क्रिसमस का दिन दिन था,मोनू बहुत उत्साहित था कि आज तो उसे भी सांता कुछ न कुछ तोहफे लाएगा।फिर सोचने लगा क्या
पता इस बार कुछ ज्यादा तोहफे ले आये,हमेशा की तरह टॉफियां,चोकलेट,इन सब से तो मन भर आया था उसका,वो सोचने लगा,इस बार तो "छुप जाऊंगा और सांता को पकड़ लूंगा और बोलूंगा .." सारे अच्छे तोहफे तो आप उन्हें दे देते हो,न जहाँ पे मेरी माँ काम करती है।"हाँ,"मैंने देखा है,कितने महँगे खिलौने,और अच्छी चीज़े उन्हें देते है.।"जब रात को सब सोने लगे तो वो भी सो गया।लेकिन उसे नींद कहाँ थी।मन में तो सांता को पकड़ने का सपना था।उसने देखा की सब सो गए है तो वह धीरे से उठा और दरवाजे के पीछे आ गया।अब सोचने लगा,दरवाजे में जो मोज़े है, उन्ही में तो टॉफियां होती है।तो सांता तो बहार आयेगा।मुझे तो बहार जाना चाहिए।उसने हलके से दरवाजा खोला और बाहर आ गया।वही कोने में छुप के बैठ गया।और सांता का इंतज़ार करने लगा।इंतज़ार करते करते उसे कब नींद आ गई पता ही न चला।किसी के बोलने की आवाजों से उसकी नींद खुल गई।यही वो पल था जब वो सोचने लगा,"मैं कैसे देखु.."सांता मेरे लिए इस बार क्या लाये है।उनसे पूछना भी तो है।कि हर बार टॉफियाँ ही क्योँ लाते हो।वो धीरे से वही आ खड़ा हुआ जहाँ पे हमेशा उसकी टॉफियां टंगी होती थी।ये क्या सांता आ गए,वो ख़ुशी से झूम उठा,और जोर से सांता को पकड़ लिया।और अपने आप ही बोलना शुरू कर दिया।"सांता देखो मैंने आपको पकड़ लिया,"लेकिन इस बार मुझे टॉफियाँ नहीं चाहिए।मुझे वो सारे महँगे तोहफे चाहिए जो आप औरों को देते हो।बोल के सांता झोली टटोलने लगा।ये क्या....!इस बार भी सिर्फ मेरे लिए टॉफियाँ..?वो उदास हो गया था।तभी सांता के कपड़ो से पिताजी ने अपना चेहरा दिखाया।...मोनू हैरानी से उन्हें देख रहा था।पिताजी आप,..?क्या सांता नहीं होते,आप ही मेरे लिए टॉफियाँ लाते थे।मुझे नहीं चाहिए,महँगे तोहफे,मैं तो ऐसे ही बोल रहा था." पिताजी उसकी मासूमियत को देख कर देखते ही रह गए।उसे गले से लगा लिया।पिता के प्यार और ग़ुरबत ने मोनू को वक़्त ने समझदार बना दिया था।।सांता नहीं होते..वो बोल रहा था...