नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में साम्प्रदायिक तनाव बरकरार है। मुस्लिम संप्रदाय द्वारा वहां के हिंदुओं को खदेड़ कर भगाया जा रहा है। वहां आये दिन हिंदुओं के घरों और दुकानों को जलाया जा रहा है देश का मीडिया और बंगाल की ममता सरकार ने चूप्पी साध रखी है। इसी कारण पुरे देश में लोग आक्रोशित है।
नोटबंदी के बाद प्रतिदिन पीएम मोदी का विरोध कर देश की चिंता करने वाली ममता बनर्जी ने अपने ही प्रदेश में हो रहे हिंदुओं पर अत्याचार को लेकर मौन धारण कर लिया है। ममता सरकार बहुसंख्यकों की कीमत पर अल्पसंख्यकों को खुश करने की साफ- साफ कोशिश कर रही है। आपको बता दे कि हाई कोर्ट का भी कहना है कि सरकार को इस बात का एहसास होना चाहिए कि राजनीति के साथ धर्म को मिलाना खतरनाक हो सकता है। यानी राजनीति और धर्म के कॉकटेल से वोटों का नशा होता है और हमारे नेता वर्षों से इसी नशे में झूम रहे हैं। अदालत के इस कथन के बाद पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार की खूब किरकिरी हुई थी। इसीलिए अब ये सवाल उठ रहा है कि क्या पश्चिम बंगाल की सरकार ने जानबूझकर, एक पक्ष को खुश करने के लिए या मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए कानून-व्यवस्था की अनदेखी की? या फिर ये मान लिया जाए कि पश्चिम बंगाल सरकार सबकुछ जानते और समझते हुए भी कानून व्यवस्था को बनाए रखने में फेल हो गई?
बंगाल में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर भड़के लोग, उठाये मीडिया और ममता सरकार पर सवाल -
देश के तमाम मीडिया चैनल इस घटना को धार्मिक चश्मे से देख रहे हैं और इसीलिए ये तमाम चैनल या अख़बार इन ख़बरों के मामले में सेलेक्टिव हो गए हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या किसी हिंसक घटना को धर्म के चश्में से देखकर अनदेखा कर देना जायज़ है। क्या इस बड़ी ख़बर को नज़रअंदाज़ कर देने से ये समस्या खत्म हो जाएगी?
मंगलवार को ट्विटर पर #BengalInFlames हैशटैग के साथ टॉप ट्रेंड में था। इस ट्रेंड के जरिये देशभर के लोग ममता सरकार और मीडिया को लेकर अपना गुस्सा जाहिर कर रहे थे।
देखिये ट्वीट-