देश में पत्रकारिता हकीकत से रूबरू नहीं कराती अब इस तथ्य को प्रमाण की कोई ज़रुरत नहीं है, यह एक व्यवसाय है समाचार का माध्यम कभी हुआ करता था, अगर आज की तारीख में किसीको ऐतराज अगर है तो सिर्फ उसीको जिसके खिलाफ लिखा जा रहा है?
पक्षकारों का पक्ष लेते लेते राजनीती का ये हाल हो गया है की उनको अपने कदमो पर उनका चंद कदम भी चलना मुहाल हो रहा है!
जिस देश में राजनीती का सबसे विस्वसनीय सहारा पत्रकार के रूप में पक्षकार मौजूद हो उस देश के अंदर राज करने वाली हुक्मरानो के राजनीती का अंजाम का बेहतरीन उदाहरण की मिशाल और कहीं नहीं मिलेगी?
देश की राजनीती को हकीकत से रूबरू कौन करायेगा अब इसका जिम्मा देश की जनता को ही लेना होगा, पत्रकारिता का किसीके पक्ष में होना जैसी खबर अं इस देश में कोई खबर नहीं रही आगे राजनीत और पत्रकारिता दोनों को ही अपनी मांजी खुद तय करनी है, एक दूसरे के सहारे से परहेज करें नहीं तो अगर परवाना प्यार का चढ़ गया गया तो अंजाम जुदाई का दर्दनाक होगा?