कोई विदेशी कंपनी हमको टेक्नोलॉजी देने नहीं आ रही है और वह कभी आएंगे भी नहीं क्योंकि जो उनके पास लेटेस्ट टेक्नोलॉजी है उसको ला कर हमको कभी भी नहीं देंगे. हां एक चीज में ध्यान में रखनी है कि कोई भी विदेशी कंपनी भारत को आकर अगर टेक्नोलॉजी देगी तो उनकी 20 साल पुरानी टेक्नोलॉजी हम को देगी जो उनके देश में बेकार हो चुकी है जिसका वो इस्तेमाल नहीं करते हैं जो उनके लिए फेंकने लायक है डंप करने लायक है. वही टेक्नोलॉजी वो हमको देंगे वह कोई लेटेस्ट टेक्नोलॉजी हमको लाकर नहीं देने वाले. अब उदाहरण से बताता हूं अमेरिका की बहुत सारी कंपनियां भारत में एक टेक्नोलॉजी लाई है जो अमेरिका में पिछले 20 साल से बंद हो चुकी है वो टेक्नोलॉजी कीटनाशक बनाने वाली टेक्नोलॉजी, पेस्टिसाइड बनाने वाली टेक्नोलॉजी, इंसेक्टिसाइड बनाने वाली टेक्नोलॉजी. नाम ले कर बताता हूं जो कीटनाशक अमेरिका में पिछले 20 साल पहले बंद हो चुके हैं जिसको बनना और बिकना और उनके कारखाने बेकार हो गए. वो टेक्नोलॉजी भारत आ रही है. मै आपको एक बहुत रोचक जानकारी बताता हूं यह जो कीटनाशक बनाने वाले कारखाने होते हैं, और रासायनिक खाद बनाने वाले कारखाने होते हैं, यूरिया, डीएपी, सुपर फास्फेट, एंडोसल्फान, मैलाथियान, पैराथियान, बेंजीन हेक्सा क्लोराइड, क्लोरोपायरीफॉस, मोनो क्रोटोफोस, डाई क्रोटोफोस. यह सारे जहरीले रसायन बनाने वाले जो कारखाने अमेरिका ओर यूरोप में1939 में जब दूसरा विश्वयुद्ध शुरु हुआ था तब लगाए गए थे.
विडियो में देखिए कैसे ये हमारे शरीर पर प्रभाव डालती है >>
यूरोप और अमेरिका में 1939 से 1945 के बीच में यह सारे कीटनाशक और जहरीले रसायन बनाने वाले कारखाने लगे क्योंकि उस समय बम बनाने में इन सभी जहरीले रसायनों का इस्तेमाल होता था और यह आप आप जानते हैं कि दूसरे विश्वयुद्ध में लाखों करोड़ों रुपए के बम बिके हैं, हथियार बीके हैं, और उन हथियारों और बम के कारण 2 करोड़ से ज्यादा लोग मरे हैं. बाद में क्या हुआ दूसरा विश्व युद्ध खत्म हो गया रासायनिक हथियार बिकना बंद हो गए, बम बिकना बंद हो गए. तो बम को बनाने वाला जो कच्चा माल होता था रॉ मैटेरियल वो बिकना बंद हो गया. उसके बाद इन सब देशों ने क्या रास्ता निकाला कि जो कच्चा माल है उनके पास रॉ मटेरियल है वह दूसरे देशों में बेचा जाए और दूसरे देशों में उसकी खपत कराई जाए तो दूसरे देशों में उस कच्चे माल को भेजने के लिए रासायनिक खाद और कीटनाशक बना लिए और धीरे धीरे अपने देश से उन्होंने अपने देश से सारा उत्पादन बंद कर दिया आज से 20 साल पहले अमेरिका ने रासयनिक खाद और कीटनाशक के जो जो कारखाने बंद किये वह सारे के सारी टेक्नोलॉजी उन्होंने भारत को उठा कर देदी और हमने वो खरीद ली जो जहर बनाने वाले कारखाने हैं. अब बेंजीन हेक्सा क्लोराइड यहां बनता है, डी डी टी यहां बनता है, क्लोरोपायरीफॉस यहां बनता है, मोनोक्रोटोफॉस बनता है, डाई क्रोटोफोस बनता है. ऐसे 56 से ज्यादा जहरीले रसायन है जो अमेरिका और यूरोप में बनना बंद हो चुके हैं लेकिन वह भारत में बनते है यहां पर उनका माल बिकता है बेचे जाते हैं किसानों को फसा-फसा कर खेतों में उनको डलवाया जाता है
यह टेक्नोलॉजी विदेशों ने हमको दी है और टेक्नोलॉजी का जानते हैं साइड इफेक्ट कितना है एक ही घटना सुनाता हूं आप उसे अंदाजा लगाइए 1984 में अमेरिका की एक कंपनी ने अमेरिका से अपना कारखाना उठाकर भारत में लगाया उस कंपनी का नाम था यूनियन कार्बाइड और वह कारखाना भोपाल में लगा, बहुत घनी बस्ती के बीच में जवाहर नगर में लगा . उस कारखाने में उन्होंने एक जहरीला सामान बनाना शुरु किया जिसका नाम था 777 . एक कीटनाशक वो बनाते थे उसमे जहरीले रसायन और गैसों का इस्तेमाल करते थे और एक दिन वह जहरीली गैस का सिलेंडर फट गया उसमें से हजारों टन जहरीली गैस निकली और भोपाल में 17000 लोग एक ही रात में तड़प तड़प कर मर गए और एक लाख से ज्यादा लोग जिंदगी भर के लिए विकलांग हो गए. किसी के फेफड़े गल गए, किसी की किडनी खराब हो गई, किसी का लिवर चला गया, किसी की आंखें चली गई, किसी की सुनने की शक्ति चली गई, किसी की प्रो क्रिएशन की ताकत खत्म हो गई, ऐसी विकलांगता में एक लाख से ज्यादा लोग और आने वाली पीढ़ियों पर उसका असर है क्योंकि अभी तक भोपाल में बच्चे पैदा होते हैं वो इस दुर्घटना के बाद विकलांग पैदा होते हैं जबकि इस घटना को 25 साल से ज्यादा गुजर गए है. अमेरिका से हमारे देश में यह टेक्नोलॉजी आई उनके यहां काम में नहीं आती रिजेक्ट हो गयी थी. वो टेक्नोलॉजी लाकर उन्होंने भारत में स्थापित की और इतनी बड़ी दुर्घटना हुई. मुझे दुःख और अफसोस इस बात का है कि यूनियन कार्बाइड का जो एक कारखाना भोपाल में था जिससे इतनी बड़ी दुर्घटना हुई ऐसे 56 से ज्यादा कारखाने भारत में अलग-अलग स्थानों पर लगे हुए हैं अमेरिका और यूरोप के देशों की लाई हुई रद्दी से रद्दी तकनीक ी उसने इस्तेमाल की जा रही है और जहर का उत्पादन किया जा रहा है. और जहर भारतीय किसानों को बेचा जा रहा है किसान उसको खेत में डाल रहे हैं खेत में से वह गेहूं चावल चना दाल में आ रहा है फिर वह हमारे शरीर में आ रहा है फिर उसको खाकर हमारे शरीर में बीसियों किस्म की बीमारियां हो रही हैं इतनी रद्दी और घटिया टेक्नोलॉजी यूरोप और अमेरिका से हमारे देश में आती है. यह हमें ध्यान देना चाहिए कि वह हाई टेक्नोलॉजी हमको नहीं देते जो टेक्नोलॉजी उनके यहां बिल्कुल काम की नहीं है कबाड़ की है उसको उठाकर भारत को बेच देते हैं
देखिए टेक्नोलोजी के नाम पर विदेशी से क्या आ रहा है और उसके क्या परिणाम सामने आ रहे है