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मैं ,दीप्ति अपने नाम का सच्चा प्रतिबिंब हूँ। जिसका अर्थ है " उम्मीद की आखिरी किरण"। एक आशावादी तथा महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति होने के कारणवश  मैं लेखन को एक जुनून के तौर पर लेती हूँ । इसी दिशा में एक प्रयास है, क्यूँकी मेरा मानना है,की संबधों ,सामाजिक  विषयों आदि से संबंधित भावों तथा एहसासों को प्रभावी ढंग से दर्शाने का यह सर्वोतम तरीका है।

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पंखुड़ियाँ एहसासों की

पंखुड़ियाँ एहसासों की

नमस्कार दोस्तो,  जीवन में पुस्तकों के  महत्व को नकारा नहीं जा सकता। पुस्तकें ही एक ऐसा माध्यम है जिनमें  वर्णित अपने विचारों द्वारा  कोई भी लेखक या कवि बदलाव की लहर को जन्म दे सकता है। इतिहास साक्षी  है की कलम ने अपनी ताक़त को बखूबी साबित किया है।

2 common.readCount
32 common.articles
common.personBought

ईबुक:

₹ 79/-

प्रिंट बुक:

204/-

पंखुड़ियाँ एहसासों की

पंखुड़ियाँ एहसासों की

नमस्कार दोस्तो,  जीवन में पुस्तकों के  महत्व को नकारा नहीं जा सकता। पुस्तकें ही एक ऐसा माध्यम है जिनमें  वर्णित अपने विचारों द्वारा  कोई भी लेखक या कवि बदलाव की लहर को जन्म दे सकता है। इतिहास साक्षी  है की कलम ने अपनी ताक़त को बखूबी साबित किया है।

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शर्तों पर क्यूँ?

21 जून 2022
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मिलता सब कुछ है हमें पर, शर्तों पर क्यूँ? सोचने की इजाजत है हमें पर, शर्तों पर क्यूँ? ख्वाब दिन और रात में आ सकते हैं हमें पर, शर्तों पर क्यूँ ? बात कहने का बक्शा है एहसास हमें पर, शर्तों पर क्

आँखें

21 जून 2022
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वो देखती भी हैं,वो सहती  भी हैं। शब्दों के बिना वो हर क्षण कुछ कहती भी हैं।। नज़ारों  की अताह  गहराई भी है उसमें । अनुभवो  की असीमित  दुनिया है उसमें ।। बेज़ुबान की ज़ुबाँ है वो । कह सकने वालों

है वो बेजुबान , फिर भी समझता है...

21 जून 2022
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है वो बेजुबान पर, फिर भी समझता है, आँखों की भाषा । शब्दों से अनजान होकर भी, सोच की परिभाषा ।। समझता है कदम-कदम में छिपे मेरे भाव। महसूस जो करूँ वह, अनदेखा अभाव।। समझता है आँखों की पुतलियों त

बेटियाँ

21 जून 2022
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बेटियाँ निखारती है ,माँ का रूप । बेटियाँ  बन जाती है ,माँ का प्रतिरूप बेटियाँ फूल सी कोमल,चट्टान सी मजबूत  हैं  । बेटियाँ वो हैं जिनसे टिका  हम सभी का वजूद है। बेटियाँ हमदर्द है, हमारी पहली।

बेवजह

21 जून 2022
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बेमतलब की होड़ में लगे हैं लोग, बेवजह । खुद को महान दूसरे को नीचा दिखाने का मकसद लिए बैठे हैं लोग ,बेवजह। मतलबी हो इंसानियत को भूलते जा रहे हैं लोग ,बेवजह। दिल की खूबसूरती को दुतकारने में लगे है

कोख

21 जून 2022
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बच्ची ,कोख में घूम यह सोचे.. क्या ,दुनिया बाहर भी अंदर जैसी ही है? क्या ,वहाँ  माँ की कोख जैसी ममता की गर्माहट है? क्या ,मेरी माँ की आवाज़ की बाहर की आहट है? क्या ,बाहर की दुनिया भी मेरी माँ के

जन्मदात्री ही न समझी तो समझेगा कौन?

21 जून 2022
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व्यथा दर्द में लिपटी बेटी की वो हीना समझी तो ,समझेगा कौन ? अंश से वंश की दिशा दिखाने वाली न समझी तो, समझेगा कौन??  सही -गलत का ज्ञान कराने वाली न समझी तो, समझेगा कौन? सुख संताप का भेद बताने वाल

कैसे कर पाओगे/आखिर कैसे?

21 जून 2022
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खो दिया एक बार तो फिर उसे कैसे फ़िर  पाओगे? पा भी गए अगर तो उससे कैसे निभाओगे? निभाने के लिए हौसला फिर कहाँ से लाओगे ? हौसले को इतना बुलंद कैसे बनाओगे? बुलंदियों पर चढ़े उस रिश्ते को ज़हन में कै

गर भूलना इतना आसान होता तो

21 जून 2022
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गर भूलना इतना आसान होता  तो, जन्म देकर माँ  भूल जाती। बहन राखी का बन्धन भूल जाती। भाई, बहन की दिया वादा भूल जाता। व्रत रखकर  इन्सान ,खाना भूल जाता।। मौन व्रत रखने वाला , बोलना भूल जाता। लिख

बाल विवाह

21 जून 2022
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सुना मैंने कविता और कथाओं में । धर्मों में अपने और अपनी परंपराओं में ।। मैं ही कन्या ,मैं ही लाडली। मैंने ही हर रिश्ते में खुशियाँ  डाली।। पर कैसा अजब यह नियम बनाया। मुझ कोमल फूल को पल-पल

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