नमस्कार
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि लगभग 90% भारतीय अंग्रेजी की एबीसी भी नहीं जानते हैं इसके बाद भी देश में बैंकिंग सेवाएँ केवल इसी भाषा में दी जाती हैं जिसमें खाता खोलने से लेकर नेट बैकिंग, खाता सम्बन्धी एसएमएस से लेकर बैंक की ओर से मिलने वाला अन्य पत्राचार, किसानों के कृषि ऋण के दस्तावेज, दुपहिया वाहन के समझौते और अन्य प्रपत्र, गृह ऋण के सभी दस्तावेज आदि।
बैंक किस दस्तावेज पर किन शर्तों पर हस्ताक्षर ले रहा है, अंग्रेजी न जानने वाले करोड़ों ग्राहकों को कभी पता ही नहीं चलता है।
सबसे शर्मनाक बात है कि कुछ बैंक दस्तावेजों/चैक आदि पर मातृभाषा में किए गए हस्ताक्षर स्वीकार नहीं करते हैं और अंग्रेजी में हस्ताक्षर न करने वाले हर ग्राहक से अलग से एक घोषणा पर हस्ताक्षर करवाते हैं, जिस पर लिखा होता है कि ग्राहक को अंग्रेजी नहीं आती है पर उसे बैंक ने सभी शर्तें व नियम अच्छी तरह उसकी भाषा में समझा दिए हैं और अंग्रेजी में छपे आवेदन, मंजूरी पत्र एवं ऋण दस्तावेज में दर्ज शर्तें ग्राहक को मंजूर हैं, उस पर बंधनकारी हैं। क्या हमारा देश आज भी अंग्रेजों का गुलाम हैं?
विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद नोट बदलने का प्रपत्र भी भारतीय रिज़र्व बैंक ने सिर्फ अंग्रेजी जारी किया, जिसे अंग्रेजी के ज्ञान के अभाव में भरा नहीं जा सकता था और लोगों को अंग्रेजी जानने वाले लोगों के आगे हाथ जोड़ने पड़े, मिन्नतें करनी पड़ीं।
मोबाइल पर बैंक का एसएमएस आता है तो गाँवों और छोटे शहरों के लोग परेशान होते हैं कि कोई उनको पढ़कर बता दे कि उसमें लिखा क्या है?
मातृभाषा में पढ़े लिखे लोगों को इस अंग्रेजीवाद ने “निरक्षर” बना दिया, क्या यह शर्मनाक नहीं है? क्या भारत में साक्षरता का अर्थ अंग्रेजी का ज्ञान होना हो गया है?
देश का लगभग हर बैंक प्रति वर्ष करोड़ों रुपयों का शुद्ध लाभ कमाता है पर कुछ लाख रुपये अपने ग्राहकों को बैंकिंग सेवाएँभारतीय भाषाओं में देने लिए खर्च करने को तैयार नहीं हैं।
नए युग की सभी बैंकिंग सेवाएँ जैसे नेटबैंकिंग, वेबसाइट, यूपीआइ, मोबाइल एप, ई-बटुआ, खाता खोलने, कर्ज लेने, शिकायत करने के सभी ऑनलाइन विकल्प सिर्फ अंग्रेजी में हैं, बैंक एसएमएस, ईमेल और चिट्ठियां सिर्फ अंग्रेजी में लिखते हैं उन्हें इस बात से कुछ लेना देना नहीं कि उनका ग्राहक अंग्रेजी पढ़ भी सकता है अथवा नहीं.
भारत में वित्तीय समावेशन की सबसे बड़ी बाधा अंग्रेजी है।
यह सही समय है जब हम इस माँग को सरकार से मनवा सकते हैं क्योंकि सरकार, भारतीय अर्थव्यवस्था को #कम_नकदी_वाली डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने के लिए अनेक उपाय कर रही है पर उनके ध्यान में यह बात नहीं है कि डिजिटल सेवाएँ तभी सफल होंगी जब वे भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हों। हमें अपनी आवाज़ बुलंद करनी है।आइये हम सभी प्रधानमंत्री से अनुरोध करें कि वे भारत में कार्यरत बैंकों के लिए सभी ऑनलाइन और ऑफलाइन बैंकिंग सेवाएँ भारतीय भाषाओं में उपलब्ध करवाने का अनिवार्य निर्देश जारी करें।
खाता खोलते समय ही बैंक, ग्राहकों से पूछे कि ग्राहक किस भारतीय भाषा में बैंकिंग सेवाएँ चाहते हैं, यही विकल्प मौजूदा ग्राहकों को मिले। इसके बाद बैंक के लिए यह अनिवार्य होगा कि ग्राहक को उसके द्वारा चुनी भाषा में सेवाएँ प्रदान करे।
मैं आप सभी देवियों और सज्जनों से विनती करती हूँ कि आप इस अभियान को अपना समर्थन दें। जय हिन्द
कृपया इस याचिका को सामाजिक माध्यमों यथा मूषक, शब्दनगरी, ट्विटर, व्हाट्स एप, हाइक और फेसबुक आदि पर साझा करें. हमें एक लाख हस्ताक्षरों की आवश्यकता है जो आपके सहयोग के बिना असंभव है।
चित्र सौजन्य: इंटरनेट