क्या JNU के यादवपुर यूनिवर्सिटी भी इस कड़ी में अगली राजनैतिक शक्ति प्रदर्शन का अखाडा बनेगा, देश में उन राजनैतिक समर्थकों की सोच उजागर हो रही है जो देश के साथ नहीं है और साथ में राजनैतिक दलों की भी?
विरोध के मायने देश के खिलाफ प्रदर्शन नहीं होता, देश में लोकतंत्र के मंदिर पर हमला करने वाले का साथ भी अगर इस देश की राजनीती का साथ खड़ी होती है तो देश के राजनेताओं की सोच कहाँ जा रही है यह आंकलन का विषय है?
वोट के लिए नेता इतने गिर जायेंगे इसका इस अंदाजा देश को नहीं था, नई राजनीती में भी वही छाप नजर आ रही है जो राजनीती अब अपनी उम्र पूरी कर चुकी है? देश के अंदर देश के टुकड़े करने की बात तो वही कर सकता है जिसकी सोच देश के साथ नहीं है?