एशियन पेंट का करें बहिष्कार : तारिक फतह और पतंजलि का करें समर्थन

12:18 pm

हिन्दुओं को ज़लील करने , उनके धर्म का मज़ाक़ बनाने , उनकी मान्यताओं का मखोल उड़ाने के लिए ढेरों फ़िल्में बनती हैं , दुनिया भर के अपने और दूसरे धर्मों के लोग ( आमिर खान टाइप) आए दिन आते हैं और हिन्दुओं को उपदेश देते हैं , पर हिंदू सब कुछ चुपचाप सुनता है , कुछ नहीं बोलता , फिर जब कभी भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसी बातों पर बोलता है तो असहिष्णु क़रार दे दिया जाता है ।
लेकिन मुस्लिमों की कट्टरपंथी के ख़िलाफ़ एक कार्यक्रम शुरू होता है फ़तेह का फ़तवा के तारेक फ़तेह और उनके कार्यक्रम के ख़िलाफ़ कुछ ख़ुद को सहिष्णु कहने वाले लोग कोर्ट चले जाते हैं , कुछ petition started by Mehdi Hasan Aini लोग ऑनलाइन पटिशन डालते हैं , कहते हैं आराम से TV पर बात करने से देश का माहोल ख़राब हो रहा है , लेकिन यही लोग भारत तेरे टुकड़े होंगे या पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारों से देश का माहोल ख़राब होता है ये बात नहीं मानते ना ही इसपर कोई भी विरोध करते हैं ।
कैसे अजीब दोगलेपन ने देश को घेर लिया है , अब ख़बर ये आ रही है कि शांतिदूतों यानी कट्टरपंथी मुस्लिमों के दवाब में आकर Asian Paint नाम की बड़ी कम्पनी ने फ़तेह का फ़तवा कार्यक्रम की sponsership से अपना हाथ खींच लिया है , लेकिन ख़ुशी की बात ये है कि बाबा रामदेव अब इसके लिए आगे आ गए हैं ।
शांतिमज़हब के विरुद्ध बोलने की यही सज़ा है। बंदे की सीधे रोज़ी रोटी पर चोट की जाती है। अब हो सकता है ये कार्यक्रम भी बंद हो जाएगा। धीरे धीरे तारेक फ़तह को TV कार्यक्रम व सेमिनार में बुलाना बंद हो जाएगा। किताबें छपनी व बिकनी बंद हो जाएगी। फ़तह गुमनामी में खो जाएगा। सौ फ़तह को संदेश मिल जाएगा। यही ताक़त है low level, random, but unceasing violence की।

बता दें कि आरिफ़ मोहम्मद खान ने शाहबानो केस में राजीव गांधी के आतमसमर्पण के विरोध में कांग्रेस छोड़ दी थी। जामिया में एक दिन उन पर जानलेवा हमला भी हुआ। आज गुमनामी में है। पता नहीं जीवित भी है या नहीं। काफ़िरों के चक्कर में ना पड कर क़ौम के साथ रहते तो ठाठ से मंत्री रहते। इसलिए फिर कोई आरिफ़ सामने भी नहीं आया कभी।
क्या हम हिंदू लोग लोग “अर्जुन का दीवार पर निबंध” कभी बंद करा पाए ? ना ही हम PK, और ना अब पद्मावती रोक पायेंगे ? क्यूँकि पोस्टर फाड़ो तो लोग intolerant jokers कह कर हँसते है, और सिर फाड़ो तो घुटनो पर झुककर “धार्मिक भावनाओं” का आदर करने लगते है । और शांतिदूतों को सर फाड़ना अच्छे से आता है ।
देखते हैं बाबा रामदेव ने जो पहल की है उसका हिंदू कितना आदर करते हैं क्यूँकि बाबा रामदेव के ख़िलाफ़ भी फ़तवों की बाढ़ आनी शुरू होने वाली है , बहु राष्ट्रीय कम्पनियों की आखों में तो वे पहले से ही खटकते हैं
हिन्दू समाज को भी समझना चाहिए की, पतंजलि जैसे कंपनियों का समर्थन क्यों जरुरी है
ऐसी कम्पनियाँ रहेंगी तो ही राष्ट्रवाद का काम होगा, एशियन पेंट जैसी कम्पनियाँ सिर्फ पैसा कमाती है, समाज के लिए कुछ नहीं करती