तीन वर्ष शिक्षक-शिक्षा में कार्य करते हुए शिक्षा के परिप्रेक्ष्य और सैद्धांतिक पक्ष को निकटता से जानने-समझने और अनुभव करने की कोशिश की। अनेक वर्षों तक पेशेवर शिक्षक के रूप में प्राथमिक, उच्च-प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते
तीन वर्ष शिक्षक-शिक्षा में कार्य करते हुए शिक्षा के परिप्रेक्ष्य और सैद्धांतिक पक्ष को निकटता से जानने-समझने और अनुभव करने की कोशिश की। अनेक वर्षों तक पेशेवर शिक्षक के रूप में प्राथमिक, उच्च-प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते
दुनिया विश्राम स्थल नहीं, बल्कि कार्यस्थल है, ज़िंदगी विचलने के लिए नहीं बल्कि कुछ कर दिखाने के लिए है। संसार का हर कण अद्वितीय है उसकी अपनी उपयोगिता है, किसी के लिए कोई चीज़ बेकार तो कोई बेकार चीजों का शिल्पकार है। आज दुनिया आधुनिक हो गयी विज्ञान और
दुनिया विश्राम स्थल नहीं, बल्कि कार्यस्थल है, ज़िंदगी विचलने के लिए नहीं बल्कि कुछ कर दिखाने के लिए है। संसार का हर कण अद्वितीय है उसकी अपनी उपयोगिता है, किसी के लिए कोई चीज़ बेकार तो कोई बेकार चीजों का शिल्पकार है। आज दुनिया आधुनिक हो गयी विज्ञान और
निशा−निमन्त्रण' बच्चन जी का बहुत ही लोकप्रिय काव्य है। इसका पहला संस्करण 1938 में निकला था। निशा निमंत्रण हरिवंशराय बच्चन के गीतों का संकलन है जिसका प्रकाशन १९३८ ई० में हुआ। ये गीत १३-१३ पंक्तियों के हैं जो कि हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठतम उपलब्धियों म
निशा−निमन्त्रण' बच्चन जी का बहुत ही लोकप्रिय काव्य है। इसका पहला संस्करण 1938 में निकला था। निशा निमंत्रण हरिवंशराय बच्चन के गीतों का संकलन है जिसका प्रकाशन १९३८ ई० में हुआ। ये गीत १३-१३ पंक्तियों के हैं जो कि हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठतम उपलब्धियों म
एक औरत अपने पति से झगड़ा कर रही थी और उससे पैसे मांग रही थी । वो कह रही थी कि तुम्हारे कामाने से क्या फायदा । रोज तो तुम दारू पीकर और जुआ खेल कर पैसा बरबाद कर देते हो । घर में कुछ भी नहीं हैं , मैं अपने बच्चे को क्या खिलाऊंगी । कम से कम उस बच्चे के ब
एक औरत अपने पति से झगड़ा कर रही थी और उससे पैसे मांग रही थी । वो कह रही थी कि तुम्हारे कामाने से क्या फायदा । रोज तो तुम दारू पीकर और जुआ खेल कर पैसा बरबाद कर देते हो । घर में कुछ भी नहीं हैं , मैं अपने बच्चे को क्या खिलाऊंगी । कम से कम उस बच्चे के ब
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ द्वारा आयोजित बुंदेली दोहा प्रतियोगिता से चुने हुए बुंदेली दोहों का संकलन
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ द्वारा आयोजित बुंदेली दोहा प्रतियोगिता से चुने हुए बुंदेली दोहों का संकलन
जब हम इन वाक्यों या वाक्यांशों को बार बार पढ़ते है तो ये अंतरात्मा तक गहरे उतरकर अपनी छाप अवश्य छोड़ते हैं। जिससे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होता है। इन्सान महान पैदा नहीं होता है, उसके विचार उसे महान बनाते हैं। विचार, काम की शुद्धता और सरलता ही
जब हम इन वाक्यों या वाक्यांशों को बार बार पढ़ते है तो ये अंतरात्मा तक गहरे उतरकर अपनी छाप अवश्य छोड़ते हैं। जिससे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होता है। इन्सान महान पैदा नहीं होता है, उसके विचार उसे महान बनाते हैं। विचार, काम की शुद्धता और सरलता ही
भारत भारती, मैथिलीशरण गुप्तजी की प्रसिद्ध काव्यकृति है जो १९१२-१३ में लिखी गई थी। यह स्वदेश-प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान और भावी दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का एक सफल प्रयोग है। भारतवर्ष के संक्षिप्त दर्शन की काव्यात्मक प्रस्तुति "भारत-भारती
भारत भारती, मैथिलीशरण गुप्तजी की प्रसिद्ध काव्यकृति है जो १९१२-१३ में लिखी गई थी। यह स्वदेश-प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान और भावी दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का एक सफल प्रयोग है। भारतवर्ष के संक्षिप्त दर्शन की काव्यात्मक प्रस्तुति "भारत-भारती
मैंने देखा है कि अनेक बार मंगल व शनि के बारे में अनेक प्रकार से, अनेक कारणों से जनमानस को डराया जाता रहा है। मैं प्रायः लोगों को इन दोनों ग्रहों से भयभीत होते देखती आई हूं जबकि ये दोनों ग्रह इतने डरावने व नुकसानकारी भी नहीं कि जितने बताए जाते हैं। इस
मैंने देखा है कि अनेक बार मंगल व शनि के बारे में अनेक प्रकार से, अनेक कारणों से जनमानस को डराया जाता रहा है। मैं प्रायः लोगों को इन दोनों ग्रहों से भयभीत होते देखती आई हूं जबकि ये दोनों ग्रह इतने डरावने व नुकसानकारी भी नहीं कि जितने बताए जाते हैं। इस
आज कल वही पढा और देखा जाता है। जो पैसो से मिले । वरना लोग तो फ्री के नाम से ही खुद अदाजां लगा लेते हैं। कि चीजों में क्या फर्क है। कौन सी अच्छी और कौन सी बेकार है।
आज कल वही पढा और देखा जाता है। जो पैसो से मिले । वरना लोग तो फ्री के नाम से ही खुद अदाजां लगा लेते हैं। कि चीजों में क्या फर्क है। कौन सी अच्छी और कौन सी बेकार है।
।।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।। मधुरा-मन्दोदरी खण्ड काव्य स्त्री चरित्र पर प्रकाश डालने का एक प्रयास है।मन्दोदरी के सम्पूर्ण जीवन की झलक के माध्यम से उपेक्षित महिलाओं की महत्ता प्रतिपादित किया गया है साथ ही साथ मन्दोदरी के सम्बंध में
।।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।। मधुरा-मन्दोदरी खण्ड काव्य स्त्री चरित्र पर प्रकाश डालने का एक प्रयास है।मन्दोदरी के सम्पूर्ण जीवन की झलक के माध्यम से उपेक्षित महिलाओं की महत्ता प्रतिपादित किया गया है साथ ही साथ मन्दोदरी के सम्बंध में
सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यानन 'अज्ञेय'
अज्ञेय जी का पूरा नाम सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 में उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया के कुशीनगर में हुआ। इस कविता का संदेश है कि व्यक्ति और समाज एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए व्यक्ति का गुण उसका कौशल उसकी रचनात्
सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यानन 'अज्ञेय'
अज्ञेय जी का पूरा नाम सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 में उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया के कुशीनगर में हुआ। इस कविता का संदेश है कि व्यक्ति और समाज एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए व्यक्ति का गुण उसका कौशल उसकी रचनात्
यह संकलन उन अभिभावकों और माता-पिता के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकेगा जो अपने बच्चे की शिक्षा और उससे उनके जीवन-निर्माण से सम्बन्धित पहलुओं को लेकर चिंतित रहते है| जो अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर यह निश्चय नहीं बना पा रहे है कि उनके बच्चे के
यह संकलन उन अभिभावकों और माता-पिता के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकेगा जो अपने बच्चे की शिक्षा और उससे उनके जीवन-निर्माण से सम्बन्धित पहलुओं को लेकर चिंतित रहते है| जो अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर यह निश्चय नहीं बना पा रहे है कि उनके बच्चे के
इस पुस्तक में सरल व सौम्य शब्दों का प्रयोग लेखक के द्वारा किया गया है। पाठको को परेशानी ना हो पढ़ने में। शब्द इतने सरल है कि आपको थोड़ा भी बोरियत महसूस न होगी। इस किताब में आपको एक "माइंड मैप" मिलेगा, जिसको फॉलो करके आप एक अच्छे जीवन को जी पाएंगे। और
इस पुस्तक में सरल व सौम्य शब्दों का प्रयोग लेखक के द्वारा किया गया है। पाठको को परेशानी ना हो पढ़ने में। शब्द इतने सरल है कि आपको थोड़ा भी बोरियत महसूस न होगी। इस किताब में आपको एक "माइंड मैप" मिलेगा, जिसको फॉलो करके आप एक अच्छे जीवन को जी पाएंगे। और
इस किताब में आपको मेरी कुछ रचनाओं का संकलन मिलेगा मैने इस पुस्तक में अपना परिचय , प्रेम, वियोग, फिर खड़े होकर लडना, वैराग्य और बुढ़ापे तक के जीवन की कल्पना करके लिखा है आशा है आप सब को पंसद आएगी और सबसे महत्वपूर्ण मेरे आराध्य श्री राम के लिए भी कुछ
इस किताब में आपको मेरी कुछ रचनाओं का संकलन मिलेगा मैने इस पुस्तक में अपना परिचय , प्रेम, वियोग, फिर खड़े होकर लडना, वैराग्य और बुढ़ापे तक के जीवन की कल्पना करके लिखा है आशा है आप सब को पंसद आएगी और सबसे महत्वपूर्ण मेरे आराध्य श्री राम के लिए भी कुछ
'भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है' निबंध के लेखक भारतेंदु हरिश्चंद हैं। ... उनका यह निबंध हरिश्चंद्र चंद्रिका के दिसंबर 1884 के अंक में प्रकाशित हुआ था। इस निबंध (nibandh) में लेखक ने कुरीतियों और अंधविश्वासों को त्यागकर शिक्षित होने, सहयोग एवं एकता पर
'भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है' निबंध के लेखक भारतेंदु हरिश्चंद हैं। ... उनका यह निबंध हरिश्चंद्र चंद्रिका के दिसंबर 1884 के अंक में प्रकाशित हुआ था। इस निबंध (nibandh) में लेखक ने कुरीतियों और अंधविश्वासों को त्यागकर शिक्षित होने, सहयोग एवं एकता पर