नीम गहरी जड़ वाला, मध्यम ऊंचाई का, साल भर हरा रहनेवाला और मध्यम तेजी से बढ़नेवाला वृक्ष है। उसकी ऊंचाई 18 मीटर तक होती है। उसका ऊपरी घेरा गोलाकार या अंडाकार होता है। उसकी छाल मोटी और भूरे रंग की होती है और अंदर की लकड़ी लाल रंग की होती है।
नीम हर प्रकार की जमीन में अच्छी प्रकार से उग सकता है। उसकी जड़ें काफी गहराई से पानी और पोषक तत्व प्राप्त करने में सक्षम होती हैं। नीम क्षारयुक्त जमीन में भी पैदा हो सकता है। किंतु जहां पानी भरा रहता हो, वहां वह नहीं होता। सूखी जलवायु उसे पसंद है। वह बहुत अधिक ठंड और गरमी (0-45 डिग्री सेल्सियस तक) भी सहन कर सकता है। 1500 मीटर तक की ऊंचाई और 450-1150 मिलीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र में वह होता है।
नीम पर सफेद फूल मार्च से अप्रैल के बीच आते हैं। इन फूलों से निंबोली तैयार होती है। कच्ची निंबोली हरे रंग की होती है और पकने पर पीले रंग की हो जाती है। निंबोलियां जून में झड़ जाती हैं। इन निंबोलियों से नीम के बीज प्राप्त होते हैं। ये बीज दो-तीन सप्ताहों तक ही स्फुरण करने की क्षमता बनाए रख पाते हैं। इसलिए हर वर्ष बीजों को नए सिरे से इकट्ठा किया जाता है। ताजे बीजों को कुछ दिनों तक धूप में सुखा लेने से उनकी स्फुरण क्षमता बढ़ती है। बोने के पांच वर्ष बाद पेड़ पर निंबोलियां आने लगती हैं। एक वृक्ष हर वर्ष 50-100 किलो निंबोलियां पैदा कर सकता है। नीम से एक हेक्टेयर में आठ वर्ष बाद 20 से 170 घन मीटर लकड़ी मिलती है।
नीम की लकड़ी का ईंधन के तौर पर उपयोग होता है। वह बहुत सख्त, मजबूत और टिकाऊ होती है, उसे कीट भी नहीं लगते। इस कारण उससे मकान, मेज-कुर्सी और खेती के औजार बनाए जाते हैं। नीम की हरी और पतली टहनियों से दातुन किया जाता है। नीम के पत्तों का हरी खाद के रूप में भी उपयोग होता है। नीम के पत्तों और बीजों में ऐजिडिरेक्ट्रिन नाम का रसायन होता है जो एक कारगर कीटनाशक है। मच्छर भगाने के लिए नीम के पत्तों का धुंआ किया जाता है। कीटों से अनाज की रक्षा के लिए अनाज की बोरियों और गोदामों में नीम के पत्ते रखे जाते हैं। नीम के गोंद से अनेक दवाएं बनाई जाती हैं। नीम के फल से बीज निकालने के बाद जो गूदा बचता है उसे सड़ाकर मिथेन गैस तैयार की जाती है, जिसे ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
नीम के बीजों में करीब 40 प्रतिशत तेल होता है। यह तेल दिए जलाने में, साबुन, दवाइयां कीटनाशक आदि बनाने में और मशीनों की आइलिंग में काम आता है। तेल निकालने के बाद बची खली पशुओं को खिलाई जा सकती है। नीम की छाल में जो टेनिन पाया जाता है उससे चमड़ा पकाया जा सकता है।
नीम आज अंतरराष्ट्रीय विवाद का कारण बना हुआ है। अमरीका की एक कंपनी ने उसके बीजों में मौजूद ऐजिडेरिक्ट्रिन नामक पदार्थ से एक टिकाऊ कीटनाशक बनाने की विधि को पेटेंट कर लिया है। भारत के अनेक वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता इससे बहुत नाराज हैं क्योंकि वे कहते हैं कि भारत के किसान सदियों से नीम के बीजों से प्राप्त तेल से कीटों को मारते आ रहे हैं, इसलिए अमरीका की इस कंपनी द्वारा नीम को पेंटट करना अनैतिक है। यह एक प्रकार से भारतीय किसानों के परंपरागत ज्ञान की चोरी है