*योगीराज, निति निपुण पराक्रमी वीर योद्धा , गोपालक, महान कूटनीतिज्ञ सत्यधर्मी सदाचारी एकपत्निव्रत (माता रुक्मिणी) ब्रह्मचारी वेदंज्ञ महात्मा धर्मात्मा दुष्टनाशक परोपकारी आर्य (श्रेष्ठ) पुरुष राष्ट्र धर्म स्त्री रक्षक सर्व परा* *पाप दोष रहित निष्कलंक शुद्ध पवित्र चरित्र..*
_*योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण जी के जन्मदिवस जन्माष्टमी पर आपकों हार्दिक मंगलमय शुभकामनाएँ......!*_
*गुणों के धनी-श्रीकृष्ण*
*दुर्योधन-*यह मैं अच्छी प्रकार जानता हूं कि तीनों लोकों में इस समय यदि कोई सर्वाधिक पूज्य व्यक्ति है तो वह विशाल-लोचन श्रीकृष्ण हैं।-(महाभारत उद्योगपर्व ८८/५)
*धृतराष्ट्र-*श्रीकृष्ण अपने यौवन में कभी पराजित नहीं हुए।उनमें इतने विशिष्ट गुण हैं कि उनकी परिगणना करना सम्भव नहीं है।-(महा० द्रोणपर्व १८)
*भीष्म पितामह-*श्रीकृष्ण द्विजातीयों में ज्ञानवृद्ध तथा क्षत्रियों में सर्वाधिक बलशाली हैं।पूजा के ये दो ही मुख्य कारण होते हैं जो दोनों श्रीकृष्ण में विद्यमान हैं।वे वेद-वेदांग के अद्वितीय पण्डित तथा बल में सबसे अधिक हैं।दान,दया,बुद्धि,शूरता,शालीनता,चतुराई,नम्रता,तेजस्विता,धैर्य,सन्तोष-इन गुणों में केशव से अधिक और कौन है ?-(महा० सभा० ३८/१८-२०)
*वेदव्यास-*श्रीकृष्ण इस समय मनुष्यों में सबसे बड़े धर्मात्मा,धैर्यवान् तथा विद्वान् हैं।-(महा० उद्योग० अध्याय ८३)
*अर्जुन-*हे मधुसूदन ! आप गुणों के कारण 'दाशार्ह' हैं।आपके स्वभाव में क्रोध,मात्सर्य,झूठ,निर्दयता एवं कठोरतादि दोषों का अभाव है।-(महा० वनपर्व० १२/३६)
*युधिष्ठिर-*हे यदुवंशियों में सिंहतुल्य पराक्रमी श्रीकृष्ण ! हमें जो यह पैतृक राज्य फिर प्राप्त हो गया है यह सब आपकी कृपा,अद्भुत राजनीति,अतुलनीय बल,लोकोत्तर बुद्धि-कौशल तथा पराक्रम का फल है।इसलिए हे शत्रुओं का दमन करने वाले कमलनेत्र श्रीकृष्ण ! आपको हम बार-बार नमस्कार करते हैं।-(महा० शान्तिपर्व ४३)
*बंकिमचन्द्र-*उनके(श्रीकृष्ण)-जैसा सर्वगुणान्वित और सर्वपापरहित आदर्श चरित्र और कहीं नहीं है,न किसी देश के इतिहास में और न किसी काल में।-(कृष्णचरित्र)
*चमूपति-*हमारा अर्घ्य उस श्रीकृष्ण को है,जिसने युधिष्ठिर के अश्वमेध में अर्घ्य स्वीकार नहीं किया।साम्राज्य की स्थापना फिर से कर दी,परन्तु उससे निर्लेप,निस्संग रहा है।यही वस्तुतः योगेश्वर श्रीकृष्ण का योग है।-(योगेश्वर कृष्ण,पृष्ठ ३५२)
*स्वामी दयानन्द-*देखो ! श्रीकृष्णजी का इतिहास महाभारत में अत्युत्तम है।उनका गुण-कर्म-स्वभाव और चरित्र आप्त पुरुषों के सदृश है,जिसमें कोई अधर्म का आचरण श्रीकृष्ण जी ने जन्म से लेकर मरण-पर्यन्त बुरा काम कुछ भी किया हो,ऐसा नहीं लिखा।
*लाला लाजपत राय ने अपने श्रीकृष्णचरित में श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में एक बड़ी विचारणीय बात लिखी है-"संसार में महापुरुषों पर उनके विरोधियों ने अत्याचार किये,परन्तु श्रीकृष्ण एक ऐसे महापुरुष हैं जिन पर उनके भक्तों ने ही बड़े लांछन लगाये हैं।श्रीकृष्णजी भक्तों के अत्याचार के शिकार हुए हैं व हो रहे हैं।"आज श्रीकृष्ण के नाम पर 'बालयोगेश्वर' 'हरे कृष्ण हरे राम' सम्प्रदाय,राधावल्लभ मत और न जाने कितने-कितने अवतारों और सम्प्रदायों का जाल बिछा है,जिसमें श्रीकृष्ण को भागवत के आधार पर 'चौरजार-शिखामणि' और न जाने कितने ही 'विभूषणों' से अलंकृत करके उनके पावन-चरित्र को दूषित करने का प्रयत्न किया है।कहाँ महाभारत में शिशुपाल-जैसा उनका प्रबल विरोधी,परन्तु वह भी उनके चरित्र के सम्बन्ध में एक भी दोष नहीं लगा सका और कहाँ आज के कृष्णभक्त जिन्होंने कोई भी ऐसा दोष नहीं छोड़ा जिसे कृष्ण के मत्थे न मढ़ा हो! क्या ऐसे 'दोषपूर्ण' कृष्ण किसी भी जाति,समाज या राष्ट्र के आदर्श हो सकते हैं?