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दहेज प्रथा की आग में, कब तक जलेगी नारी... कहीं हत्या, कहीं आत्महत्या, कहीं विवश बेचारी।
उसका दिल,दिल नहीं, रेत का मैदान निकला...कई बार लिखा नाम अपना,हर बार मिटा देती है|