देश का सौभाग्य कहे या दुर्भाग्य की देश में "लूट रत्न पुरुष्कार" के नाम से अभी तक कोई योजना नहीं है, जिसकी देश की व्यवस्था में सख्त ज़रुरत महसूस की जा रही है?
इतिहास है, जिसने अपने साथी को लूटने को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी क्या वो देश को क्या बख्शेगा, और इस तरह घटना रह रह कर समय समय पर इस ज़रुरत को और बल देता है? इस पुरुष्कार में कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए की इस उपाधी को सवंय भी धारण किया सकता हो?
जब देश को नहीं बक्शा तो जनता कहाँ तक बचेगी, अंधे, लंगड़े, बहरे इत्यादि भी लूट के दायरे से बाहर नहीं है, जब भिखारियों को लूटने से आज देश नहीं आया उस देश क्या इस तरह की पुरुष्कारों की घोषणा नहीं होनी चाहिए?
व्यवस्था को इसके प्रारूप की घोषणा में देर नहीं करना चाहिए, इसके बाद इस प्रारूप को दोनों संसद में भी पास होना है मगर क्या यह लोकपाल की तरह लागु हो पायेगा और इस रत्न का हक़दार कौन कौन होगा?