पटना छठ मय हो गया है. शहर पर छठ की छटा ऐसी कि इसके हर रंग बहुरंगे हैं. ये रंग लोक-संस्कृति के हैं, रंग आस्था के हैं, रंग भक्ति के हैं और सबसे बढ़कर रंग प्रेम व एकजुटता के हैं. राजधानी का ऑटो स्टैंड हो या फिर मीठापुर बस स्टैंड. पटना जंकशन हाे या जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा. सभी जगह यह रंग निखर कर सामने आ रहा है. क्या परदेसी और क्या देसी? सबको घर पहुंचना है, छठ में अपनी भागीदारी दर्ज करानी है. कोई सात समंदर पार से आ रहा है तो कोई पास पड़ोस के राज्यों से लेकिन सबको पटना पहुंचने की जल्दी है. मुहल्लों में नये चेहरे हैं, नयी सजावट है. घरों में दिवाली के सूख चुके वंदनवार नये हो गये हैं. रंग-बिरंगी झालरें और गहरी हो चुकी है. छठ गीतों में भी पटना के घाटों और उसकी आस्थाआें का जिक्र है..पटना के घाट पर उगेलन सुरूजमल...झांके झूके... से लेकर पटना के घाट पर देहब हम अरघिया, हम ना जाइब दोसर घाट... की जिद भी है.
चौक चौराहों पर दऊरा-सूप-नारियल अभी सजे हुए हैं, जो कोई छूट गया है वो खरीद रहा है. हर दम गंदा रहने और दिखने वाला शहर भी धुल कर साफ-सुथरा हो गया है. सरकार से लेकर प्रशासन तक सजग नजर आ रहे हैं. शहर में प्रवेश के हर रास्ते पर नेताजी से लेकर कॉरपोरेट और व्यावसायिक घराने हाथ जोड़ कर स्वागत कर रहे हैं. गंगा की ओर जाने के रास्ते पर साइनेज है और घाटों पर सुविधाओं की हेल्पलाइन के नंबर भी हैं. स्वयंसेवी संस्थाएं और राजनैतिक शख्सियत अपनी ताकत के साथ लगे हैं. कोई अपने वोटरों और समर्थकों को साध रहा है तो कोई यह चाह रहा है कि वंचित भी छठ मनाने से कहीं छूट ना जाएं. सबकी कोशिश यही कि वे छठ में भागीदारी से ना छूट जाएं. यह सबकुछ दिखाता बताता है कि छठ महापर्व क्यों है?