अपनी बात मुझमें से गर निकाल दो मेरी लेखनी मेरी ज़िन्दगी से मेरी नहीं निभनी यूँ तो आते हैं सभी जीने के लिये पर ज़िन्दगी न लगती सबको भली इतनी सुख में सखी और दुख में दोस्त मेरी लेखनी ने कभी न होने दी कोफ्त मेरी अनुभूतियाँ ,जो कवित
मेरी 1970 की रचनाएँ इस पुस्तक में संग्रहित की गयी है। उस काल में मैं दशवीं कक्षा में पढता था। दशम कक्षा में मैं एक हस्त निर्मित कापी में अपनी कविताएँ फेअर करके लिखता था और वह सहेज के रखी हुई कापी इस समय लगभग 70 वर्ष की अवस्था में मेरे बहुत काम आई। उस
वो मेरी खामोशी को मेरी आशिकी समझ बैठी। वो मेरे पास आने से पहले खुद को दूर समझ बैठी। मैं साथ साथ चलना चाहता था, उसके मगर वो खुद को अकेला समझ बैठी। वो मेरी खामोशी को मेरी आशिकी समझ बैठी। वो मेरे पास आने से पहले खुद को दूर समझ बैठी।
राजधानी का एक सरकारी दफ़्तर, उसकी आबो-हवा और वहाँ काम करनेवाले लोगों की रग-रग का हाल। वास्तविकता के एक-एक शेड को कम-से-कम शब्दों में पकड़कर सँजो देने में माहिर कृष्णा जी की भाषा इस कृति में भी अपने रचनात्मक शिखर पर है। उनकी तमाम कृतियों की तरह यह उ
छंद के साधकों के लिए उपयोगी पुस्तक।
Vigyapan: Bhasha Aur Sanrachna Read more
आज मैं मुनव्वर भाई की किताब ‘पीपल छाँव’ के नीचे बैठकर अपनी माँ को याद करता रहा। ये है उनके क़लम का जादू, जिसको मैं ही नहीं सारी दुनिया जानती है। - पद्मश्री गोपाल दास ‘नीरज’ ऐसा नहीं है कि इससे पहले उर्दू शायरी में ‘माँ’ का हवाला नहीं था, ज़रूर था, लेकि
उनकी आवाज़ से चेहरे बनते हैं। ढेरों चेहरे,जो अपनी पहचान को किसी रंग-रूप या नैन -नक्शे से नहीं, बल्कि सुर और रागिनी के आइनें में देखने से आकार पते हैं। एक ऐसी सलोनी निर्मिती, जिसमे सुर का चेहरा दरअसल भावनाओं का चेहरा बन जाता है। कुछ-कुछ उस तरह,जैसे बचप
Mein Jo Hoon, 'Jon Elia' Hoon Read more
आज यह कलम, बेपरवाह होकर बोलेगी। कुछ अल्फाज कहेगी, कुछ राज खोलेगी।।
आधुनिक हिन्दी कथा-जगत में अपने संवेदनशील गद्य और अमर पात्रों के लिए जानी जानेवाली कथाकार कृष्णा सोबती की प्रारम्भिक कहानियाँ इस पुस्तक में संकलित हैं। शब्दों की आत्मा से साक्षात्कार करनेवाली कृष्णा सोबती ने अपनी रचना-यात्रा के हर पड़ाव पर किसी-न-किसी
यह किताब को पुस्तक नही कहेगे शायद यह मेरी आत्मा है यह मेरे द्वारा की गई कल्पना और उसको कविता के रूप में संकलित करना और लिख देना ही मैं हूँ । इसको किताब कहना लेखक का अपमान है । यह ह्दय है इस संकलन में आपको कविताएँ मिलेगी जो मेरे द्वारा लिखी गयी ह
‘सोशल वर्क’ और ‘सोशल जस्टिस’ इन दो शब्दों के बीच के स्पेश का मोहक किन्तु मार्मिक प्रतिबिम्बन है अलका सरावगी का उपन्यास—‘शेष कादम्बरी’। वृद्ध और युवा जीवन-दृष्टि के फ़र्क़ को रेखांकित करनेवाला यह उपन्यास अलका सरावगी के जीवन्त लेखन का ऐसा प्रतीक है जिसमे
ये किताब कविता शायरी संग्रह है आप सब सोच रहे होंगे की अपने सपने नाम आखिर क्यों रखा गया है। तो जिंदगी में कभी कभी अपनी जिम्मेदारीयों की वजह से हम सब के दिल में कुछ न कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं तो हमारे सपने को नाम दे कर उन्हें हमने अपने सपने लिख दिया
शायद सबसे अच्छी तस्वीरें वो होती हैं, जिन्हें हम फेसबुक पे नहीं लगा सकते. उस पुराने एल्बम को देखते हुए लगा, हम कब बड़े हो गए पता ही नहीं चला, मतलब डर तो पापा से आज भी लगता है, पर वो अब डाँटते नहीं हैं, मम्मी को मेरी फिक्र आज भी है, पर अब वो उतने सवाल
मेरा सपना कब सच होगा मुरादी लाल रोज यही सोच पर रहता,,, हर दिन वो लोग और आसपास अपने दोस्त से रहती मै नेता बनूंगा और लोगो की हर समस्या, सुविधा, लोगो को काम दूंगा ।।। आखिर वह दिन आ गया,,, पंचायत मुखिया का चुनाव होने वाला था उसने भी नामकंन भर दिया,,,,
पुलगांव ग्राम में एक किसान को 5000) 00 देकर वहां का साहुकार साव जी उसकी ज़मीन का कागज अपने पास रख लेता है और इकरार नामा मेँ ऐसी शर्ते लिखवा लेता है की वह किसान शायद ही अपने द्वारा ली गयी उधारी को वापस कर सके। पर समय के साथ ऐसी बात होती है की साहुका
आचार्य चतुरसेन की विशिष्ट कहानियों का यह अनुपम संकलन है। सम्भवतः इस संग्रह में उनकी प्रारंभिक कहानियां संकलित हैं। इन रचनाओं का काल सन् 1920-30 के आसपास माना गया है। इन कहानियों में मानव की मनोवृत्ति का और सामाजिक विसंगतियों का अध्ययन किया गया है। यह