देश का इतिहास गवाह है, चुनाव के ख़त्म होते ही वोटर यानी जनता का इस देश मे राजनीती के हाथों लूट जाना तय है? कार्यकर्ता सीढ़ी और जनता सीढ़ी मे वो कील है जिसे राजनीती चुनाव बाद तोड़ने मे कतई संकोच नहीं करती, कील रूपी जनता को जब निकाल कर फेंक देती है तब सीढ़ी रूपी कार्यकर्ता खुद व खुद अपनी औकात पहचान लेता है?
देश की व्यवस्था मे बिना कार्यकर्ता के जब राजनीती मे सीक भी नहीं डोलती और बिना वोटर के सत्ता हासील नहीं होती, तब राजनीती भी यह जहमत नहीं उठाती है की लोगो को शिक्षित करें और रोजगार दे, अगर ये समझ गए और काम करने लगे तो का राजनीती का ढोल कौन पिटेगा?
सालों से शिक्षा, बेरोजगारी गरीबी पर राजनीती करती आई राजनीती आजतक इस पर लगाम लगाने मे विफल रही है, गरीबी हटाओ एक जुमला जो किताबों और इश्ताहरों तक सिमट गया पर बार बार राजनीती होती आई पर गरीबी नहीं हटी पर गरीब ज़रूर हथियार डाल कर स्वर्ग सिधार गए?
एक पड़यंत्र के तहत सरकारी शिक्षा व्यवस्था को कुपोषित किया गया, स्वास्थ विभाग को भी रोगी बनाया गया क्या इसके पीछे की वजह का खुलासा देश पे ७० साल राज करने वाले क्या बताएँगे नही, वजह इनके पीछे घूमने वाला और चमचागिरी करने वाला फिर कौन रहेगा?