'हथियार बदल गये हैं-1,
आपने एमआईबी (मेन इन ब्लेक) देखी थी??
यह उन फिल्मो में से है जिसे मैं ने सिनेमा हाल जाकर देखी थी।फिर सीडी,डीवीडी,पेन ड्राइव का जमाना बदलता गया।अपने में बहुत नये कलेवर में आया था।
...2 जुलाई 1997 को Barry Sonnenfeld द्वारा निर्देशित इस सीरीज की पहली फिल्म आई थी।एलियंस के हमलो और साजिशों पर बनी इस फिल्म ने दुनिया भर मे तहलका मचा दिया था।विल स्मिथ और टामी ली जोन्स दुनिया भर के दर्शको के चहेते सुपर स्टार हैं।लावेल कनिंघम के उपन्यास पर बेस्ड इस फिल्म ने उस समय के हिट टाइटेनिक की बराबरी की थी।फिल्म इतना चली की 2002 मे सेकंड पार्ट,2012 मे तीसरा पार्ट बनाना पड़ा था।
कहानी कोई खास नही है।विल स्मिथ और टामी ली जोन्स एक सीक्रेट एजेंसी मे है जो एलियन्स के ऊपर नजर रखते हैं।एलियन्स कभी आदमी का,कभी कीड़े या जानवर का रूप ले-ले,वेश बदल-बदल कर हमारी दुनिया के खिलाफ साजिश कर रहे...हीरो-हीरोइन उनके खिलाफ लड़ कर उन योजनाए विफल कर देते हैं। इस फिल्म मे गज़ब बात यह दर्शाया गया है की दुनिया मे रह रहे या जन-साधारणों को इन सब घटनाओ की जानकारी मे नही हैं।यही इस फिल्म की खासियत भी है।उसे मेकप,निर्देशन और स्कोरर पर तीन एकेडमी अवार्ड मिले थे।जब कभी किसी साधारण व्यक्ति ने वह घटनाए या संघर्ष देख ली दुनिया भर मे अफवाह और डर फैल जाने का खतरा होता है।'एजेंसी, यानी हीरो-लोग इस पर हर-पल सजग रहते हैं।उनके पास एक से एक गज़ट होते हैं उन्ही मे से एक गज़ट है ''मेमोरी डिलीटर।जो कोई भी उनके बारे मे जान जाता है वे उसकी वह स्पेशल याद डिलीट कर देते हैं।....अंत मे हीरो मुख्य नायक की मेमोरी डिलीट कर देता है क्योंकि वह रिटायर होना चाहता है।
'स्पाटलेस, माइंड आधारित कई फिल्मे हालीवुड मे बनकर आई है।बहुत ही सफल रही है।मेमोरी डिलीट कर दी जाती हैं उसके बाद की जिज्ञासा और ऐक्शन देखते ही बनता है।कुछ फिल्मों मे वे माइंड मे कई और स्पेशल यादे भी जोड़ देते हैं।उनकी बेजोड़ डाइरेकशन,प्रेजेंटेशन,साउंड इफेक्ट असली दुनिया बना डालती है।...डार्क सिटी,.....द ट्रान्स,.....इनसेपशन,.....टोटल रिकाल,.....Eternal Sunshine of the Spotless Mind,......50 फ़र्स्ट डेट,.....म्ंचूरियन कंडीडेट,..... जैसी फिल्मे आपको विज्ञान-गल्प समझने की क्षमता बढ़ा देती हैं कि मानव-कल्पनाओ-रचनाओ के विस्तार का अंत नही।
मुझे 'पे-चेक,और मोमेंटों सबसे ज्यादा पसन्द आई थी।वही मोमेंटों जिसे एक 'चोर,हमारे यहाँ 'गजनी, नाम से बना लिया था।मेरे पापा को भी पसंद थी।
''जेसन बोर्न,,सीरीज़ भी मेरी मनपसंद फिल्मे है वह केवल मात्र इसी विषय पर बनी फिल्म है।एजेंसी के अधिकारी उसकी याददाश्त नष्ट कर चुके है...अपने अतीत को तलाशता हुआ वह हर फिल्म के अंत मे प्रोग्रामर को मार देता है।पाँच सुपर-डुपर हिट मूवी लगातार बनती गई और दर्शको की संख्या मे इजाफा होता गया।साइंस-फिक्सन से अलग इन फिल्मों मे डिफरेंट तरह का कसावट होता है।रहस्य की परते-दर-परते खुलती हैं और रोमांच के चरम पर ले जाती है।
उनकी फिल्मों का सबसे बड़ा पहलू होता है वे अमूमन सुपर-डुपर हिट नावेल्स पर बनती है।यानी स्क्रिप्टिंग बाद मे होती है।
इन फिल्मों को बनाने के पीछे उनका कोई छिपा उद्देश्य अथवा कमीनापन नही होता।.... उनका उद्देश्य केवल मनोरन्जन,जाब सेटिसफैक्सन और पैसा कमाना होता है।विशुद्ध व्यवसाय...कोई हरामी-पंथी नही।इतनी मोटी कमाई है कि आपका दिमाग उड़ जाएगा।
मात्र इस एक विषय स्मृति-विलोपन पर हालीवुड बनी 15 फिल्मों ने इतना कमाया है जितना मुंबइया फिल्मों ने अपने ''पचासी-साल मे कुल-मिला-जोड़ कर भी नही कमाया है।उसमे भी कई चोरी और नकल भी शामिल है।
नेट पर सारा डाटा अवलेबल है आप खुद जोड़-घटा ले।जिनको क्न्फ़्युज्न हो मुझसे संपर्क करे।बेसिकल हमारे फिल्म-बाजो का निशाना कुछ और है।
पिछले कुछ माह पहले मैं ट्रेन से यात्रा कर रहा था।जिस कूपे मे मैं उसी मे दो-छात्र और एक छात्रा भी सफर कर रहे थे।खाली समय था सो उनसे बाते होने लगी।वे किसी प्राइवेट कालेज से इंजीनियरीग कर रहे थे।पढने-लिखने वाले होन-हार युवा थे।विभिन्न विषयो से गुजरते हुये इतिहास और फिर बाजीराव प्रथम पर बात आ गई।उनही दिनो फिल्म बाजीराव-मस्तानी फिल्म रिलीज हुई थी।
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि 'वे बच्चे बाजीराव को ऐयाश समझते थे।,उन्होने कई कहानिया और भी गढ़ डाली थी।जो निहायत ही घटिया थी।
चुकी बाजीराव के बारे मैं पूरा जानता था इसलिये तुरंत उन्हे करेक्ट किया।उन छात्रो ने यह भी बताया कि वे कल्पनाए किसने सुनाई...वह एक अध्यापक था।मैं ने नाम सुना तो कोई आश्चर्य नही।खुद समझिए!
मेरे समय तक तो कोई अखाड़ा नही बचा था किंतु बाबा,पापा और बुजुर्ग बताते थे कि गाँव के अखाड़े मे वीर शिवाजी,व् बाजीराव की वीरता के नारे लगते थे॥उसकी कहानिया बाबा,पापा और बुजुर्ग सुनाते थे।
जो बाजीराव पेशवा (१७२०-१७४०) पिछले ढाई सौ साल से राष्ट्र की सारी युवा पीढ़ीयों का 'हीरो था,,..आदर्श था।जिसने अपने 19 साल की उम्र मे मुस्लिमो के साम्राज्य की जड़े हिला दी थी। सिकंदर के बाद दुनिया के इतिहास मे ऐसा अजेय योद्धा नही मिलेगा जिसकी मौत 40 साल की उम्र मे हुई हो और उस बीच उसने 50 बड़े युद्ध जीते हो..और एक भी युद्द न हारा हो।उसकी इमेज क्यों खराब की गई आप खुद समझ लीजिए।
सभी सुल्तान,नबाब,सूबेदार 500-500 तक औरते रखते थे, दो हजार हरम रखने वाले अकबर के बजाय "युवाओ के आदर्श-नायक 'पेशवा,के किसी गैर-प्रमाणित प्रेम-संबंध को लेकर ..एक फिल्म बनाया जाता है, उसे "ऐयाश, इंपोज किया जाता है....।आज का युवक उसे प्यार-मुहब्बत टाइप की फिल्मी रंगरेलिया मनाने वाला उजड्ड मराठा समझने लगी।समझने की कोशिश करिए यह क्या है।1932 से देखिये करीब 500 से अधिक मिलेंगी...ज्न्हे एक टारगेट के लिए बनाया गया है।
आप ही सूची तैयार करिए।खुद समझ मे आ जाएगा।
किसने बनाई,और क्यो बनाई!
हालीवुड फिल्मों की 'स्टोरीज़ मे याददाश्त नष्ट करने के लिए कुछ फिल्मों मे 'गज़ट, क्ंप्यूटराइज्ड साफ्टवेयर तो कुछ मे इंजेक्शन,और कुछ मे सम्मोहन या अवचेतन प्रणाली का उपयोग दिखाया जाता है।हमारे फिल्मकार,साहित्यकार,मीडियाकार,कलाकार हालीवुड से बहुत आगे हैं।'वे,प्रोफेशनल नही शोशेषनल हैं... समाज मे ''स्मृति तंत्र विज्ञान, का उपयोग कर लक्ष्य साधते है।वे अपने रिमूवर,इम्पोजीटर, का उपयोग वामी-सामी-कामी दुश्मनों का हित साधने के लिए करते है,उनके पास ''मेमोरी रिमूवर,है उनका शासन पर कब्जा होना,कार्पोरल जगत मे पैठ,कोर्ष,साहित्य,कला,मीडिया,फिल्म,और नौकरशाही।
पिछले सौ साल से वह इसका खुलकर इस्तेमाल कर रहे है।
वे इतिहास की किताब मे घुसकर बता रहे,आर्य बाहर से आए।
अंग्रेज़ो के जमाने से ही वे सनातन समाज की मेमोरी मिटाने का प्रयास करते हैं।
केवल मिटाने ही नही।अपनी बातें,अपनी थ्योरी,शैली,जीवन-चर्या,कल्पनाए,इच्छाए तक थोप देते हैं।आपको पता भी् नही चलता।वे कोर्ष की किताबों,भाषा और इतिहास की किताब मे घुसकर इम्पोज कर देते हैं लुटेरे नही आप बाहर से आए,हारो का इतिहास,..आप का कोई इतिहास नही,अपने ही पूर्वजो के प्रति अनास्था और संशय,आपका बंटा समाज,मुस्लिमो को बुद्धिष्टों ने बुलाया था आदि हजारो-हजार बाते।.....और कोई देखने सुनने-टोकने वाला नही।
.....'लिस्टिंग खुद करे साफ-साफ देख-पहचान लेंगे।
वह केवल विज्ञापन,या कापी-राइटिंग नही है,वह केवल जिंगल नही है,न ही वह
नेट,मैगजीन या 30 मिनट का बुलेटिन है,वह केवल एलईडी टीवी भी नही है, न वह केवल रेडियो मिर्ची या एफ-एम चैनल है,न ही एक हजार से अधिक आ रहे मनोरंजक टीवी चैनल है,...अगर आप उसे केवल गीत-संगीत मान रहे है तो भी धोखे मे है।
वह आपके अवचेतन-मस्तिष्क का ""इम्पोजीटर मशीन, है।जो आपकी यादें छीन रहा है।
वे कोर्ष की किताबों,साहित्य,कलाए,मीडिया,फिल्मों के माध्यम से घुसकर आपके दिमाग से खेलते है।खास हिस्से को "डिलीट, कर रहे होते हैं और अपने कमीने-पन भरी तार्किकता डाल रहे होते हैं।धीरे-धीरे वह लॉजिकल लगने लगता है,और आप उनके पक्ष में बहस करने लगते हैं।आप कुछ जान ही नही पाते क्या हुआ।
जेहन के खास हिस्से से पुरखों की शौर्यगाथाए,गर्व,परिश्रम और संस्कार मिटाते है।अपनी मेमोरी पर "ज़ोर मारिए,वे आपके बाप-दादो की विरासत मिटा रहे हैं।राष्ट्र,समाज,अपने लोगो के प्रति हीनता का अहसास आपको घेर लेता है।
जल्द ही आप वामी-सामी''हजारो पदमिनियों,के जौहर को लव-जेहाद की भेट चढ़ते देखिये।यह एक "वामी लीला भंसाली, है।
पहचान लीजिये यही वह "रिमूवर गजट, है जो ;'मेन-इन-ब्लेक,मे उपयोग होता था,बड़े सलीके से आपके दिमाग में युग अंकित आपके पुरुखो की शौर्य-गाथाए मिटा रहा है।स्वाभिमान के मिटते ही बहन-बेटियां भोग्या में बदल ही जाती हैं।फिर कोई फरक नही पड़ता उन्हें कौन लूट ले जा रहा।
Pawan tripathi जी लिखित....