*ईश्वर और भगवान का भेद*
*ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः ।*
*ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा ।। -(विष्णु पुराण 6/5/74)* *
अर्थ―*सम्पूर्ण ऐश्वर्य,धर्म,यश,श्री,ज्ञान और वैराग्य--इन छह का नाम भग है।इन छह गुणों से युक्त महान पुरुष को भगवान कहा जा सकता है। श्रीराम व श्री कृष्ण, के पास ये सारे ही गुण थे(भग थे)।इसलिए उन्हें भगवान कहकर सम्बोधित किया जाता है। वे भगवान् थे, ईश्वर नहीं थे ईश्वर के गुणों को वेद के निम्न मंत्र में स्पस्ट किया गया है
*स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम् ।*
*कविर्मनीषी परिभू: स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः ।। (यजुर्वेद अ. ४०। मं. ८)*
अर्थात - वह ईश्वर सर्वशक्तिमान,शरीर-रहित,छिद्र-रहित,नस-नाड़ी के बन्धन से रहित,पवित्र,पुण्ययुक्त,अन्तर्यामी,दुष्टों का तिरस्कार करने वाला,स्वतःसिद्ध और सर्वव्यापक है।वही परमेश्वर ठीक-ठीक रीति से जीवों को कर्मफल प्रदान करता है भगवान अनेकों होते हैं। लेकिन ईश्वर केवल एक ही होता है।