समय चक्र
*एक अच्छी कविता है, जो मनन योग्य है।*जाने क्यूँ,अब शर्म से,चेहरे गुलाब नहीं होते।जाने क्यूँ,अब मस्त मौला मिजाज नहीं होते।पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।जाने क्यूँ,अब चेहरे,खुली किताब नहीं होते।सुना है,बिन कहे,दिल की बात,समझ लेते थे।गले लगते ही,दोस्त हालात,समझ लेते थे।तब ना फेस बुक था,ना स्मार्ट