उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में एक छोटे से गांव में उजाला नाम की लड़की अपने परिवार के साथ रहती थी
उजाला मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुई थी
उजाला के पिता मुम्बई के किसी कम्पनी में हिरा घिसने का काम करते थे
उजाला की मां आदर्श गृहणी थी
उजाला की दो बहनें और एक भाई था
कूल मिला कर उजाला के परिवार में 6 सदस्य थे। परिवार में परस्पर प्रेम था। उजाला अपने परिवार के साथ खूशी खूशी जिंदगी जी रही थी
उजाला एक साहसी निर्भीक निडर और परोपकारी लड़की थी
एक दिन अचानक उजाला के परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा
उजाला के पिता ने एक सड़क हादसे में अपना दोनों पैर गंवा बैठे
अब घर की सारी जिम्मेदारी उजाला के मां पर आ गई
उस समय उजाला महज तेरह साल की थी
उजाला सातवीं कक्षा में पढ़ती थी उजाला कुशाग्रबुद्धि की थी और हर साल कक्षा में टाप करती थी आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उजाला की पढ़ाई स्थगित हो गई
यह देखकर उजाला की मां बहूत दुःखी हुई पर क्या करती
चार बच्चों का ख़र्च साथ में पढ़ाई लिखाई वो भी अकेले बहुत मुश्किल था
पर उजाला को पढ़ाई छुटने का जरा भी बुरा नहीं लगा
अब वो मां के साथ घर के कामों में हाथ बंटाती थी
उजाला की मां परिवार पालने के लिए सिलाई का काम करती थी उजाला सिलाई के काम में भी अपनी मां का हाथ बंटाती थी
उजाला हर रोज अपनी मां से महापुरुषों की कहानी सुनती थी और फिर अपने भाई बहनों को सुनाती थी
समय का चक्र चलता रहा उजाला बड़ी हो रही थी
अब उजाला का एक सपना बन गया था उजाला का सपना था उसके भाई बहन बड़े होकर अफसर बने
उसके माता पिता का नाम रोशन करें
लेकिन इसके लिए काफी पैसे की जरूरत थी
उजाला की मां ने उजाला को समझाया देखो बेटी हम गरीब लोग हैं हमारी हैसियत नहीं है कि हम अपने बच्चों को अफसर बना पाए हैं इतने बड़े सपने मत देख और उन्हें भी मत दिखाओ जो पूरा ही ना हो सके