अगर हम भारत के आज के आर्थिक माहौल का अवलोकन करें तो हम यह कह सकते हैं ..
मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए "विमुद्रिकरण" सभी तीन चरणों का (विमुद्रिकरण डिजिटल लेनदेन जीएसटी) पहला कदम था। जीएसटी और लेनदेनों में पारदर्शिता के बिना विमुद्रिकरण भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक नही होता।
हाँ ! हम कह सकते हैं कि विमुद्रिकरण बहुत सफल नहीं था लेकिन यह अभी भी अप्रत्यक्ष अर्थ में अर्थव्यवस्था की मदद कर रहा है
विमुद्रिकरण सिर्फ लोगों को कर परिदृश्य में लाने का एक तरीका था, हमने देखा कि विमुद्रिकरण के बाद सरकार ने एक सीमा के बाद नकद लेनदेन पर प्रतिबंध लगा दिया है और अब व्यवसायिक ओर साधारण व्यक्तियों को लेन-देन के हर स्तर पर डिजिटल लेनदेन करने को उत्साहित या कहे तो बाध्य कर रही है , अब आपके सभी लेनदेन पर सरकार की नजर है।
कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि विमुद्रिकरण हमारी अर्थव्यवस्था की मदद नहीं कर सकता यदि जीएसटी और डिजिटल लेनदेन विमुद्रिकरण के तुरंत बाद शुरू नहीं किये गए होते।
रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी विमुद्रिकरण पर असन्तोष व्यक्त किया, कहा कि विमुद्रिकरण बिना तैयारी के लिया गया फैसला था जिसके कम समय वाले परिणाम तो हमे मिल चुके है जैसे कि: बेरोजगारी दर में वृद्धि, लघु उद्योग के अधिकांश इकाइयों का बंद हो जाना, आर्थिक वृद्धि दर में कमी आदि। रही बात दीर्घगामी परिणामों की तो वो हमें देखना बाकी है।