आज तारीख १६ दिसंबर, यह वही तारीख है याद कीजिये आज के ही दिन देश ने दिल्ली में एक घटना के माध्यम से इंसानियत का जो घिनौना चेहरा देखा था जिसे कोई भी याद नहीं रखना चाहता!
किसी के अरमान बिखर गए किसीकी की दुनिया लूट गई, फिर भी बांप ने कलेजे पर पत्थर रख कर इंसाफ का इंतज़ार किया मगर मिला क्या सवाल आज भी कायम है?
एक ऐसा देश जिसके कानून निर्माता एक सख्त कानून बनाने में असमर्थ है, और सियासत का सितम देखिये की गुनहगार को रिहाई पर पुनर्वास के लिए सियासत वोट बैंक बटोर रही है?
ये व्यवस्था है, लाचार है, अपंग है मगर क्यों? गुनहगार किसको ठहराये, राजनीती को या जनता को सवाल बड़ा है और लाजमी भी है? क्यों सियासत ऐसी जघन्य घटनाओ पर से भी अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रही है, या सियासत मजबूर है, कहीं मजबूरी का नाम वोट बैंक तो नहीं?
घटना के बाद कुछ दिनों के लिए देश भर में मोमबत्तियां जलाई गई, शामिल देशवासियों क्यों सियासत से एक सवाल तो बनता है सियासत बड़ी है या जिम्मेदारी? निभाई नहीं जाती है तो बेहतर होगा की आप इसे छोड़ दे, क्योंकि अब आप भरोसे का काबिल नहीं रहें?
जब भरोसा टूट जाता है तब उस भरोसे को वापस लाने के लिए जितनी मेहनत करनी होगी वो वोट बैंक आपको करने नहीं देगी, और देश अब सांप सपेरों वाला नहीं रह गया जो औरों का दिल बहलाते रहा और अपनी इज़्ज़त लूटवाता रहा?
सियासत में तो इतनी भी हिम्मत नहीं थी की घटना के वक़्त अपने घर से बाहर निकले, तो वोट मांगने का हक़ आपको किसने, कैसे और क्यों दिया?