पिछले दिनों भाजपा के एक बहुत वरिष्ठ नेता हमारे बीच चल रही बात-चीत में अपना तर्क रखते हुए क़रीब-क़रीब ललकार उठे "नाज़िम साहब एक चीज़ हमेशा याद रखिएगा, इस देश की जनता सब-कुछ बर्दाश्त करने की ताक़त रखती है लेकिन ये किसी का घमंड नही सहती। बड़े-बड़े राजाओं के घमंड चूर किए हैं इसने। दिल्ली और बिहार में मोदी-शाह की हार इसी घमंड का नतीजा थीं, वरना न बूता ज़ीरो हो चुके केजरीवाल में था और न ही नीतीश इतने मज़बूत नज़र आ रहे थे।"
मैं सोच रहा था कि काश इस वक़्त यहाँ पर केजरीवाल भी बैठे होते तो शायद उनके ऊपर नेता जी की बात का कुछ असर होता, क्योंकि अगला वाक्य जो उनके मुँह से निकल रहा था, वो उन्हें सुनना चाहिए था। नेता जी ने कहा " मोदी में गाज़ब की प्रतिभा है अपनी ग़लती से सीख लेने की, लेकिन केजरीवाल, देख लीजिएगा, इतना अहंकारी है ये व्यक्ति की मानेगा नहीं।"
केजरीवाल के बारे में हठ-धार्मिता की बात सौ फीसदी सही लगती है। इस संबंध में दर्जनों उदाहरण दिए जा सकते हैं लेकिन चन्द सुबूत ही काफ़ी होंगे शायद, इस हठ-धार्मिता को समझने में। याद कीजिए जितेंद्र सिंह तोमर को, जब उन्हें टिकट देने का मन केजरीवाल ने बनाया तो उस समय पार्टी के वरिष्ठों (प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव) ने उन्हें लाख समझाया था कि तोमर को टिकट न दिया जाए। प्रशांत ने तो १२ ऐसे उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार करके पार्टी को सौंपी थी जिनके चरित्र शंका के घेरे में थे। इनमें १० नाम उन उम्मीदवारों के थे जो दूसरी पार्टियों से आकर आप में शामिल हुए थे। इस लिस्ट में एक नाम तोमर का भी था जो कांग्रेस से आए थे। पर फ़र्क़ क्या पड़ता था। चूँकि केजरीवाल के मुँह से तोमर के नाम पर मुहर लग चुकी थी तो उसे खारिज करना खुद केजरीवाल के बस में भी नही था। तोमर को टिकट दिया गया। आप की लहर में उनका भी बेड़ा पार हो गया। केजरीवाल अपने फ़ैसले को जीतता देख इतना खुश हुए कि इनाम के तौर पर तोमर को क़ानून-मंत्री बना दिया गया। लेकिन जब उनकी फ़र्ज़ी-डिग्री के मामले में उन्हें गिरफ्तार किया गया तो केजरीवाल ने मुँह की खाई और उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया।
दूसरी हठ-धार्मिता का परिचय भी कम दिलचस्प नहीं है. यहाँ नाम आता है एक और आप विधायक आसिम ख़ान का। जब आसिम ख़ान को मंत्री पद दिया जा रहा था उस समय भी पार्टी के भीतर कई आवाज़ें केजरीवाल को कह रही थीं कि आसिम जैसे धनी व्यक्ति को मंत्री बनाने से संकेत ठीक नहीं जाएँगे, यदि किसी मुस्लिम को ही पद देना है तो पार्टी में अनेक ईमानदार छवि वाले मुस्लिम नाम हैं, उन्हें सामने लाया जा सकता है। लेकिन बात तो केजरीवाल साहब की मुहर की थी. जिस पर जाग गयी, उसपर लग गयी। तमाम विरोध के बावजूद आसिम ख़ान मंत्री बने लेकिन पिछले अक्टूबर के एक गर्म दिन को कुछ और गर्म बनाते हुए केजरीवाल ने आसिम ख़ान को भ्रष्टाचार के एक मामले में बर्खास्त करके सीबीआई को मामला सौंप दिया। यहां भी अपनों की ही बात न सुनने की सज़ा केजरीवाल को मिली, और एक बार फिर उन्हें मुंह की खानी पड़ी।
हठ-धार्मिता की इस दास्तान में पिछले मंगलवार को एक क़िस्सा और जुड़ गया जब केजरीवाल ने अपने मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार पर सीबीआई द्वारा की जा रही छानबीन को अपने ऊपर की जा रही छानबीन कहकर सीधा मोदी को निशाना बना डाला. 'इंडिया संवाद' ने जब इस मामले की जाँच की तो जो तथ्य सामने आए वो चौंकाने वाले थे। इंडिया संवाद को मिली जानकारी के अनुसार, दिल्ली स्थिति ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल, इंडिया के आशुतोष मिश्रा ने 27 मई, 2015 को दिल्ली के मुख्यमंत्री, (जो कि केजरीवाल स्वंय हैं), को राजेंद्र कुमार के भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति के मामले में आगाह कर दिया था। इस संस्था ने इस मामले में जांच की मांग भी की थी लेकिन केजरीवाल ने उनकी मांग को अनसुना कर दिया था। 6 महीने पहले दी गई जानकारी और जांच की मांग करने का असर उल्टा हुआ। राजेंद्र कुमार कुछ और महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियां देकर उन्हें और ताक़तवर बना दिया गाया।
केजरीवाल के दरबार में कोई सुनवाई न होते देखकर ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल, इंडिया के एक और अधिकारी ने 13 जूलाई, 2015 को सीबीआई के दफ़्तर का रुख़ किया औॅर केजरीवाल के मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार के काले कारनामों की साक्ष्य सहित जानकारी विभाग को सौंपी। सीबीआई के अनुसार इन्हीं जानकारियों के आधार पर मंगलवार को दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई स्थानों पर छापे मारे गए।
हालांकि राजेन्द्र कुमार के खिलाफ़ जो जानकारियां हैं वह इस सरकार से पहले के मामले हैं, इसमें ‘इंडीवर सिस्टम्स’ कंपनी को कई ठेके दिए जाने के मामले भी हैं। ये कंपनी राजेंद्र कुमार ने कई और लोगों के साथ मिलकर बनाई थी। केजरीवाल चाहते तो पहली सरकार के कार्यकाल का हवाला देकर, ट्वीट पर लड़ी जा रही जंग को ज़्यादा पारदर्शी रुख़ दे सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा करने के बजाए, मोदी से दो-दो हाथ करने की ठान ली। अब ठान ली तो ठान ली। सलमान ख़ान के अंदाज़ में कुछ इस तरह कि एक बार मैं जो इरादा कर लेता हूं तो फिर ख़ुद की भी नहीं सुनता हूं।
मंगलवार को हुई सीबीआई की कार्यवाही के बाद कई तरह की बातें सामने आ रही हैं। एक मत ये है कि डीडीसीए जैसी क्रिकेट संस्था के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलकर केजरीवाल ने क्रिकेट की महाशक्तिशाली लॉबी को अपने ख़िलाफ़ कर लिया है, और ये छापे उसकी ही एक बानगी हैं। सच तो कभी न कभी सानमे आएगा ही लेकिन वो सच ये बात नहीं झुठला पाएगा कि केजरीवाल अपने अहंकार में किसी की भी नहीं सुनते। धीरे-धीरे उनकी ये छवि जनता के बीच आम होती जा रही है। अगर वो ये समझते हैं कि अति पिछड़े और निम्न आय वर्ग को बुनियादी सुविधाओं देकर वो अपना वोट बैंक साध लेंगे और बाक़ी जनता को अपने अहंकार की छड़ी से किनारे लगाते रहेंगे तो ये बात शाश्वत हैं कि देश की अवाम ने बड़े-बड़े सूरमाओं के घमंड़ों को चूर किया है और इसकी अनगिनत मिसालें मौजूद हैं।