देश का राजनैतिक बुद्धिजीवी वर्ग किनारे की तलाश में हिचकोले खा रहा है की, आखिर कौन सी साख पकड़ी जाये ताकि वोट बैंक और सत्ता की कुर्सी दोनों सलामत रहे?
(A) १. धर्म २ धर्मनिरपेक्षता ३.छद्म धर्म निरपेक्षता
(B) १. जात २. वर्ण ३. समुदाय
सजी सजाई दुकान के चौपट होते ही दर दर भटकने को मजबूर राजनैतिक दुकान को क्या पटरी पे अपनी दुकान की जगह तलाशने में अभी वक़्त लगेगा?
एक चादर छद्म-धर्मनिरपेक्षता की जो वोट बैंक का मजबूत आधार हुआ करती थी क्या वह सिमट रही है या इसका राजनैतिक दुरूपयोग सत्ता के लिए देश हित के सामने बौना साबित हो रही है? वजह चाहे कुछ भी हो छद्म-धर्मनिरपेक्षता आड़ में वोट बैंक, वोट बैंक की आड़ से सत्ता, सत्ता की आड़ में लूट, लूट के माल से ऐय्यासी और ऐय्यासी का जाम जब टकराता है तब देश हित की परवाह कौन करता है?
हालिया बर्षों में घटित घटनाकर्म और बर्षों से घट रही घठना-कर्मों का अगर तुलनात्मक अध्धयन किया जाये तो ये कुछ बातें ऐसी निकल कर आ रही है जो देश के लोगों को सकते में डाल रही है जिसका निदान नितांत आवस्यक है!
खैर छोडिए राजनीती को सत्ता और जनता को रोजी रोटी चाहिए बाकि जो है सो तो हइये है?
तलाश जारी रहेगी परिस्थिति चाहे कैसी भी हो/रहें?