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शिल्प - शौक की किताबें

शिल्प शौक की सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों को पढ़ें Shabd.in पर। हमारा यह संग्रह शिल्प शौक के बेजोड़ नमूनों का भंडार है। इस संग्रह में विभिन्न कलाकारी, व्यक्ति विशेष के हुनर, तथा पाठक वर्ग में रचनात्मक कौशल विकास की अपार संभावनाएं हैं। उदाहरण के लिए भवन निर्माण के लिए राज मिस्त्री, बढ़ई, कुम्हार, सुनार और लुहार जैसे कई पेशेवर पेशों में उत्कृष्ट कलाकारी के नमूने हैं। तो चलते हैं शिल्प शौक के उत्कृष्ट कलाकारी से परिचय करने Shabd.in के साथ।
अतीत के पन्ने

अतीत के पन्ने

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

मेरी 1970 की रचनाएँ इस पुस्तक में संग्रहित की गयी है। उस काल में मैं दशवीं कक्षा में पढता था। दशम कक्षा में मैं एक हस्त निर्मित कापी में अपनी कविताएँ फेअर करके लिखता था और वह सहेज के रखी हुई कापी इस समय लगभग 70 वर्ष की अवस्था में मेरे बहुत काम आई। उस

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अतीत के पन्ने

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

मेरी 1970 की रचनाएँ इस पुस्तक में संग्रहित की गयी है। उस काल में मैं दशवीं कक्षा में पढता था। दशम कक्षा में मैं एक हस्त निर्मित कापी में अपनी कविताएँ फेअर करके लिखता था और वह सहेज के रखी हुई कापी इस समय लगभग 70 वर्ष की अवस्था में मेरे बहुत काम आई। उस

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सुनो न!

सुनो न!

सन्ध्या गोयल सुगम्या

अपनी बात मुझमें से गर निकाल दो मेरी लेखनी मेरी ज़िन्दगी से मेरी नहीं निभनी यूँ तो आते हैं सभी जीने के लिये पर ज़िन्दगी न लगती सबको भली इतनी सुख में सखी और दुख में दोस्त मेरी लेखनी ने कभी न होने दी कोफ्त मेरी अनुभूतियाँ ,जो कवित

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₹ 63/-

सुनो न!

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सन्ध्या गोयल सुगम्या

अपनी बात मुझमें से गर निकाल दो मेरी लेखनी मेरी ज़िन्दगी से मेरी नहीं निभनी यूँ तो आते हैं सभी जीने के लिये पर ज़िन्दगी न लगती सबको भली इतनी सुख में सखी और दुख में दोस्त मेरी लेखनी ने कभी न होने दी कोफ्त मेरी अनुभूतियाँ ,जो कवित

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Vigyapan: Bhasha Aur Sanrachna

Vigyapan: Bhasha Aur Sanrachna

Rekha Sethi

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Rekha Sethi

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 यारों के यार

यारों के यार

कृष्णा सोबती

राजधानी का एक सरकारी दफ़्तर, उसकी आबो-हवा और वहाँ काम करनेवाले लोगों की रग-रग का हाल। वास्तविकता के एक-एक शेड को कम-से-कम शब्दों में पकड़कर सँजो देने में माहिर कृष्णा जी की भाषा इस कृति में भी अपने रचनात्मक शिखर पर है। उनकी तमाम कृतियों की तरह यह उ

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 यारों के यार

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कृष्णा सोबती

राजधानी का एक सरकारी दफ़्तर, उसकी आबो-हवा और वहाँ काम करनेवाले लोगों की रग-रग का हाल। वास्तविकता के एक-एक शेड को कम-से-कम शब्दों में पकड़कर सँजो देने में माहिर कृष्णा जी की भाषा इस कृति में भी अपने रचनात्मक शिखर पर है। उनकी तमाम कृतियों की तरह यह उ

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Lata: Sur Gatha

Lata: Sur Gatha

Yatindra Mishra

उनकी आवाज़ से चेहरे बनते हैं। ढेरों चेहरे,जो अपनी पहचान को किसी रंग-रूप या नैन -नक्शे से नहीं, बल्कि सुर और रागिनी के आइनें में देखने से आकार पते हैं। एक ऐसी सलोनी निर्मिती, जिसमे सुर का चेहरा दरअसल भावनाओं का चेहरा बन जाता है। कुछ-कुछ उस तरह,जैसे बचप

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Lata: Sur Gatha

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Yatindra Mishra

उनकी आवाज़ से चेहरे बनते हैं। ढेरों चेहरे,जो अपनी पहचान को किसी रंग-रूप या नैन -नक्शे से नहीं, बल्कि सुर और रागिनी के आइनें में देखने से आकार पते हैं। एक ऐसी सलोनी निर्मिती, जिसमे सुर का चेहरा दरअसल भावनाओं का चेहरा बन जाता है। कुछ-कुछ उस तरह,जैसे बचप

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Maan

Maan

Munawwar Rana

आज मैं मुनव्वर भाई की किताब ‘पीपल छाँव’ के नीचे बैठकर अपनी माँ को याद करता रहा। ये है उनके क़लम का जादू, जिसको मैं ही नहीं सारी दुनिया जानती है। - पद्मश्री गोपाल दास ‘नीरज’ ऐसा नहीं है कि इससे पहले उर्दू शायरी में ‘माँ’ का हवाला नहीं था, ज़रूर था, लेकि

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Maan

Maan

Munawwar Rana

आज मैं मुनव्वर भाई की किताब ‘पीपल छाँव’ के नीचे बैठकर अपनी माँ को याद करता रहा। ये है उनके क़लम का जादू, जिसको मैं ही नहीं सारी दुनिया जानती है। - पद्मश्री गोपाल दास ‘नीरज’ ऐसा नहीं है कि इससे पहले उर्दू शायरी में ‘माँ’ का हवाला नहीं था, ज़रूर था, लेकि

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Main Jo Hoon,'Jon Elia' Hoon

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Jon (Jaun ) Elia , Kumar Vishwas (Editor)

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DHANANJAY TYAGI की डायरी

DHANANJAY TYAGI की डायरी

DHANANJAY TYAGI

वो मेरी खामोशी को मेरी आशिकी समझ बैठी। वो मेरे पास आने से पहले खुद को दूर समझ बैठी। मैं साथ साथ चलना चाहता था, उसके मगर वो खुद को अकेला समझ बैठी। वो मेरी खामोशी को मेरी आशिकी समझ बैठी। वो मेरे पास आने से पहले खुद को दूर समझ बैठी।

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DHANANJAY TYAGI की डायरी

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DHANANJAY TYAGI

वो मेरी खामोशी को मेरी आशिकी समझ बैठी। वो मेरे पास आने से पहले खुद को दूर समझ बैठी। मैं साथ साथ चलना चाहता था, उसके मगर वो खुद को अकेला समझ बैठी। वो मेरी खामोशी को मेरी आशिकी समझ बैठी। वो मेरे पास आने से पहले खुद को दूर समझ बैठी।

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बेपरवाह कलम

बेपरवाह कलम

भारती

आज यह कलम, बेपरवाह होकर बोलेगी। कुछ अल्फाज कहेगी, कुछ राज खोलेगी।।

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बादलों के घेरे

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कृष्णा सोबती

आधुनिक हिन्दी कथा-जगत में अपने संवेदनशील गद्य और अमर पात्रों के लिए जानी जानेवाली कथाकार कृष्णा सोबती की प्रारम्भिक कहानियाँ इस पुस्तक में संकलित हैं। शब्दों की आत्मा से साक्षात्कार करनेवाली कृष्णा सोबती ने अपनी रचना-यात्रा के हर पड़ाव पर किसी-न-किसी

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कृष्णा सोबती

आधुनिक हिन्दी कथा-जगत में अपने संवेदनशील गद्य और अमर पात्रों के लिए जानी जानेवाली कथाकार कृष्णा सोबती की प्रारम्भिक कहानियाँ इस पुस्तक में संकलित हैं। शब्दों की आत्मा से साक्षात्कार करनेवाली कृष्णा सोबती ने अपनी रचना-यात्रा के हर पड़ाव पर किसी-न-किसी

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शेष कादम्बरी

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अलका सरावगी

‘सोशल वर्क’ और ‘सोशल जस्टिस’ इन दो शब्दों के बीच के स्पेश का मोहक किन्तु मार्मिक प्रतिबिम्बन है अलका सरावगी का उपन्यास—‘शेष कादम्बरी’। वृद्ध और युवा जीवन-दृष्टि के फ़र्क़ को रेखांकित करनेवाला यह उपन्यास अलका सरावगी के जीवन्त लेखन का ऐसा प्रतीक है जिसमे

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अलका सरावगी

‘सोशल वर्क’ और ‘सोशल जस्टिस’ इन दो शब्दों के बीच के स्पेश का मोहक किन्तु मार्मिक प्रतिबिम्बन है अलका सरावगी का उपन्यास—‘शेष कादम्बरी’। वृद्ध और युवा जीवन-दृष्टि के फ़र्क़ को रेखांकित करनेवाला यह उपन्यास अलका सरावगी के जीवन्त लेखन का ऐसा प्रतीक है जिसमे

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कुछ ख्वाहिशें मेरी भी...

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Diya Jethwani

स्लम एरिया के बच्चों से और वहाँ के जीवन से जुड़ा एक लेख..।

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Poet's dream

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आशुतोष मिश्रा (अनभिज्ञ)

यह किताब को पुस्तक नही कहेगे शायद यह मेरी आत्मा है यह मेरे द्वारा की गई कल्पना और उसको कविता के रूप में संकलित करना और लिख देना ही मैं हूँ । इसको किताब कहना लेखक का अपमान है । यह ह्दय है इस संकलन में आपको कविताएँ मिलेगी जो मेरे द्वारा लिखी गयी ह

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aawarakhyal

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अभिजीत साहू

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छंदप्रभा

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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

छंद के साधकों के लिए उपयोगी पुस्तक।

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अपने सपने

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सुकून

ये किताब कविता शायरी संग्रह है आप सब सोच रहे होंगे की अपने सपने नाम आखिर क्यों रखा गया है। तो जिंदगी में कभी कभी अपनी जिम्मेदारीयों की वजह से हम सब के दिल में कुछ न कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं तो हमारे सपने को नाम दे कर उन्हें हमने अपने सपने लिख दिया

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सुकून

ये किताब कविता शायरी संग्रह है आप सब सोच रहे होंगे की अपने सपने नाम आखिर क्यों रखा गया है। तो जिंदगी में कभी कभी अपनी जिम्मेदारीयों की वजह से हम सब के दिल में कुछ न कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं तो हमारे सपने को नाम दे कर उन्हें हमने अपने सपने लिख दिया

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मै कब बनूंगा नेता ?????

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Ranjeet dehariya

मेरा सपना कब सच होगा मुरादी लाल रोज यही सोच पर रहता,,, हर दिन वो लोग और आसपास अपने दोस्त से रहती मै नेता बनूंगा और लोगो की हर समस्या, सुविधा, लोगो को काम दूंगा ।।। आखिर वह दिन आ गया,,, पंचायत मुखिया का चुनाव होने वाला था उसने भी नामकंन भर दिया,,,,

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मै कब बनूंगा नेता ?????

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Ranjeet dehariya

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रक्षक

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Dinesh Dubey

एक बाप अपनी बेटी का हमेशा रक्षक होता है ,

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लालच का फल ( प्रथम क़िश्त )

लालच का फल ( प्रथम क़िश्त )

Sanjay Dani

पुलगांव ग्राम में एक किसान को 5000) 00 देकर वहां का साहुकार साव जी उसकी ज़मीन का कागज अपने पास रख लेता है और इकरार नामा मेँ ऐसी शर्ते लिखवा लेता है की वह किसान शायद ही अपने द्वारा ली गयी उधारी को वापस कर सके। पर समय के साथ ऐसी बात होती है की साहुका

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लालच का फल ( प्रथम क़िश्त )

लालच का फल ( प्रथम क़िश्त )

Sanjay Dani

पुलगांव ग्राम में एक किसान को 5000) 00 देकर वहां का साहुकार साव जी उसकी ज़मीन का कागज अपने पास रख लेता है और इकरार नामा मेँ ऐसी शर्ते लिखवा लेता है की वह किसान शायद ही अपने द्वारा ली गयी उधारी को वापस कर सके। पर समय के साथ ऐसी बात होती है की साहुका

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