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//रबिदास के विचारों का क़त्ल //

2 फरवरी 2018

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featured imageरविदास के जन्मदिन पर *//रविदास के विचारों का क़त्ल//* प्राचीन भारत की संत परम्परा में *विद्रोह के प्रतीक* रविदास का नाम मुख्य रूप से लिया जाता है। इसी कड़ी में कबीर,नानक,नामदेव का नाम भी सर्वोच्च स्थान पर आता है।संतों ने जहां समाज को सुधारने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, वहीं उन्होंने समाज में फैले जात-पात, मूर्ति पूजा प्रचलन,बाहरी आडम्बर, व्रत ,धर्मवाद, अवतारवाद (ब्राह्मणवाद) पर करारी चोट की। उस समय राजा के राज्य में रहते हुए, सीधा चुनौती देना क्रांतिकारी कदम था। इन तमाम बुराइयों को देखते हुए, लोगों को इनसे दूर रहने व इस जाल में फंसने से बचने के लिए अवगत कराया।इन्होंने अपने दोहों ,शब्दों के माध्यम से लोगों के बीच सच्चाई बयां की। *"जात-पात के फेर महिं,उरझि रहि सब लोग।* *मनुष्यता को खात रही, जात पात का रोग।।"* *"जात-जात में जात है, जो केतन के पात।रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाति न जात।।"* अर्थ :- रविदास कहते है की जिस प्रकार केले के तने को छिला जाये तो पत्ते के नीचे पत्ता फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता है लेकिन पूरा पेड़ खत्म हो जाता है ठीक उसी प्रकार इंसान भी जातियों में बाँट दिया गया है इन जातियों के विभाजन से इन्सान तो अलग अलग बंट जाता है और इन अंत में इन्सान भी खत्म हो जाते है लेकिन यह जाति खत्म नही होती है इसलिए रविदास जी कहते है जब तक ये जाति खत्म नही होंगा तबतक इन्सान एक दुसरे से जुड़ नही सकता है या एक नही हो सकता है। *ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न।* *छोट-बड़ो सब सम बसै, रविदास रहे प्रसन्न।।"* परन्तु वर्तमान समय में सन्तों की लिखतों को मूल रूप में न देकर, उनको तोड़ मरोड़कर लोगों के सामने पेश किया जा रहा है।जिन पाखण्डों का रविदास ने तीखा विरोध किया, उन्ही पाखण्डों को रविदास के ही नाम पर वापिस अपनाया जा रहा है। रविदास ने जहां धर्म का विरोध किया व इससे बचकर रहने का आह्वान किया, वहीं रविदास के नाम पर *रविदासिया* धर्म की जाती है और लोगों को धर्म के नाम पर बांटा जाता है।जात पात की नजर से देखा जाए तो रविदास को चमार बनाकर रख दिया है बल्कि उन्होंने जात पात की व्यवस्था पर सीधा अपना विरोध किया था। आज रविदास की मूर्ति को मंदिरों में सजाकर उसकी आराधना करना,रविदास को तिलकधारी बनाना, पूजा पाठ करना, उसके नाम पर धर्म चलना, जात-पात फैलाना, ये सब करके रविदास के विचारों का कत्ल कर दिया गया है। रविदास ने लोगों को सीधे स्पष्ट रूप से यह समझा दिया था कि कोई अवतार तुम लोगों का उद्धार करने नही आएगा, अपने हकों की लड़ाई तुमको आप लड़नी पड़ेगी। परन्तु आज रविदासिया धर्म के धर्मगुरु बड़े बड़े तख्तों पर बैठकर अवतार का रूप धारण किये हुए हैं। लोगों के पैसे के बल पर एयर कंडीशनर, महँगी गाड़ियों, आलीशान बंगलो, अच्छा खाना व हर सुविधा प्राप्त करके जिंदगी के मजे ले रहे हैं।ये ही लोग रविदास के नाम पर सत्संग करके, साथ ही तो रविदास का मजाक उड़ा रहे हैं और लोगों को दिमागी गुलामी की जंजीरों में बांध रहे हैं। संघर्ष करने की बजाय उनको घुटने टेकने की शिक्षाएँ दी जा रही हैं। सरकारों द्वारा भी इन धर्मगुरुओं को खूब सहायता मिलती है जिससे की लोग असली रविदास न पढ़ सकें और ये जनता को लूटने का अपना काम ऐसे ही जारी रखें। लोगों को उनकी स्थिति का मूल कारण न बताकर कि ये गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी का असली जिम्मेदार कौन है, उनको कर्मों का फल बताकर उलझाए रखते हैं। और किसी परमसत्ता द्वारा इनका हल किये जाने की बातें बताई जा रही हैं। जहां एक तरफ दलितों , स्त्रियों पर हमलों की रफ्तार लगातार बढ़ रही है , उसी बीच ये धर्मगुरु अपनी मौज में व्यस्त होते हैं।कभी किसी धर्मगुरु को अपने मैदान में आते देखा है और मरते देखा है? तो इसका जवाब होगा नहीं। रविदास के नाम पर इतने बड़े बड़े डेरे बनाकर, धर्मगुरुओं द्वारा उसमें लोगों के पैसे से गुलछर्रे उड़ाए जाते हैं। रविदास ने जूतियां गांढकर, कबीर ने जुलाहे का काम करके, नानक ने खेती चलाकर अपना जीवन यापन किया है।और लोगों में जाकर समाज सुधारने का कार्य किया है।परन्तु आज के धर्मगुरु, चाहे वे किसी भी डेरे में बैठे हों , लोगों की खून पसीने की कमाई पर ऐश करते हैं, बड़े बड़े सिंहासनों पर बैठकर प्रवचन करते हैं।आने जाने के लिए महँगी गाड़ियां, आगे पीछे फ़ोर्स होती है। रविदास ने जहां ब्रह्मवाद पर करारी चोटें की, इन लोगों ने उसी ने नाम पर ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दिया है। उसको एक दिन याद करके उसके नाम पर लंगर लगा देंगे, पूजा पाठ कर लेंगे। रविदास के नाम पर भजन मण्डलिया बनाकर उद्धार का रास्ता सत्संगों को बताकर, लोगों को घुटने टिकवाये जा रहे हैं। *ऐसा चाहूँ राज मैं, जहां मिलै सबन को अन्न। छोट बड़ो सब सम बसै ,रविदास रहे प्रसन्न।।* रविदास ने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जहां पर किसी को कोई कष्ट न हो।सारे लोग एक समान हो ,सभी लोगों की एक ही श्रेणी हो, कोई छोटा बड़ा न हो। समाज में कोई ऊंच नीच न हो। सारी जनता के लिए रहन -सहन , स्वास्थय-सुविधाएं, खाने की चीजें, सभी उपलब्ध होनी चाहिए। रविदास एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना की बात करते हैं जहां पर लोग जाति-धर्म में न बंटे हों ।सभी लोग प्रेम भाव से रहें।और सभी को मूलभूत सुविधाओं पर पूर्ण अधिकार हो। पर आज के समय में ऐसा कुछ भी नहीं है। रविदास का वो सपना आज भी ज्यों का त्यों है। रविदास ने जहां समतामूलक समाज की बात कही हैं, इस व्यवस्था को पलटने की बात कही है ,जो गल सड़ चुकी है, जिसमें किसी को कोई अधिकार प्राप्त नही है,ये लोग इसी व्यवस्था में रहकर जो दलित, स्त्री, किसान व मेहनतकश विरोधी है और पूँजीपतियों के मुनाफे को दिन ब दिन बढावा दे रही है , इसी में रहकर कष्टों का उद्धार चाहते हैं,ओर कोई क्रांतिकारी कदम उठाने से कतराते हैं। तो साथियो, रविदास के असली विचारों को लोगों तक पहुंचाने की अभी अभी बहुत जरूरत है। नौजवान साथियो असली सन्तों (मैं यहां असली सन्तों का प्रयोग इसलिए कर रहा हूं कि कहीं आप लोग ,अब के बाबा जो अपने आप को संत कहलवाते हैं और जो लोगों को लूटते हैं, उनके जाल में फंसकर , उनकी बातों में आएं) की विचारधारा का अध्ययन करें और समाज को असली रविदास, कबीर,नानक , के सपने का समाज बनाने में अपना अपना योगदान दें व संघर्ष का रास्ता पकड़कर इस अन्यायकारी व्यवस्था को पलटने का कदम बढ़ाएं। रविदास के जन्मदिन पर सभी साथियों को क्रांतिकारी सलाम!✊✊ ___गुरदास (जिस भी साथी की कोई आपत्ति या कोई राय हो कमेंट भी करे, और यदि बैठकर खुली चर्चा करनी है तो 9068668242 पर सम्पर्क कर सकता है) रिंकू 9053655311

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