज में, और अगर है तो कोई वाजिब वजह भी होगी बिना वजह यूं ही कोई क
गठबंधन और महागठबंधन के दौर में देश की जनता भी एक गठबंधन कर ले की देश समझौते से नहीं चलेगा और न ही समझौते वाला प्रधानमंत्री देश को मंजूर होगा?जिसकी हिम्मत है वो राजनीती करें, गठबंधन और महागठबंधन करके मलाई खाने के चक्कर में देश को झांसे में न रखे?देश को कानून के तहत चलाने वाला राजनेता चाहिए कानून तोड़न
इंडिया संवाद ब्यूरोदिल्ली : दिल्ली मे हम ओर आप तो अक्सर ट्रैफिक जाम की प्रोब्लम दो-चार होते रहते हैं लेकिन आज इस समस्या का समाना जब केंद्रीय सड़क एंव परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से हुआ तो मंत्री जी तिलमिला गये और नेशनल हाइवे अथॉरिटीज ऑफ इंडिया के ऑफिसरों को फटकार लगाई और उन्होंने 24 घंटे में रोड को ज
सबसे ताकतवर नस्ल भी नहीं बचती, सबसे समझदार नस्ल भी नहीं बचती, बचती वो नस्ल है जो अपने आपको बदलाव के मुताबिक ढाल ले! (डार्विन : ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज)
इंडिया संवाद ब्यूरोनई दिल्ली : 8 सितम्बर 1938 को जब अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए नेहरु ने लखनऊ के कैसरबाग से नेशनल हेराल्ड का आगाज किया तो उन्होंने सपने में भी नही सोचा होगा कि उनकी तीसरी पीढ़ी नेशनल हेराल्ड को किस अंजाम तक पहुंचाएगी। दरअसल सच तो यह है कि सोनिया और राहुल गाँधी के सत्ता में रहते हुए
देश की राजनीती चाहे कितनी भी गंदगी से क्यों न भरी हो, मगर देश की जनता को एक सबक हमेशा से सिखाती आई है की किसी भी परिस्थिति में राजनैतिक समाज जैसे कभी एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ते चाहे वे किसी भी विचारधारा से क्यों न जुड़े ठीक उसी तरह जनता को भी एकजुट रहने का सबक तो कम से कम देश की राजनीती से तो सिख ही
कलाकृति से सामाजिक सेवा? इंग्लैंड की घटना है ऐसा भारत में मुमकिन हो पायेगा या नहीं कहना मुश्किल है, सड़को पे गड्डे थे प्रशासन बेखबर, रोज़ाना लोग ग़ड्डों की वजह से परेशान रहा करते थे! एक कलाकार की खुरापाती/पागलपंथी कहें या फिर कुछ और, उसने एक बाल्टी में रंग और स्प्रे करने वाला यंत्र लिया और जहाँ जहाँ
राज्यों के लिए पंक्ति-" मित्र अतरा मुझसे कहता है मैं अपने छ: बागों में आम की उपज उगाऊ" ।मि-मिजोरम त्र -त्रिपुराअ - असमत - तमिलनाडूरा - राजस्थानमु -मणिपुरझ - झारखंडसे - सिक्किमक -केरलह -हरियाणाते - तेलंगानाहै - हिमाचलमें - मेघालयअ - अरूणाचल प - प. बंगालने - नागालैंडछः - छत्तीसगढबा - बिहारगों -गोवामें
शिर्षक का अंग्रेजी में होने के मायने यह है की कुछ शिर्षक अगर उसी रूप में हो तो पढ़ने और समझने और बोलने में अच्छे लगते है, अगर इसका हिंदी रूपांतर किया जाये तो ये हो जायेगा निंद्रा विहीन रात और घुमावदार केंद्र जिसका कोई मायने मतलब ढंग से निकलता नहीं है!लोकतंत्र में आंदोलन, जन आंदोलन सत्ता के हिसाब से ज
पत्रकारिता जगत और पत्रकारों का राजनीतिकरण और सामाजिक पत्रकारिता के सामाजिक दायित्व का आसमाजीकरण ? सांप सपेरों का देश आज तरक्की के रस्ते पे चलते हुए उपग्रह प्रक्षेपण के मामले में नया मुकाम हासील कर चूका है और दुनिया लोहा मानती है हमारा! मगर इतनी तरक्की के बाद भी देश का राजनैतिक और सामाजिक चेहरा
क से कौवा भी होता है और L से Lion भी? देश को अब ऐसा क्यों लगने लगा की जो देश की न्यायिक व्यवस्था से देश की जनता का विस्वास अब उठने लगा है, और अगर वजह तलाशे तो बहुत हद तक सही भी लगता है नहीं तो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश को क्या पड़ी थी की, जनता से राय मांगी जाये? कौवे और Lion का ज़िक्र इसीलिए कि
लाई हुई और आई हुई भीड़ के फर्क की पहचान तो है मगर राजनीती मजबूर है? मगर अब इतना तो तय लगता है की लाई हुई भीड़ से आगे की राजनीती मुश्किल है, मगर भीड़ को आने के लिए जिस राजनैतिक कौशल की ज़रुरत है वह अब स्थापित राजनैतिक पार्टी के नेताओं में नज़र नहीं आ रही है?
----------------------------------------- क्या तबादला सम्भव है, अधिकारीयों का नहीं चुने हुए जनप्रतिनिधियों का लोकतान्त्रिक व्यवस्था में संविधान के माध्यम से न्यायोचित/न्यायसंगत तरीके से? विकल्प ढूंढे जा रहें है, "NO WORK NO PAY " की सगूफे के साथ क्या यह मांग भी जायज है, कानून बनाने वाले को भी कान
दिल्ली : कैलिफोर्निया मे हऐ आतंकवादी हमले पर भारतीय ऐजेन्सी को सनसनी खेज जानकारिया मिली है. इन पुख्ता जानकारियों के आधार पर देश के कुछ चुने हुये शहरों मे अभूतपूर्व सुरक्षा के इंतजाम किये जा रहे है. IB को मिली जानकारी के मुताबिक 2 दिसम्बर को कैलिफोर्निया मे जिस मुस्लिम दम्पति ने प
नई दिल्ली : नई दिल्ली : 'नेशनल हेराल्ड मामले' में पटियाला हाउस कोर्ट ने भले ही 19 दिसंबर की तारीख दे दी हो, लेकिन फिलहाल यह मामला शांत होता नहीं दिखता। सोनिया और राहुल गांधी की कोर्ट में पेशी के आदेश को कांग्रेस पार्टी गंभीरता से ले रही है। कांग्रेस के कपिल सिब्बल ने भी तल्ख़ तेवर दिखाते हुए "हू इज स
जनता की भागीदारी (कार्यकर्ता नहीं) वाली सरकार और बिना जनता की भागीदारी वाली सरकार मे अंतर को जनता की कसौटी पे खरा उतरना एक चुनौती होगी? इस चुनौती को जो स्वीकार करेगा और देश की जनता के हित मे काम करेगा आनेवाले वक़्त मे देश के अंदर राजनीति की दशा और दिशा तय करेगा।
यूपी : दिल्ली के उत्तम नगर की एक 15 साल की नाबालिग लड़की का अपहरण करके उसके साथ 13 दिन तक गैंग रेप किया गया. उसने भागने की कोशिश की तो उसे गोली मार दी और एक कुंए में फेक दिया. किस्मत से लड़की बच गई. लड़की को 22 नवंबर को उसके घर के बाहर से तीन लोगों ने किडनैप किया था. तीनों ने लड़की से रेप किया. बाद
गीतकार : साहिर लुधियानवीचित्रपट : गुमराह – १९६३ तुम्हें भी कोई उलझन रोकती हैं पेशकदमी सेमुझे भी लोग कहते हैं की ये जलवे पराये हैंमेरे हमराह भी रुसवाईयाँ हैं मेरे माझी कीतुम्हारे साथ अभी गुज़री हुई रातों के साये हैंतारूफ रोग हो जाये, तो उसको भूलना बेहतरताल्लूक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा एक बेहत
देश ही नहीं, दुनिया भर की नजर आज 'नेशनल हेराल्ड मामले' पर टिकी है। ऐसे में 'इंडिया संवाद' के साथ अपनी यादें साझा कर रहे हैं वरिष्ठ उर्दू पत्रकार ओबैद नासिर... साल 1988 का वह दिन आज भी याद है मुझे, जब मैंने हेराल्ड समूह के सिस्टर पब्लिकेशन 'कौमी आवाज' में बतौर युवा पत्रकार ज्वाइन किया था। 'नेशनल हेरा
इंडिया संवाद ब्यूरोवाराणसी : PM मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी के केदारघाट स्थित भूमा अध्यात्म पीठ के पीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानंद महाराज ने अपने खून से PM नरेंद्र मोदी को लेटर लिखा है. उन्होंने इसमें मांग की है कि देश में जनसंख्या नियंत्रण पर सख्त कानून बनना चाहिए, तभी देश का विकास होगा.उन्होंने यह ले
पिछले ६७ - ६८ सालों का शासन कुशासन, व्यवस्था अवय्व्स्था की देन है असामाजिक तत्वों से सामाजिक सुरक्षा? आज सौभाग्य मिला नॉएडा स्थित सेक्टर २१ के स्टेडियम में जाने का कराटे की प्रतियोगिता थी, अभिभावक के तौर पर ज़रूरी से ज्यादा मजबूरी जाने पर विवस कर दिया? स्टेडियम के अंदर प्रवेश करते ही लड़कियों किस संख्
रविवार यानि SUNDAY = FUNDAYभारत में इस दिन को छुट्टी कब और कैसे मिली यह भी एक इतिहास और छुट्टी दिलाने वाले ने इसके लिए भी काफी संघर्ष किया था!"नारायण मेघाजी लोखंडे" जी का नाम किसको याद है शायद किसी को भी नहीं होगा कामगार नेता के तौर पे उन्होंने अंग्रेजो के सामने 1881 में प्रस्ताव रखा। लेकिन अंग्रेज
पत्रकारिता कल और आज मे शब्दो का मामूली सा फेरबदल है? 1- जो होता है वही दिखता है। 2- जो दिखता है वही होता है।
दो दिन पहले इंजीनियर दिवस था जिनके पास नौकरी थी दफ्तरों में जश्न मनाया, और बाकी इंजीनियर जो देश के अंदर है और नौकरी की तलाश में है उन्होंने ने भी इस दिन को याद किया और इस बात से खुश हुए की अच्छे दिन आने वाले है?सबने अपने अपने तरीके से इस दिवस को पर्व की तरह मनाया और आज के अख़बारों की सुर्खियां में जो
पूरा देश किसानो के लिए फिक्रमंद है, संसद से लेकर विधान सभा तक सांसद से लेकर MLA तक, सभी चुने हुए प्रतिनिधि है अपने अपने छेत्रों का प्रतिनिधित्व करते है और उनको वोट किसानो ने भी दिया होगा? क्यों सब मिलकर प्रणकरले की हम अपने अपने चित्र की जिम्मेदारी उठाएंगे, अगर एक किसान मेरे छेत्र से आत्म हत्या किया
ऊँटपटांग पोस्ट के जनक और सूत्रधार कई बार अपने पोस्ट में ज़िक्र कर चुके है की मेरे पोस्टो को पढ़ कर समझने के लिए ग्रेजुएट होना ज़रूरी है शायद हो भी और नहीं भी क्योंकि अगर मेरे जैसा अनपढ़ गँवार अगर सकझ सकता है तो आप भी ज़रूर समझेंगे?आयत निर्यात (IMPORT EXPORT) का व्यवसाय शायद कभी घाटे का सौदा नहीं रहा, इसी
देश की राजनीती में जनता से जुड़े तमाम मुद्दों में बेहतरी के नतीजे ढाक के तीन पात के आगे राख के ढेर से ज्यादा कुछ नज़र नहीं आता, ये मेरा राजनैतिक दल, ये तेरा, ये उसका, ये इनका और वो उनका?अब इसके आगे का विभाजन को देखिये ये मेरे क्षेत्र के नेताजी, वो उसके क्षेत्र का नेताजी, वे उनके क्षेत्र के और वो उनके
सभी राजनैतिक दलों के एकाथ दो नेताओं के साथ डिग्री के मामले कुछ न कुछ गड़बड़ झाला है, बहुत से विद्यार्थी पढ़ते है सबकी डिग्रीयां मिल भी जाती है बिना किसी त्रुटि के वक़्त पर? ये त्रुटि वाला डिग्री हमारे ही देश के नेताओं के पास क्यों होती है वो भी ऑक्सफ़ोर्ड,येल और बिहार से? इतिहास गवाह है कभी भारत में बाह
चुनाव आजकल जनता की सेवा के लिए नहीं सत्ता/कुर्सी के लिए लड़ी जाती है, और कुर्सी मिलने के बाद जनता के हिस्से की उत्थान राशि की बंदरबांट का मेवा को ही देश सेवा, इस देश कहा जाता है?देश के एक प्रदेश का चुनावी गणित डगमगा रहा है और चुनाव के बाद अगर कोई नई राजनैतिक सूत्र/गठबंधन सामने आये तो चौकने की बारी रा
७० और ८० के दशक मे समाचार माध्यम (प्रिंट मीडीया) से खबर हम तक पहुँचती थी। फिर दौर आया दूर से दर्शन सम्भव हुआ, माध्यम मे दोनो प्रिंट मीडीया और इलेक्ट्रॉनिक मीडीया का बोलबाला रहा? इलेक्ट्रॉनिक मीडीया का दबदबा कायम हुआ, संवाद का ध्वन्यलेखन सम्भव हो पाया, प्रिंट मीडीया इस दौर मे पिछड़ती हुई नज़र आ
देश का इतिहास गवाह है, चुनाव के ख़त्म होते ही वोटर यानी जनता का इस देश मे राजनीती के हाथों लूट जाना तय है? कार्यकर्ता सीढ़ी और जनता सीढ़ी मे वो कील है जिसे राजनीती चुनाव बाद तोड़ने मे कतई संकोच नहीं करती, कील रूपी जनता को जब निकाल कर फेंक देती है तब सीढ़ी रूपी कार्यकर्ता खुद व खुद अपनी औकात पहचान लेता है
वर्ष 2009 से 2013 के बीच इस देश के 10 परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी गई ??? ये सभी वैज्ञानिक देश के अनेक projects से जुड़े हुए थे। नहीं पता है ना !!! क्योंकि अभी हम व्यस्त हैं क्रिकेट वर्ल्ड कप में, हम busy हैं दिल्ली के ड्रामे में, हम व्यस्त हैं पाकिस्तान क्रिकेट टीम की हार का उत्सव मनाने में
स्वतंत्र मिडिया से ना तो केजीवाल जी के समर्थक को खुश होना चाहिये और ना ही मोदी जी के समर्थक को दुख? देश मे जनता का मानना है की, सही तस्वीर सामने होनी चाहिये जो जनता का अधिकार है और मीडिया का कर्तव्य भी। आज के दौर के मीडिया मे अगर कोई खामी है तभी इसकी ज़रूरत महसूस की जा रही नहीं तो खबरों के लिये समाच
सारी लड़ाई के पीछे के वजहों पर एक नज़र डाले तो मामला शून्य से शुरू होता है और शिफर पे समाप्त हो जाता है, क्योंकि चार कदम आगे चलने की कोशिश करते ही कोई चार कदम पीछे की और धकेल देता है! इसीलिए इंसान के तीर से ही इंसानियत घायल है? मामला राजनैतिक है आस्था से जुडी है या दुश्मन कोई और है जो हमारे बीच
जनता का विस्वास जितना है तो वातानुकूलित कमरों से बाहर निकलिए और स्कूलों में जाकर मध्यान भोजन का आनंद लीजिये अपने अपने विधान सभा और लोकसभा छेत्रों में. पांच सितारा जायका तो नहीं मिलेगा मगर देश की हकीहत से आप रूबरू ज़रूर हो जायेंगे? पानी में दाल है या दाल में पानी, चावल में कंकड़ है या कंकड़ में चावल, खा
राजनैतिक आस्था में अपनी व्यवस्था इस देश के लिए कोई नई नहीं है, हर कोई अपनी सुविधानुसार अपने गुजारे के लिए व्यवस्था के जुगाड़ में लगा रहता है, चिता से पहले जुगाड़ की चिंता इंसान की आदतों में शुमार है, एक कड़वा सत्य है! समय के साथ साथ आस्था से व्यवस्था बदलने का भी चलन है इस देश में तो क्या यह समझ लिया जा
दिल्ली : विदेश मंत्री सुषमा स्वराज मंगलवार शाम पाकिस्तान पहुंची वे बुधवार को इस्लामाबाद में हार्ट ऑफ एशिया कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेंगी. उनकी पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ से मुलाकात हो सकती है. साथ ही विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज से भी मुलाकात करेंगी.पिछले 8 दिनो में भारत-पाक
वाराणसी : मदद मागने वालो की सुन रहे है प्रभु. ट्रेन में बच्चों ने भूख लगने पर रेल मंत्री को ट्वीट कर खाना मांगा. रेल मंत्री ने तुरंत संज्ञान लेते हुए रेलवे को इंतजाम करने का आदेश दिया. इसके बाद कुछ ही देर में वाराणसी कैंट स्टेशन पर बच्चों को पूड़ी, सब्जी, दाल, चावल, पानी और कॉफी दिया गया. सोमवार की
इंडिया संवाद ब्यूरोनई दिल्लीः नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस प्रवक्ता और अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी मंगलवार को पटियाला हाउस कोर्ट में सभी अभियुक्त की ओर से पेश हुए। उन्होंने कोर्ट को यकीन दिलाया कि मामले से जुड़ेे सभी अभियुक्त कोर्ट में जल्दी ही पेश होंगे।उन्होंने बताया, हमें कोर्ट से एक तारीख मांग
जितने बाजू उतने सर गिन ले दुश्मन ध्यान से। जितने नेता उतने करप्सन गिन ले जनता ठीक से?
इंडिया संवाद ब्यूरोनई दिल्लीः राजधानी दिल्ली में प्रदूषण को लेकर सरकार ने जो सख्त कदम उठाए हैं, वह पहली नजर में भले ही हमें परेशान करता हो लेकिन चीन की राजधानी बीजिंग में प्रदूषण को लेकर जारी 'रेड अलर्ट' हमें अपने गुस्से पर पुनर्विचार करने को मजबूर करता है।चीन में प्रदूषण का स्तर किस कदर बढ़ चुका है,
इंडिया संवाद ब्यूरोनई दिल्ली: आजादी से अब तक देश में काफी बड़े घोटालों का इतिहास रहा है आजादी के बाद 40 से अधिक बड़े घोटाले हो चुके हैं. , कैग रिपोर्ट की अनुसार यूपीए-2 एक बार फिर से बड़े घोटाले की चपेट में घिरती नजर आ रही है. कैग रिपोर्ट के अनुसार ताजा घोटाला जिसमें मनमोहन सरकार पर 40 हजार करोड़
इंडिया संवाद ब्यूरोवाशिंगटन: कालाधन विदेश में जमा करने के मामले में भारत चौथे स्थान पर है। एक अमेरिकी विचार संस्था के मुताबिक, साल 2004-2013 के बीच तक़रीबन 51 अरब डालर सालाना भारत से बाहर ले जाया गया।वाशिंगटन की एक अनुसंधान एवं सलाहकार संस्थान 'ग्लोबल फिनांशल इंटेग्रिटी' (जीएफआई) द्वारा जारी रपट के म
इंडिया संवाद ब्यूरोनई दिल्ली : रेल सुरक्षा को महत्वपूर्ण और गंभीर चिंता वाली बात करार देते हुए रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने आज कहा कि इससे निपटने के लिए वैश्विक सहयोग की जरूरत है क्योंकि आतंकवादियों द्वारा रेलवे को आसान निशाना समझा जाता है। रेल सुरक्षा के मुद्दे पर चर्चा के लिए आयोजित सम्मेलन में प्रभु
क्या लोकतंत्र अलोकतन्त्र हो गया है सैकड़ों पंजीकृत राजनैतिक दल, जितने दल उतने विचारधारा क्या आज़ादी के बाद बांटो और राज करो के तहत इस सोच को देश की राजनीती में जगह दी गई थी या व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए पक्ष और विपक्ष की भूमिका लोकतंत्र में असरदार रहें इसकी वकालत थी? क्यों लोकतंत्र के नाम
खराब नीतियों द्वारा थोपे गए नुकसान भयानक हो सकते हैं, लेकिन टीवी के एंकरों का ध्यान इन पर कभी नहीं जाता। जनता की नजर भी इन पर तभी जाती है, जब कोई विशाल संख्या ऐसे नुकसानों के साथ नत्थी कर दी जाती है (मसलन 2 जी स्पेक्ट्रम और कोल ब्लॉक्स के मामले)। इन मामलों से जुड़ी संख्याएं बाद में बढ़ा-चढ़ा कर पेश
जिस राजनीति की आदत हमें हो सी गयी थी वह अब बदल रही है? देखने वाली बात यह होगी की पहले कौन बदलता है नेता या जनता?
चकाचौध वाली दुनिया (Glamorous World) पत्रकारिता जगत को लुभाती भी है और मजबूर भी करती है उस मुकाम तक पहुंचने के लिये, इस पहलू को नकारा नहीं जा सकता। इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे जो संघर्षगाथा है उसे हर कोई नज़रअंदाज़ करना चाहता है, और सफलता की सीढियों के लिये जो पायदान का चयन करता है उससे पत्रकार या प
क्या काम करने के लिए पांच सितारा होटल में रहना ज़रूरी है, क्या बिना पांच सितारा होटल में रुके काम नहीं किया जा सकता, जिस देश में लाखों बेघर है, करोडो भूखे है उस देश के जनता के प्रतिनिधि को काम करने के लिए पांच सितारा होटल की सुविधा चाहिए, रहने के लिए अच्छी जगह चाहिए इस बात से किसको इंकार है मगर पांच
सभी अपनी अपनी सरकार बनाने में व्यस्त है और जनता भी अपने अपने हिसाब से अपनी पसंदीदा सरकार बना रही है, विचारधारा में विभाजित वर्ग भी अपने आंकलन में मस्त है और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में पत्रकारिता जगत भी खुलकर कहें या संभल कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही है?के