ध्यान क्या है?
जब हम बाहरी दुनिया के बंधनों में उलझे होते हैं-रिश्तों, दौलत, ताकत अथवा रुतबे के मायाजाल में फंसे होते है-तब हम ध्यान से दूर होते हैं। ध्यान एक तकनीक है, एक पथ है जो हमें बाहरी दुनिया से अंदर की दुनिया में ले जाता है। जब हमारे विचार बाहर की तरफ बह रहे होते हैं, हम ध्यान में नहीं होते लेकिन जब विचारों का प्रवाह अंदर की तरफ होता है तब संपूर्ण ध्यान की स्वर्णिम संभावना जाग्रत हो जाती है। जब आँखें दुनिया पर केंद्रित होती हैं तब दृष्टि भी दुनियावी हो जाती है। जब कान बाहरी आवाजों पर ध्यान देने लगते हैं तब वे अंतर्मन की पुकार सुनने के लिए बहरे हो जाते हैं। ऐसे ही बाहरी खुशबुओं की आदी नाक आत्मा की सुगंध नहीं पहचान सकती। जुबान स्वाद के लिए तरसती है और त्वचा स्पर्श के लिए तड़पती है। इस तरह हमारी सारी इन्द्रियाँ पूरी तरह से बाहरी दुनिया के प्रति आकर्षित रहती हैं। प्रभु के निकट होने के लिए एक ऐसी तकनीक की जरूरत होती है जो हमें बाहरी दुनिया के प्रभुत्व से मुक्ति दिला सके। इसके साथ ही यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि इन बाहरी बंधनों से मुक्ति मात्र ही ध्यान नहीं है; यह तो केवल इसकी तैयारी है। ध्यान के अधिसंख्य सिद्धांतों में अगर आँखें बंद करके बैठने, किसी शांत कक्ष में बैठने, यहाँ तक कि एकांत या गुफा में वास की बात कही गई है तो वह इसीलिए कि आपका बाहरी दुनिया से बंधन टूट जाए। हमारी समस्त इंद्रियों का वापस खुद से संबंध जुड़ जाए। पर यह केवल ध्यान में प्रवेश की तैयारी है। वास्तविक ध्यान (स्व-ध्यान) वह है जिसमें आप नजारों से दूर होकर अपनी नजर वापस पा लें। आपके कान आपकी ही आवाज को सुन सके। सभी इन्द्रियाँ स्व में स्थित हो जाएँ, स्वस्थ हो जाएँ। जब इंद्रियों को ऐसा प्रशिक्षण देने की तैयारी पूरी होती है तब ध्यान प्रारंभ होता है। अब हम अंदर की दुनिया में प्रवेश करने को तैयार होते हैं। अब अंतस में बिना प्रयास के प्रवेश होता है।
कन्हैया दुबे(हैप्नोटिस्ट)
सम्मोहन विज्ञानं
ध्यान विशेषज्ञ
मो० 09161314791
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