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सलाह

13 सितम्बर 2017

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*अपने घर के युवा बच्चों या स्कूल कॉलेज के युवा बच्चों को उपासना(मन्त्र जप-ध्यान-स्वाध्याय) से कैसे जोड़ें?* पढ़ना है बहुत पढ़ना है, कम्पटीशन की तैयारी करना या जॉब का बहुत लोड है। उपासना के लिए वक़्त नहीं है। दो कहानियों के माध्यम से उपासना का महत्त्व समझाएं:- 1- दो लकड़हारों में पेड़ काटने की कम्पटीशन हुई, दोनों ही स्वास्थ्य की दृष्टि से हट्टे कट्टे मजबूत थे, कुल्हाड़ी भी दोनों की समान ही थी। लेकिन एक लकड़हारे ने दूसरे से दुगुनी लकड़ी काटी। राज पूंछने पर पता चला क़ि जीतने वाला लकड़हारा प्रत्येक घण्टे अपनी कुल्हाड़ी में धार देता था। इसलिए वो ज्यादा लकड़ी काट सका। यदि दिमाग़ को उपासना से तेज़ धार देंगें, तो बिन उपासना वाले बच्चे से ज़्यादा पढ़ पाएंगे और लम्बे वक़्त तक याद कर पायेगे। दिमाग सन्तुलित रहेगा। 2- दो लोगों ने नई गाड़ी एक ही कम्पनी की ख़रीदी। एक की गाड़ी का परफॉर्मेंस एक साल के बाद दूसरे से अच्छा था। राज पूंछने पर पता चला क़ि जिसकी गाड़ी अच्छी कण्डीशन में थी वो समय समय पर गाड़ी का मेंटेनेंस करता था, लेकिन दूसरा का मानना था जब तक गाड़ी बिगड़े न तब तक मेंटेनेंस करवांने की क्या ज़रूरत? भगवान ने आप सभी बच्चों को ब्रांड न्यू बेस्ट कण्डीशन का दिमाग़ दिया हुआ है। लेकिन यदि उपासना के द्वारा दिमाग़ का समय समय पर मेंटेनेंस नहीं किया तो दिमाग़ का कबाड़ा बनते वक़्त नहीं लगेगा। उपासना जीवन को सही दिशा देती है, लेकिन जो उपासना नहीं करते उनका भटकना निश्चित होता है। आपके शुभचिंतक हैं, इसलिए उपासना के माध्यम से Inner Engineering सिखा रहे हैं, जिससे अन्तःकरण की ठीक ठीक प्रोग्रामिंग आप कर सकें। सही ग़लत का अंतर् समझ सकें। दो ग़लत रास्तों या दो सही रास्तों के बीच चयन कर सकें। मोह के ज़ाल को ज्ञान की कुल्हाड़ी से काट सकें। मन की तृप्ति और आत्मा की तृप्ति में अंतर् समझ सकें। इंद्रियसुख और आत्मसुख का अंतर् समझ सकें। *आत्मसुख का उदाहरण* - कोई नेक कार्य करने के बाद मिलने वाली अनुभूति। जैसे किसी कई दिन के भूखे को भोजन करवाना, या किसी ग़रीब जरूरतमन्द का इलाज करवाना। *इंद्रिय सुख-मन की तृप्ति का उदाहरण* - मन पसन्द फ़िल्म देखना, मन पसन्द भोजन करना, किसी पर आसक्त हो उसे प्रेम करना।

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सलाह

13 सितम्बर 2017
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*अपने घर के युवा बच्चों या स्कूल कॉलेज के युवा बच्चों को उपासना(मन्त्र जप-ध्यान-स्वाध्याय) से कैसे जोड़ें?*पढ़ना है बहुत पढ़ना है, कम्पटीशन की तैयारी करना या जॉब का बहुत लोड है। उपासना के लिए वक़्त नहीं है।दो कहानियों के माध्यम से उपासना का महत्त्व समझाएं:-1- दो लकड़हारों में पेड़ काटने की कम्पटीशन हुई, द

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जीवन

20 सितम्बर 2017
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घर चाहे कैसा भी हो...उसके एक कोने में...खुलकर हंसने की जगह रखना...सूरज कितना भी दूर हो...उसको घर आने का रास्ता देना...कभी कभी छत पर चढ़कर...तारे अवश्य गिनना...हो सके तो हाथ बढ़ा कर...चाँद को छूने की कोशिश करना...अगर हो लोगों से मिलना जुलना...तो घर के पास पड़ोस ज़रूर रखना...भीगने देना बारिश में...उछल

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समय चक्र

30 अक्टूबर 2017
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*एक अच्छी कविता है, जो मनन योग्य है।*जाने क्यूँ,अब शर्म से,चेहरे गुलाब नहीं होते।जाने क्यूँ,अब मस्त मौला मिजाज नहीं होते।पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।जाने क्यूँ,अब चेहरे,खुली किताब नहीं होते।सुना है,बिन कहे,दिल की बात,समझ लेते थे।गले लगते ही,दोस्त हालात,समझ लेते थे।तब ना फेस बुक था,ना स्मार्ट

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